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कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सत्य पारीक॥
लम्बे समय से भाजपा की मेहरबानी से अल्पमत की सरकार चला रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ख़्वाब देख रहे हैं कि 2023 के चुनाव में उनकी पार्टी पुनः सत्ता में लौटेगी क्योंकि उनके खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी नहीं है । जबकि जनता की बात तो छोड़िए मुख्यमंत्री से उनके समर्थक मंत्री , विधायक व सलाहकार तक असन्तुष्ट हैं जिसके कारण गहलोत अपने विधायक दल की बैठक तक नहीं कर पा रहें हैं और इससे बड़ा असन्तोष और क्या हो सकता है । मग़र मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार के प्रचार कार्यक्रमों का ठेका एक एजेंसी को देकर तय कर बैठें हैं कि ” चुनाव के बाद आएंगे तो गहलोत ही ”
गहलोत सरकार के असंतुष्टों की गिनती की जाए तो सबसे ऊपर नाम है ” मानेसर रिटर्न्स 19 विधायक व मंत्रियों का , जिन्हें आगामी चुनाव पार्टी की टिकट कटने का पूरा भरोसा है । इनके साथ दो और नेता शामिल हो चुके हैं, जो हैं मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास व पूर्व मंत्री डॉ रघु शर्मा । इनके बाद नम्बर आता है सात वरिष्ठ विधायकों का जो मंत्री पद चाहते थे लेकिन मिला मुख्यमंत्री के सलाहकार का पद , जिसमें ना तो गाड़ी, न बंगले और ना ही पावर । तीसरे नम्बर पर है गहलोत सरकार को बचाने वाले 12 निर्दलीय विधायकों का, जो मंत्री पद पाने के लिए गहलोत सरकार का समर्थन कर रहें हैं । असंतुष्टों की अगली पायदान पर हैं बहुजन समाज पार्टी को छोड़ कर आए छह विधायक ।
ये आए थे महत्वपूर्ण मंत्री बनने का स्वप्न लेकर लेकिन मिला केवल झुनझुना, जो लगातार बजा रहे हैं। इन्हें भी कांग्रेस का टिकट मिलने की आशा थी वह भी पूरी होती नजर नहीं आ रही है । इसी लाईन में दो विधायक और हैं जो बी टी पी के हैं उन्हें भी गहलोत सरकार में समर्थन लेने के बदले कुछ नहीं मिला । एक विधायक हैं माकपा के वे भी गहलोत सरकार को बचाने के लिए अपने दल से बागी हुए थे लेकिन खाली हाथ बैठे हैं । ये सभी गिनती में 42 से अधिक है जबकि राज्य विधानसभा के 200 सदस्यों में से एक स्थान रिक्त है । बाकी बचे 199 विधायक , जिनमें से 71 भाजपा के व तीन आर एल पी के है ।
कुल मिलाकर 74 विपक्षी सदस्यों के इलावा 42 असन्तुष्ट है जो कुल मिलाकर 116 होते हैं। इस कारण गहलोत सरकार को कुल मिलाकर 83 विधायकों का ही समर्थन है अगर विधायक दल की बैठक हो तो गहलोत सरकार गिर सकती है । बागी नेता सचिन पायलट भरसक प्रयास करने लगे हैं कि कैसे भी हो मुख्यमंत्री पर दबाब पड़े कि वे पार्टी के विधायक दल की बैठक बुलाए , लेकिन मुख्यमंत्री पिछले साल की सितम्बर माह की बगावती विधायक दल की बैठक के बाद पुनः बैठक की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे, जबकि विधानसभा का बजट सत्र पूरा निकल गया ।

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