Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में विपक्षी दलों की सोमवार और मंगलवार को होने जा रही बैठक महत्वपूर्ण तो साबित होने जा ही रही है, उससे यह भी उम्मीद है कि भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक मजबूत व संयुक्त प्रतिपक्ष खड़ा हो सकेगा। देखना होगा कि क्या बैठक से उभरने वाला सामूहिक विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में केन्द्र की सत्ता पर तीसरी बार काबिज होने के भाजपा के प्रयासों को निष्फल कर सकेगा। विपक्षी एकता से जुड़े अनेक मसले हैं जिन पर इस बैठक में चर्चा होगी- खासकर सीटों का बंटवारा व न्यूनतम साझा कार्यक्रम। जिस तरह से देश भर में संयुक्त विपक्ष की ज़रूरत महसूस की जा रही है और इस विचार को समर्थन मिल रहा है उससे कहा जा सकता है कि बैठक राजनीति का निर्णायक मोड़ सिद्ध होगी।

2019 में भाजपा को लोकसभा चुनावों में जैसी भारी जीत मिली थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने निहायत गैर लोकतांत्रिक नारे ‘कांग्रेस मुक्त भारतÓ को विस्तारित कर ‘विपक्ष मुक्त भारत’ जैसा अधिक कुत्सित विचार दिया था; और उस पर पूरी संजीदगी से अमल भी किया है, उससे लोकतंत्र में भरोसा करने वाली जनता में भी यह धारणा पैठ कर गई है कि यह विचार भाजपा व मोदी को सतत निरंकुश बनायेगा। पूरा देश वैसा होता हुआ पिछले करीब 9 वर्षों के दौरान, खासकर पिछले चार साल में देख भी रहा है।

मोदी व भाजपा ने अपने दोनों ही कार्यकाल में विपक्ष को विभाजित कर रखने, प्रतिपक्षी नेताओं को बदनाम करने और ज़रूरत पड़ी तो केन्द्रीय जांच एजेंसियों का उनके खिलाफ इस्तेमाल करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। विपक्षी एकता की आवश्यकता सिर्फ इसलिये महसूस नहीं की गई बल्कि यह भी साफ हो गया कि अगर एक साथ मिलकर मोदी व भाजपा से नहीं लड़ा गया तो एक समावेशी व बहुलतावादी भारत का अस्तित्व ही मिट जायेगा। श्री मोदी ने जिस प्रकार से एक-एक कर सारी संवैधानिक संस्थाओं को शक्तिहीन व अपने इशारे पर नाचने वाली एजेंसियों में बदलकर रख दिया है, वह तथ्य भी विपक्षी पार्टियों को एका करने के लिये प्रेरित कर रहा है।

अनेक शंकाओं के बावजूद पिछले कुछ समय से विपक्षी दलों ने एकत्र होना शुरू किया है। कुनबे के नेतृत्व संबंधी सवालों और इस एकता से क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व के मिटने के खतरे से भी बड़ा जोखिम जब भाजपा विरोधी दलों को नज़र आया तो यह कुटुम्ब और बड़ा होने लगा है। तभी तो इस महाजुटान में 24 दलों के शामिल होने की पुष्टि की जा चुकी है जबकि पहली बैठक में, जो बिहार की राजधानी पटना में हुई थी, 16 दल शामिल हुए थे। कांग्रेस द्वारा इस बैठक को आहूत किया जाना बतलाता है कि अब विपक्षी दलों ने भी एक तरह से स्वीकार कर लिया है कि संयुक्त विपक्ष का नेतृत्व देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ही कर सकती है जिसका भारत की आजादी में सबसे बड़ा योगदान होने के नाते यह उसका न केवल स्वाभाविक अधिकार है वरन वह इसमें सर्वाधिक सक्षम भी है। वैसे भी मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की केन्द्र सरकार के खिलाफ अगर कोई सबसे मुखर होकर सतत टकराता हुआ दिखा है तो वह कांग्रेस ही है।

7 सितम्बर, 2022 से 30 जनवरी, 2023 तक राहुल गांधी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक हुई पैदल यात्रा ने माहौल को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। भाजपा द्वारा देश भर में फैलाये गये परस्पर जातीय व साम्प्रदायिक नफ़रत के खिलाफ़ जिस तादाद में जनता राहुल की मोहब्बत की दूकान में खरीदारी करने पहुंची, उससे कांग्रेस समेत सभी भाजपा विरोधी दलों में हौसला लौटा। राहुल की छवि में सुधार व कांग्रेस के नैतिक बल में वृद्धि भी हुई।

हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक में भाजपा को पटकनी देकर कांग्रेस ने साफ संदेश दिया कि सामूहिक विपक्ष का नेतृत्व वही कर सकेगी। यही कारण है कि पिछली बैठक का आयोजन जहां बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया वहीं अबकी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सभी विपक्षी दलों को इस बैठक में शामिल होने का न्योता दिया है।

सोनिया गांधी भी इसमें मौजूद रहेंगी। मरूमलारची, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एमडीएमके), कोंगु देसा मक्कल काची (केडीएमके), विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), केरल कांग्रेस (जोसेफ) और केरल कांग्रेस (मणि) नये दल हैं जिन्होंने निमंत्रण को स्वीकार किया है।

स्वाभाविक है कि विरोधी दलों को इकठ्ठा होते देख भाजपा में घबराहट है तभी वह एनडीए का साथ छोड़ चुकी पार्टियों या नये सहयोगियों (अकाली दल, लोजपा- रामविलास गुट के चिराग पासवान, हम पार्टी के जीतनराम मांझी, रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा, आंध्रप्रदेश की जनसेना के पवन कल्याण आदि) से पुन: संवाद कर रही है जिनकी वह अब तक बहुमत के अहंकार में अवहेलना व उपेक्षा कर रही थी।

यानी भाजपा भी आशंकित है कि बेंगलुरु बैठक से विपक्षी एकता का ठोस स्वरूप सामने आयेगा। वैसे इसी साल होने जा रहे पांच राज्यों (तेलंगाना, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान व मिजोरम) के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के सामने भाजपा की जो पतली हालत नज़र आ रही है, उससे उम्मीद बंधती है कि प्रतिपक्ष और भी सशक्त व संगठित होगा। इसलिये यह बैठक भारतीय राजनीति का निर्णायक मोड़ साबित हो तो आश्चर्य नहीं।

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *