Latest Post

कांग्रेस ‘कमल छाप नस्ल’ से निज़ात पाए.. मोदी की महाविजय, महिला मतदाता नायिका ?

राजीव गांधी हत्याकांड के छह दोषियों को पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद रिहा कर दिया गया है। इस साल 18 मई को अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 में दी गई असाधारण शक्तियों का हवाला देकर इसी मामले के एक अन्य अभियुक्त ए जी पेरारिवलन को रिहा कर दिया था। और अब सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बी वी नागरत्न की बेंच ने कहा कि इन लोगों के केस में भी पेरारिवलन के मामले में दिया गया फ़ैसला लागू होगा।

इस तरह 21 मई 1991 को राजीव गांधी समेत 15 अन्य लोगों की मौत के जिम्मेदार और कम से कम 45 लोगों की जिंदगी को गंभीर क्षति पहुंचाने वाले अभियुक्त अब आजाद हवा में सांस ले रहे हैं। पेरारिवलन इस हत्याकांड में 30 साल की सजा काट चुका है और बाकी छह अभियुक्त भी 23 साल जेल की सलाखों के पीछे बिता चुके हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है। भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका इन सभी देशों ने कई राजनैतिक हत्याएं देखी हैं, अपने बड़े नेताओं को आतंकवाद की भेंट चढ़ते देखा है। औपनिवेशिक दासता से आजाद होने के बाद यहां के देश उग्रवाद, कट्टरवाद का शिकार हुए और इसमें संदेह नहीं कि इनके पीछे केवल अलगाववादी ताकतें ही नहीं थीं, बल्कि इनके तार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़े हुए हैं।

राजीव गांधी की हत्या के लिए जिम्मेदार लिट्टे श्रीलंका से निकला आतंकवादी संगठन था। गौरतलब है कि राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्री रहने के दौरान श्रीलंका में लिट्टे उग्रवादियों का सामना करने के लिए शांति सेना भेजी थी, जिसके बाद वे लिट्टे की हिटलिस्ट में आ गए थे। लिट्टे उग्रवादियों ने पहले भी उनकी हत्या की कोशिश की थी, जो नाकाम रही थी। इसके बावजूद राजीव गांधी की सुरक्षा में वह मुस्तैदी नहीं दिखाई गई, जो अपेक्षित थी। 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में चुनाव प्रचार के दौरान लिट्टे ने एक आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी।

इसके बाद देश की राजनीति ने जो करवट ली, वो इतिहास में दर्ज है। इस सदी के शुरुआती वर्षों में लिट्टे का भी खात्मा हो गया, उसके मुखिया प्रभाकरण को भी मार गिराया गया। मगर लिट्टे का जो चेहरा सामने था, क्या वही असली था या अब भी है या उसके पीछे किसी और की योजना को अंजाम दिया जा रहा है। क्या राजीव गांधी की हत्या के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ था। अगर था, तो ये कौन ताकतें हैं और कहां से अपनी योजनाओं को अंजाम दे रही हैं। क्या इन ताकतों का मकसद भारत में राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न करना था। क्या राजीव गांधी की हत्या के जरिए देश में राजनैतिक उलटफेर करवाने की कोशिश की गई थी। इन सारे सवालों के जवाब देश को मिलते तो शायद इस हत्याकांड के पीड़ितों के साथ कुछ इंसाफ हो पाता।

24 साल पहले 1998 में जैन आयोग की सिफारिश पर सीबीआई के तहत मल्टी डिसीप्लीनरी मॉनिटरिंग एजेंसी यानी एमडीएमए ऐसी ही किसी बड़ी साजिश का पता लगाने के लिए बनाई गई थी। मगर इस एजेंसी को किसी तरह की कोई सफलता नहीं मिल सकी और अब केंद्र सरकार ने इसे भंग कर दिया है और अब सीबीआई की एक अलग इकाई इस मामले की जांच को आगे बढ़ाएगी।

यानी कहा जा सकता है कि न्याय जांच पूरी होने के बाद ही होगा। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिस तरह से छह अभियुक्तों को रिहा कर दिया गया है, उस पर कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा है कि यह निर्णय पूरी तरह से अस्वीकार्य और पूरी तरह से गलत है। वैसे यह याद रखना होगा कि राजीव गांधी के हत्यारों को उनका परिवार यानी सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी माफ कर चुके हैं। एक अभियुक्त नलिनी श्रीहरम को जब गिरफ्तार किया गया था, तब वह दो माह की गर्भवती थी और उसे फांसी की सजा हुई थी। लेकिन तब सोनिया गांधी ने उसकी सजा को कम कर उम्रकैद में बदलने की अपील की थी। सोनिया गांधी ने कहा था कि नलिनी की ग़लती की सज़ा एक मासूम बच्चे को कैसे मिल सकती है, जो अब तक दुनिया में आया ही नहीं है। 2008 में नलिनी से जेल में प्रियंका गांधी ने भी मुलाकात की थी।

गांधी परिवार के ये फैसले उनकी निजी सोच से उपजे थे। वे अपनी पीड़ा को किसी और को कष्ट देकर कम नहीं करना चाहते, बल्कि माफ करने की उदारता उन्होंने दिखाई। लेकिन उनकी निजी सोच देश के पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों, भारत की अस्मिता को चुनौती देने वालों के लिए सजा या माफी तय नहीं कर सकती। इसके लिए कानूनी रास्ते पर ही चलना होगा और फिलहाल कानून का रास्ता इन अभियुक्तों की रिहाई तक ले गया है। हालांकि गांधी परिवार की निजी सोच से असहमति दर्शाते हुए कांग्रेस ने कुछ सवाल केंद्र के सामने रखे हैं।

कांग्रेस ने पूछा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे उग्रवादियों की रिहाई का समर्थन करती है? मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मजबूती से अपना पक्ष क्यों नहीं रखा? क्या उग्रवाद पर मोदी सरकार का ये दोहरा रवैया नहीं है? और क्या केंद्र की भाजपा सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार याचिका देगी।

केंद्र सरकार इन सवालों के क्या जवाब देती है या फिर इन्हें टाल देती है, यह कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगा। वैसे अगर जवाब मिल जाते तो देश के सामने भी तस्वीर साफ हो जाती कि उग्रवाद और आतंकवाद के लिए शून्य सहनशक्ति का दावा करने वाली केंद्र सरकार इस हत्याकांड को आतंकवाद की कार्रवाई मानती है या नहीं। यह संयोग ही है कि इधर आतंकवाद की भेंट चढ़े देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारे आजाद हुए और उधर कुछ ही दिनों में देश में नो मनी फॉर टेरर सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहा है, जिसमें दुनिया भर के देश हिस्सा लेंगे।

इससे पहले भारत ने अक्टूबर में दो वैश्विक कार्यक्रमों- दिल्ली में इंटरपोल की वार्षिक आम सभा और मुंबई एवं दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद विरोधी कमेटी के एक विशेष सत्र की मेजबानी की थी। एक साल में तीन बार भारत आतंकवाद के खिलाफ कार्यक्रमों की मेजबानी कर चुका है और इसके अलावा भी कई देशों से आतंकवाद खत्म करने के लिए समझौते कर चुका है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई नजर तो आ रही है, मगर इसकी सार्थकता कितनी होगी, यह भी नजर आना चाहिए।

Facebook Comments Box

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *