शायद दिल्ली-एनसीआर के बहुत लोग भूल गए होंगे निशा शर्मा को। नोएडा के सेक्टर 56 में रहने वाली निशा शर्मा 2003 में सुर्खियों में छा गई थी। मीडिया ने उसे इस तरह के रोल मॉडल के रूप में पेश किया जिसने दहेज के खिलाफ आवाज उठाते हुए बारात को वापस लौटा दिया था। पर कोर्ट ने नौ साल बाद निशा की दर्ज कराए गए आरोप को बनावटी कहानी ठहराकर सभी आरोपियों को बरी कर दिया। साथ ही एक बड़े अखबार के रिपोर्टर के खिलाफ भी मामला शुरू करने का आदेश दिया।
कोर्ट के इस फैसले ने साबित किया कि किस तरह मीडिया एक झूठी कहानी को इस तरह का हाइप दे दिया कि गलत तरीके से कहानी बनाने वाली एक लड़की रातोंरात रोल मॉडल बन गई। पूरी देश में बस निशा शर्मा की ही चर्चा होने लगी। अपनी कवरेज और कहानी से मीडिया ने निशा को तो रोल मॉडल बना दिया परन्तु मीडिया ने कहानी का दूसरा पहलू देखने की कोशिश नहीं की, जिसमें बिना अपराध के एक परिवार नौ सालों तक यातना झेलता रहा।
घटना के अनुसार निशा की शादी होने वाली थी, पर निशा ने दहेज मांगने के आरोप में अपने भावी पति मुनीष दलाल से शादी से इनकार कर दिया। कहा गया कि ये लोग दहेज में बड़ी रकम मांग रहे थे इसलिए निशा ने बारात लौटा दी। ये खबर अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन गईं। भेड़चाल में सिर झुकाए बिना दाएं-बाएं देखकर भागने वाली मीडिया ने भी कहानी के पीछे का सच जाने बगैर निशा को दहेज के लिए लड़ने वाली लड़की का रोल मॉडल बना दिया। अगर मुनीष और उसके परिवार वालों ने दहेज मांगा था तो निश्चित रूप से निशा का कदम सराहनीय कहा जाता, पर कोर्ट के फैसले ने साबित कर दिया है कि एक लड़की ने बनावटी कहानी बनाया और मीडिया ने उस आधी-अधूरी कहानी पर अपनी खबरों की मंजिल तैयार कर ली।
इस खबर को सनसनीखेज बनाने में मीडिया अपना दायित्व भूल गया। ये भी भूल गया कि उसकी आधी-अधूरी खबरों से दूसरे पक्ष को नुकसान हो सकता है।
कोर्ट ने भी माना कि मीडिया ने एकतरफा रिपोर्टिंग करके दूसरे परिवार को बहुत ठेस पहुंचाया है। कोर्ट ने इस मामले में मुनीष और उनके परिवार के लोगों के खिलाफ एकतरफा खबर लिखने के मामले में एक बड़े अखबार के रिपोर्टर के खिलाफ मुकदमा शुरू करने का आदेश भी दिया है। कोर्ट ने ये भी कहा कि जब मुनीष और निशा की शादी हुई ही नहीं तो फिर दहेज एक्ट कैसे लागू हो सकता है। इस मामले में पेंच उस समय फंसा था जब नवनीत राय ने खुद को निशा शर्मा का पति बताया। निशा ने नवनीत के खिलाफ भी केस दर्ज करा दिया था, परन्तु कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया।
दूसरी तरफ निशा के पिता इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देने की बात कह रहे हैं। पर कोर्ट में पूरे मामले की सुनवाई के दौरान जिन गवाहों और सबूतों को निशा शर्मा के परिवार की तरफ से पेश किए गए थे उसे अदालत ने आधा-अधूरा माना। कोर्ट ने ये भी माना कि निशा और नवनीत के रिश्ते काफी गहरे थे। यह भी मुनीष और उनके परिवार के बरी होने का अहम वहज बना। कोर्ट के फैसले ने साबित किया है कि मीडिया का एक तबका बिना तथ्यों की जांच किए, बिना मामले की सत्यता को परखे एकतरफा खबरें प्रकाशित की, जिससे कम से कम मुनीष का परिवार तो आहत हुआ है।