स्तालिनिस्ट पार्टी के आदर्शों पर चलने वाली भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने हमेशा हिंसा को अपने हित में रणनीति और वर्चस्व के हथियार के रूप में अपनाया है. कम्युनिज्म के मूल सिद्धांतों में वर्ग शत्रु का सफाया करने के लिए हिंसा का रास्ता चुना गया है. साध्य और साधन की पवित्रता गांधीवादियों के लिए महत्त्व रखती है, मार्क्सवादियों के लिए नहीं. उल्टे मार्क्सवादी बुद्धिजीवी हिंसा को एक बुर्जुआ मूल्य मानते हैं. लेकिन यह बात सिद्धांतत: सही हो तो भी भारत की संसदीय राजनीति में हिंसा का कोई स्थान नहीं है. यह बात भी सिद्धांतत: ही सही है.
व्यवहार में सीपीएम का कैडर लोकतंत्र को एक रणनीति के तहत अपनाया तो लेकिन हिंसा को वह छोड़ नहीं पाया. इस बात को समझने के लिए उन राज्यों की राजनीतिक संस्कृति को देखना चाहिए जहाँ सीपीएम का वर्चस्व है. बंगाल, केरल और त्रिपुरा को इसमें रखा जा सकता है. यहाँ राजनीतिक हिंसा का अलग रूप है. यहाँ नाटक देखने वाला, किताब लिखने वाला कलाकार बुद्धिजीवी टाइप नेता हिंसा का गिरोह चला सकता है.
इन राज्यों में विरोधियों और आलोचकों ने बार-बार इस बात को दुहराया लेकिन वामपंथी रुझान वाले भारतीय बौद्धिक समाज ने इस बात को कभी स्वीकार नहीं किया कि सीपीएम हिंसा कि दृष्टि से एक खतरनाक दल है. यहाँ माओवाद और नक्सलवाद के हिंसक रूपों को अलग रहने की जरूरत है- सुविधा के लिए. नंदीग्राम ने सीपीएम के हिंसक रूप को इस तरह से उघाड़ा कि वह बेपर्दा हो गयी. गुजरात, भागलपुर और सिख विरोधी हिंसा और नंदीग्राम कि हिंसा के बीच बुनियादी फर्क है. नंदीग्राम की हिंसा अधिक योजनाबद्ध और समय लेकर की गयी थी.
बहरहाल केरल सीपीएम के एक नेता ने जो शंखनाद किया है वह सन्न करने वाला है. इदुक्की जिला सीपीएम के सचिव एम एम मणि ने खुलेआम जन सभा में इस बात की घोषणा की कि दुश्मनों के सफाए में हिंसा उनकी पार्टी का हथियार रही है. सीपीएम के राज्य सचिव पिनयारी विजयन ने उनको गलत बताया है और उनकी लाइन को पार्टी लाइन से अलग देखने की कोशिश की लेकिन सच तो निकल ही गया. नतीजतन उनके ऊपर धारा 302 के तहत आरोप तय किए गए हैं और कई अन्य धाराएँ भी लगाई गई हैं. (विष्फोट)