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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

मणिपुर हाई कोर्ट ने सोमवार 19 जून को 27 मार्च को दिए अपने विवादित आदेश में संशोधन के लिए दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया है। इस आदेश में मणिपुर हाई कोर्ट ने सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने के लिए कहा था। 27 मार्च को आए इस फैसले के बाद से राज्य में अशांति का माहौल बनना शुरु हुआ। 3 मई से हिंसा भड़कने लगी और अब हालात ऐसे हैं कि अलग-अलग इलाकों में भड़की हिंसा में सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। 60 हजार से अधिक लोग घर छोड़कर जाने को मजबूर हो गए। कई मासूम लोग कानूनी शिकंजे में फंस गए। हाईकोर्ट के आदेश पर दायर पुनर्विचार याचिका पर अब पांच जुलाई को अगली सुनवाई होगी। अदालत ने राज्य और केंद्र सरकार को पांच जुलाई से पहले जवाब दाख़िल करने के लिए भी कहा है। दोनों जगहों पर भाजपा की सरकार है और वो क्या जवाब दाखिल करती है, और क्या उस जवाब से राज्य के हालात संभालने में कोई मदद मिलती है, ये देखना होगा।

अभी ये देखना दुखद है कि भारत का एक राज्य 50 दिनों से अधिक वक्त से लगातार अस्थिरता, तनाव और हिंसा में जी रहा है, लेकिन सत्तारुढ़ दल अब भी अपने 9 साल पूरा होने का जश्न या प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा को भुनाने में लगी है। क्या घर के एक हिस्से में आग लगी हो, तो बाकी हिस्सों में चैन से बैठा जा सकता है। खेद यह है कि भारत में इस वक्त ऐसे ही चैन का आलम देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका जाने से पहले अपने मन की बात के 102वें एपिसोड को जारी किया। पिछले 9 सालों का सिलसिला किसी भी कारण से टूटना नहीं चाहिए, इसलिए अमेरिका यात्रा से पहले मोदीजी ने मन की बात कर ली। जब कोरोना, गलवान, पुलवामा किसी वजह से मन की बात नहीं रुकी, तो फिर मणिपुर पर भी क्यों रुकती। मोदी ने न केवल मन की बात की, बल्कि उसमें कांग्रेस को कोसने का क्रम भी नहीं टूटने दिया। जून का महीना वैसे भी आपातकाल का विलाप करने का बना दिया गया है। लिहाजा मोदीजी ने भी मन की बात में आपातकाल की याद कर ली। लेकिन मणिपुर उन्हें तब भी याद नहीं आया, जो आपातकाल, द्रोहकाल, हिंसाकाल सब एक साथ सहन कर रहा है।

इस बार मणिपुर की आम जनता ने जिस तरह मन की बात का विरोध किया, उसे देखकर समझा जा सकता है कि वहां त्रासदी कितनी अधिक बढ़ चुकी है। लोगों ने मणिपुर में कई जगह रेडियो तोड़कर मन की बात का विरोध किया। सड़क किनारे एक कतार में खड़े होकर पोस्टर लहराए, जिन पर लिखा था ‘मैं मन की बात का विरोध करता हूँ’; ‘नो टू मन की बात, यस टू मणिपुर की बात’ और ‘मिस्टर पीएम मोदी, नो मोर ड्रामा एट मन की बात’। मोदी के प्रचार से वक्त निकाल कर भाजपा को थोड़ा ध्यान इन प्रदर्शनों पर भी देना चाहिए, जो आम जनता की पीड़ा को दिखा रहे हैं।

कांग्रेस ने तो पहले ही इस बारे में सवाल उठाए कि मोदी मन की बात करते हैं, मणिपुर की बात क्यों नहीं करते। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक ट्वीट में कहा था, ‘नरेंद्र मोदी जी, आपके ‘मन की बात’ में पहले ‘मणिपुर की बात’ शामिल होनी चाहिए थी, लेकिन व्यर्थ। सीमावर्ती राज्य में स्थिति अनिश्चित और बेहद परेशान करने वाली है। आपने एक शब्द नहीं बोला। आपने एक भी बैठक की अध्यक्षता नहीं की है। आप अभी तक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिले हैं। ऐसा लगता है कि आपकी सरकार मणिपुर को भारत का हिस्सा नहीं मानती है। यह अस्वीकार्य है।’

अब कांग्रेस ने मोदी की अमेरिका रवाना होने वाली तस्वीर के साथ सुलगते मणिपुर की एक तस्वीर को जोड़कर तंज किया है कि मणिपुर जल रहा है…मैं चला अमेरिका। इस पोस्टर के ट्वीट में कांग्रेस ने लिखा है- जिम्मेदारी से भागने का मेरा पुराना नाता, प्रचार के अलावा मुझे कुछ नहीं आता। इसके साथ ही कांग्रेस ने मोदीजी को अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा राजधर्म निभाने की नसीहत भी याद दिलाई है। कांग्रेस के इस हमले के जवाब में भाजपा के भी जवाबी ट्वीट आ ही जाएंगे। राहुल गांधी मंगलवार को विदेश यात्रा से लौट रहे हैं, तो उन पर भाजपा के हमले शुरु हो ही चुके हैं। अमित मालवीय ने एक ट्वीट किया है कि राहुल गांधी विदेश में इतना समय क्यों बिताते हैं, खासकर उनकी यात्राओं का एक बड़ा हिस्सा रहस्य में डूबा हुआ है?’ उन्होंने कहा कि ‘विदेशी एजेंसियों और भारत के विरोधी समूहों के साथ उनकी गुप्त बैठकों की कई रिपोर्टें इन यात्राओं के उद्देश्य पर और सवाल उठाती हैं।

राहुल गांधी इस देश के एक सामान्य नेता हैं, वे किसी पद पर नहीं हैं, उन पर कोई जिम्मेदारी नहीं है, जिसका हिसाब उन्हें देना पड़े। वे अपने खर्च पर जहां चाहे, जैसे चाहे घूम-फिर सकते हैं। फिर भी भाजपा उनकी विदेश यात्रा पर सवाल उठाकर राजनैतिक हिसाब-किताब पूरा करने में लगी है। जबकि अभी भाजपा को जवाब देना चाहिए कि क्यों प्रधानमंत्री मणिपुर को इस तरह अनदेखा कर रहे हैं। यह कितने दुख की बात है कि इस जगह एक महीने में कम से कम तीसरी बार मणिपुर के मसले पर लिखना पड़ रहा है और अब तक यह साफ नहीं हो रहा कि इस पूर्वोत्तर राज्य में शांति किस विधि से लाई जाएगी। कानून व्यवस्था बनाए रखने की पहली जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, जो पूरी तरह विफल हो चुकी है। उसके बाद केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन उसके मुखिया इस मुद्दे पर कुछ बोल ही नहीं रहे हैं। ऐसे में आम जनता किससे उम्मीद बांधे और किस तरह सामान्य जीवन जिए। प्रधानमंत्री अमेरिका में राजकीय अतिथि रहेंगे, कई दिग्गज राजनेताओं, कारोबारियों, बुद्धिजीवियों से मुलाकात करेंगे। उनके दौरे पर दुनिया भर की नजरें रहेंगी और सब ये भी देखेंगे कि जब प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर जा रहे थे, तो अपने देश के हालात को किस तरह उन्होंने अनदेखा किया। क्या इसका अच्छा असर दुनिया पर पड़ेगा, ये भाजपा को सोचना होगा। क्योंकि हर जगह खबर प्रबंधन नहीं किया जा सकता।

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