Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

गुजरात चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान संपन्न हो गया, अब दूसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार को धार दी जा रही है। कौन रावण है, किसका राम में यकीन है, 20 साल पहले गुजरात के लोगों को सबक सिखा दिया गया या वे अब तक कोई सबक नहीं ले पाए हैं, ऐसे चुनावी विमर्शों के बीच महंगाई, बेरोजगारी, किसानों की बदहाली, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे चुनावों के केंद्र में हैं।

लेकिन इनमें बिल्किस बानो मामले का जिक्र व्यापक तौर पर चर्चा का विषय नहीं बन पाया है। आम जनता में बहुतेरे लोग यही मानते होंगे कि बिल्किस बानो उनके घर की महिला तो हैं नहीं, जो उनके लिए परेशान हुआ जाए। जिन्हें बिल्किस बानो से हमदर्दी होगी, वो भी खुलकर अपनी आवाज़ नहीं उठा रहे होंगे कि जब राजनीति के दिग्गज इस पर कुछ नहीं कह रहे, तो हमारी बात कौन सुनने वाला है। कहने का आशय यह कि जिस मुद्दे पर समाज को उद्वेलित हो जाना चाहिए था, उस पर एक अजीब तरह की खामोशी छाई हुई है। राजनेता और आम जनता अपने-अपने कारणों से भले चुप रहे, लेकिन बिल्किस बानो ने इंसाफ की बची-खुची उम्मीदों को लेकर जो लड़ाई बरसों लड़ी, उससे अब वो पीछे कैसे हट सकती है।

इस साल अगस्त में जब उनके साथ बलात्कार करने और उनकी बेटी समेत अन्य परिजनों की हत्या करने वाले लोगों को जेल से रिहाई मिल गई थी, तब ऐसा लगा था मानो 2002 का गोधरा का दिया जख्म, पहले से अधिक धारदार हथियार से किसी ने कुरेद दिया है। क्योंकि रिहा हुए हत्यारे और बलात्कारियों का न केवल स्वागत-सत्कार हुआ, उन्हें संस्कारी भी बता दिया गया। कानून की धाराओं के तहत भले इस रिहाई को सही साबित किया जाए, लेकिन इंसानियत और नैतिकता के तकाजे पर यह फैसला कभी सही सिद्ध नहीं किया जा सकता।

बिल्किस बानो के दोषियों की मुक्ति पर संवेदनशील समाज में हलचल मची और ‘नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन विमेनÓ ने इसके खिलाफ याचिका दाखिल की। और अब खुद बिल्किस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पहले दिए गए उस फैसले की समीक्षा की भी मांग की है, जिसमें गुजरात सरकार को दोषियों की सजा पर निर्णय लेने की अनुमति दी गई थी। हालांकि इससे पहले जब शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से इस पर जवाब मांगा था तो गुजरात सरकार ने कहा था कि इस निर्णय को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंज़ूरी दी थी, लेकिन सीबीआई, स्पेशल क्राइम ब्रांच, मुंबई और सीबीआई की अदालत ने सज़ा माफ़ी का विरोध किया था।

बिल्किस बानो के दोषियों का आचरण किसे सही लगा, किसने उनकी रिहाई के लिए रास्ता तैयार किया, अब क्या उन्हें फिर से सलाखों के पीछे भेजना संभव हो पाएगा, क्या केंद्र और राज्य सरकारें अपने फैसले से पलट पाएंगी, खासकर तब जबकि अगले आम चुनाव के लिए डेढ़ साल का ही वक्त बचा है। ऐसे कई सवालों के जवाब शायद निकट भविष्य में मिल जाएं। मगर स्त्री स्वतंत्रता और सम्मान को लेकर हमारे दोहरे रवैये का क्या कभी कोई समाधान मिल पाएगा। बिल्किस बानो के साथ जो अन्याय और अत्याचार हुआ, अब उसे भी राजनीति का मसला बना दिया गया है। क्योंकि वो एक अल्पसंख्यक हैं और सांप्रदायिक हिंसा के कारण उनके साथ अनाचार हुआ। सांप्रदायिक हिंसा या युद्ध में कमजोर पक्ष के पुरुष को मार कर अपनी ताकत साबित की जाती है, लेकिन स्त्री के साथ बलात्कार को जीत के तमगे की तरह प्रस्तुत किया जाता है। बिल्किस बानो इसी पाशविक सोच का शिकार बनीं। यह सोच समाज में हमेशा, हर स्तर पर मौजूद रहती है और जैसे ही इसे पनपने का मौका मिलता है, यह अपना वीभत्स चेहरा दिखा देती है।

इस सोच का एक उदाहरण देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से सामने आया। यहां के खार इलाके में दक्षिण कोरिया की एक यूट्यूबर लाइव स्ट्रीमिंग कर रही थीं, तभी दो युवकों ने उनके साथ बेहद अभद्र व्यवहार किया। यह पूरी घटना रिकार्ड हो गई, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। इसमें नजर आ रहा है कि यूट्यूबर से एक युवक जबरदस्ती बात करने की कोशिश करता है, और छेड़छाड़ करते हुए उसका हाथ पकड़ कर उसे जबरदस्ती चूमने की कोशिश करता है। इस घटना से हैरान जब वह युवती अपने घर की ओर बढ़ती है, तो दोनों युवक उसका स्कूटी से पीछा करते हैं और उसे अपनी स्कूटी में बैठने का प्रस्ताव देते हैं। वह युवती इस पूरे प्रकरण के दौरान अपना संयम बनाए रखते हुए घर की ओर बढ़ जाती है।

इस यूट्यूबर ने इस घटना के बारे में ट्वीट भी किया है कि उन्होंने पूरी कोशिश की कि यह मामला आगे ना बढ़े क्योंकि कुछ लोगों ने कहा कि ऐसा उनके उन युवकों से बहुत ज्यादा दोस्ताना होने और बातचीत करने की वजह से हुआ। उन्होंने कहा कि इस घटना ने उन्हें स्ट्रीमिंग के बारे में फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। इस बयान ने समाज की दोहरी मानसिकता की धज्जियां उड़ा कर रख दी हैं, जो बलात्कार या छेड़खानी में पहले पीड़िता के दोष ही तलाशता है और अपराधियों की रिहाई के रास्ते बनाता है।

अतिथि देवो भव का गान करने वाले हमारे देश में एक विदेशी मेहमान के साथ भीड़ भरी सड़क में इस तरह का अभद्र व्यवहार किया गया। इससे पहले भी कई विदेशी महिला पर्यटकों के साथ छेड़खानी की खबरें आती ही रही हैं। यह सब इसलिए क्योंकि हमारे समाज में अमूमन लड़कों को लड़कियों के साथ सम्मान से पेश आने की तमीज नहीं सिखाई जाती। उनकी परवरिश इसी सोच के साथ होती है कि लड़के लड़कियों से एक पायदान ऊपर हैं। समाज की ऐसी मानसिकता के कारण ही छेड़खानी से लेकर बलात्कार और कार्यालयों में यौन उत्पीड़न की खबरें आना बंद ही नहीं होती हैं।

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *