Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

-सुनील कुमार॥

अदालतों में चल रहे मुकदमों और उन पर आने वाले फैसलों की खबरों से देश के लोगों को कानून की एक बेहतर समझ बनाने में मदद मिलती है। कानून तो किताबों में लिखे हुए हैं, और कायदे से तो उनकी जरूरत पडऩे पर फीस देकर वकील से काम लिया जा सकता है, लेकिन ऐसी जरूरत पडऩे के पहले रोज की जिंदगी में बेहतर समझ के लिए अदालती खबरों को पढऩा फायदे का हो सकता है। हर बरस हिन्दुस्तान में हजारों ऐसी पुलिस रपट होती हैं जिनमें कोई लडक़ी या महिला किसी नौजवान या आदमी के खिलाफ रिपोर्ट लिखाती है कि उसने शादी का झांसा देकर उससे देहसंबंध बनाए, महीनों या बरसों तक देहसंबंध जारी रहे, और जब उसने किसी और लडक़ी से शादी कर ली, तो धोखा खाने वाली लडक़ी या महिला पुलिस में बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंची। अभी छत्तीसगढ़ में एक मामला ऐसा भी आया है जिसमें इसी किस्म की रिपोर्ट एक महिला ने लिखाई, और अदालत में आरोपी के वकील ने यह खुलासा किया कि वह महिला तो पहले से शादीशुदा है, उससे किसी भी तरह के संबंध रखते हुए उसका मुवक्किल उससे शादी का वायदा कैसे कर सकता था। हम अपने महिला-अधिकार समर्थक बहुत से पाठकों की नाराजगी झेलते हुए भी हर बरस एक-दो बार इस मुद्दे पर लिखते हैं कि अगर एक बालिग लडक़ी या महिला किसी के साथ प्रेमसंबंध या देहसंबंध में पड़ती है, और यह रिश्ता शादी में तब्दील नहीं होता है, तो उसे बलात्कार कहना ठीक नहीं है। हर किस्म के संबंध में संबंधों के चलते हुए भी लोगों के विचार बदलते रहते हैं, सगाई के बाद शादी के पहले सगाई टूट जाती है, शादी होने के बाद तलाक हो जाते हैं, तो ऐसे में देहसंबंध के बाद शादी न हो पाने को सीधे-सीधे धोखा देकर बलात्कार करना कह देना सही नहीं होगा। और अगर कानून का ऐसा इस्तेमाल हो सकता है, तो फिर यह भी हो सकता है कि बदला लेने के लिए कई निराश लड़कियां और महिलाएं बिना धोखा खाए भी सिर्फ शादी न हो पाने की वजह से ऐसी रिपोर्ट लिखाने पर आमादा हो जाएं।

ऐसा एक मामला अभी कलकत्ता हाईकोर्ट में आया जिसमें अदालत ने निचली अदालत से बलात्कार की सजा पाए हुए व्यक्ति को इस आधार पर बरी किया कि रिपोर्ट लिखाने वाली महिला 26 बरस की थी, पूरी तरह से परिपक्व थी, और उसने अपनी मर्जी से देहसंबंध बनाए थे, इसलिए यह कहना गलत होगा कि उसने शादी के वायदे की वजह से आरोपी के साथ सेक्स किया था। इस मामले में ऐसे देहसंबंधों के चलते यह महिला गर्भवती हो गई थी, और उसने एक बच्ची को जन्म भी दिया था, लेकिन इसके बाद यह शादी नहीं हुई, और उसने बलात्कार की रिपोर्ट लिखाई थी। हाईकोर्ट ने यह कहा कि अगर देहसंबंध की तारीख पर लडक़ी 18 बरस की हो चुकी है, और यह सेक्स उसकी सहमति से हो रहा है, तो इसके लिए उसके साथी को बलात्कार का गुनहगार नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने माना कि इन दोनों के बीच इन दोनों के घरों में सेक्स होते रहा, जिससे यह साफ होता है कि यह बलात्कार नहीं था। कोर्ट का कहना था कि 26 बरस की महिला ऐसे संबंधों के खतरे समझती हैं, और उसकी सहमति एक सोची-समझी सहमति रहती है।

इसके पहले भी एक-एक करके देश के कई हाईकोर्ट से ऐसे फैसले आए हैं जिनमें जजों ने यह माना है कि प्रेमसंबंधों और देहसंबंधों के बाद शादी न हो पाना बलात्कार मान लेना ठीक नहीं है। हम लगातार इस बात की वकालत करते आ रहे हैं कि शादी के वायदे और शादी के बीच एक बहुत ही जायज वजह भी हो सकती है जिससे कि कोई शादी न करे। और प्रेम या देहसंबंधों में पडऩे वाली लड़कियों या महिलाओं को यह मानकर चलना चाहिए कि ऐसे हर संबंध शादी में तब्दील नहीं होते। एक बालिग की सहमति के साथ यह बात भी मानी जाती है कि वह सोची-विचारी सहमति है, और शादी का वायदा पूरा न होने पर ऐसी सहमति से मुकर जाना ठीक नहीं है। फिर अगर ऐसे देहसंबंध एक बार के हों, तो उन्हें बलात्कार भी कहा जा सकता है, लेकिन जब ऐसे संबंध महीनों और बरसों तक चलते हैं, दर्जनों बार होते हैं, तो उन्हें शादी के वायदे से जोडक़र देखना समाज में एक खतरनाक नौबत खड़ी करना होगा। कानून अगर ऐसी हिफाजत देने लगे तो उससे लड़कियों और महिलाओं में जिम्मेदारी की कमी आने लगेगी, और जो फैसले उन्हें देहसंबंध बनाने के पहले लेने चाहिए, वे अब अदालत जाने की शक्ल में लेने लगेंगीं। एक मोटा अंदाज लगाया जाए तो शायद दस-बीस प्रेमसंबंधों में दो-चार ही शादी में तब्दील होते होंगे, जबकि इससे कई गुना अधिक के बीच देहसंबंध होते होंगे। बालिग लोगों के बीच देहसंबंध इस जिम्मेदार रूख के साथ ही होने चाहिए कि इसके बाद शादी हो भी सकती है, और नहीं भी हो सकती है। कानून के बेजा इस्तेमाल से निचली अदालत में किसी को बलात्कार की सजा दिला भी दी जाए, तो उससे लड़कियों और महिलाओं का कोई भला नहीं होना है। ऐसी सजा की धमकी देकर अगर कोई शादी हो पाती है, तो वह शादी कोई अच्छी जिंदगी नहीं रहेगी। लोगों को जिम्मेदारियां तय करते हुए कानून की मदद से किसी लडक़े या आदमी पर अनुपातहीन जिम्मेदारी डाल देने से बचना चाहिए। ऐसा होने पर लड़कियों और महिलाओं में देहसंबंधों के बाद के खतरे का चौकन्नापन घटते चले जाएगा। ऐसा लगता है कि निचली अदालतों से ऐसे मामलों में सजा देना जिस तरह से चल रहा है, उस हिसाब से सुप्रीम कोर्ट का साफ-साफ ऐसा फैसला आना चाहिए जो पूरे देश पर लागू हो, और अपना वायदा पूरा न कर पाने वाले व्यक्ति को इस तरह सजा मिलना बंद हो सके। जिंदगी में किसी भी तरह के संबंध में वायदे हर बार पूरे नहीं होते हैं।

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *