खर्चे अब बीबीसी पर भारी पड़ रहे हैं। खर्चों में कटौती के चलते बीबीसी को बुश हाउस से हटाया जा रहा है। सात दशकों तक देश-दुनिया के तमाम बदलावों और घटनाक्रम के प्रसारण का गवाह रहा बुश हाउस अब बीबीसी के अतीत का हिस्सा बनकर यहां काम कर चुके पत्रकारों औ कर्मचारियों की यादों में सिमट जाएगा। बीबीसी का कार्यालय अन्यत्र ले जाने की योजना के अन्तर्गत अब बीबीसी वर्ल्ड सर्विस बुश हाउस से मार्च के शुरू में मध्य लंदन स्थित ब्रॉडकास्टिंग हाउस चला जाएगा।
वित्तीय दुश्वारियों ने बीबीसी को झकझोर कर रख दिया है। कई भाषाओं में प्रसारण बंद किया जा चुका है। अब मात्र 27 भाषाओं में बीबीसी का प्रसारण किया जा रहा है। लंदन के इन स्ट्रैंड स्थित भारतीय उच्चायोग कार्यालय के बगल में स्थित इस इमारत में दुनिया भर के शीर्ष नेताओं, जानीमानी हस्तियों और प्रमुख लोगों का आना जाना होता था। इन हस्तियों का इंटरव्यू लंदन में मौजूद, भारत और अन्य देशों के श्रोताओं के जाने-पहचाने पत्रकार करते थे।
बुश हाउस से दशकों तक बीबीसी की हिन्दी सेवा का प्रसारण हुआ। इंदिरा तथा राजीव गांधी की हत्या जैसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम का प्रसारण भी यहीं से हुआ। ये वो दौर था जब भारत में नया मीडिया अक्सर सरकार के मुताबिक चलता था। जॉर्ज ओरवेल और वी एस नायपॉल जैसे दिग्गजों ने बुश हाउस में बरसों काम किया। उनके अलावा भारत में हिंदी और अन्य भाषाओं के श्रोताओं के बीच जाने पहचाने पत्रकारों जैसे कैलाश बुधम्वार, ओंकारनाथ श्रीवास्तव, रत्नाकर भरतिया, हरीश खन्ना, पुरूषोत्तम लाल पाहवा और अचला शर्मा ने भी बुश हाउस में काम किया।
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की शुरुआत 1932 में बीबीसी अंपायर सर्विस के तौर पर हुई थी। भारत की आजादी के पहले इसने 11 मई 1940 को हिन्दुस्तानी सर्विस शुरू कर अपनी पहली दक्षिण एशिया शाखा खोली थी। बर्मीज सेवा की शुरूआत सितंबर 1940 में हुई। इसके बाद बुश हाउस से अन्य भाषाओं की सेवाएं शुरू हुईं। मई 1941 में तमिल सेवा, नवंबर 1941 में बांग्ला सेवा, मार्च 1942 में सिंहली, अप्रैल 1949 में उर्दू सेवा तथा सितंबर 1969 में नेपाली सेवा शुरू की गई। इन सेवाओं के लिए काम कर चुके कई पत्रकारों के लिए बुश हाउस से बीबीसी का हटना एक भावनात्मक मुददा है।
वर्ष 1997 से 2008 तक हिंदी सेवा की प्रमुख रहीं अचला शर्मा ने कहा बुश हाउस में मैंने 24 साल काम किया और वर्ल्ड सर्विस के लिए इससे बेहतर जगह की मैं कल्पना नहीं कर सकती। इमारत में दुनिया भर की अलग अलग भाषाओं के शब्द अक्सर सुनाई देते थे। दुनिया भर में हर दिन होने वाले घटनाक्रमों की गवाह रही है यह इमारत। पर अब यह इमारत इतिहास का हिस्सा बनने जा रही है।
पत्रकार याद करते हैं कि बुश हाउस में साक्षात्कार के लिए आई जानी मानी हस्तियों से अनौपचारिक बातचीत भी होती थी। इन हस्तियों में रविशंकर लता मंगेशकर, मेहदी हसन, गुलामी अली, शशि कपूर, इंद्रकुमार गुजराल, टी एन कौल, लालकृष्ण आडवाणी और कुर्तुल.ऐन हैदर प्रमुख रहे। हिंदी सेवा से जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार परवेज आलम ने कहा ”बुश हाउस को पेशेवराना अंदाज और मनोरंजन का परिचायक कहा जा सकता है। भारत में बुश हाउस इतना जाना पहचाना है कि कुछ श्रोता तो पते पर केवल ‘बीबीसी, बुश हाउस, लंदन’ लिख कर पत्र भेज देते और वह पत्र हम तक पहुंच जाता।’
उन्होंने कहा, ”बुश हाउस में बिताई गई हर शाम यादगार है। कवि, कलाकार, राजनीतिज्ञ कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग के बाद रूकते और यहा के प्रख्यात क्लब में हमारे साथ बैठकर कुछ खाते पीते थे।” बुश हाउस में बरसों तक काम कर चुके भारतीय पत्रकारों में एक पंकज पचौरी भी हैं जो वर्तमान में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संचार सलाहकार हैं। बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को बरसों तक अपने आचल में सहेजने वाली इस इमारत का डिजाइन हार्वे कॉरबेट ने तैयार किया था। यह इमारत 1923 में निर्मित की गई और 1928 से 1935 के बीच इसमें अतिरिक्त निर्माण किया गया।
यह इमारत वास्तव में इरविंग टी बुश की अध्यक्षता वाले आग्ल अमेरिकी व्यापार संगठन के लिए तैयार की गई थी। इरविंग टी बुश के नाम पर ही इस इमारत को बुश हाउस कहा गया। जुलाई 1925 में यह इमारत खोली गई और करीब 20 लाख पाउंड की लागत से निर्मित बुश हाउस को दुनिया की सबसे महंगी इमारत माना गया। इतने लंबे समय में बीबीसी की सभी विदेशी भाषा की सेवाएं धीरे धीरे बुश हाउस में आती गईं। बीबीसी के पास बुश हाउस का मालिकाना हक कभी नहीं रहा। इसका मालिकाना हक चर्च ऑफ वेल्स, पोस्ट ऑफिस के पास रहा और अब यह हक एक जापानी संगठन के पास है। (इनपुट : एजेंसी)