फेसबुक पर फेस बचाने के लिए सोशल नेटवर्किंग साइटों पर रोक लगाने की मंशा के लिए कांग्रेसी नेता और आईटी मंत्री कपिल सिबल ने उनकी बैठक क्या बुलाई, उन पर शब्दबाणों के बौछार पड़ने लगे हैं। कोई उन्हें कायर कह रहा है तो कोई बेतुका, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उनके धुर विपक्षी दल यानी भारतीय जनता पार्टी ने भी इस मुद्दे पर उनका साथ देने का फैसला किया है।
साफ है लोगों की गालियां सुनने में सभी दलों के नेताओ को लगभग बराबरी का दर्ज़ा हासिल है। इंटनेट एक फ्री प्लेटफॉर्म है और इस पर लिखे गए कमेंट या की गई निंदा को पढ़ना जितना आसान है हटाना उतना ही मुश्किल। कई बार सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लिखे गए लेखों या कमेंटों का जवाब देना भी संभव नहीं होता।
दरअसल कुछ सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लेकर अश्लील तस्वीरें और अपशब्द जारी हुए थे। लाख कोशिशों के बावजूद जब कांग्रेस समर्थक आईटी विशेषज्ञ उन्हें हटा नहीं पाए तो उन्होंने आई टी मंत्री कपिल सिब्बल का दरवाजा खटखटाया।
उधर सोशल नेटवर्किंग साइट्स ऐसी किसी निगरानी के तहत काम नहीं करना चाहतीं। गूगल जैसी कंपनी ने साफ इन्कार करते हुए कहा है कि वह सिर्फ इसलिए किसी सामग्री को नहीं हटाएगी, कि वह विवादास्पद है। गूगल ने कहा है कि वह कानून का पालन कर रही है। साइबर कानून के विशेषज्ञों का भी मानना है कि इस तरह की निगरानी व्यावहारिक नहीं होगी।
वैसे तो किसी भी आम या खास हस्ती की सोशल नेटवर्किंग साइट पर धज्जियां उड़ाई जा सकती है, लेकिन इन दिनों राजनेता खास निशाने पर हैं। इन साइटों के जरिए महंगाई, कुशासन, घोटालों और अपराध से त्रस्त आम आदमी अपना गुस्सा उतारने के लिए इन राजनेताओं को आइना दिखाने की कोशिश करता है।
कई राजनेताओं ने अपने लिए आईटी विशेषज्ञों को रख कर खास साइबर प्रचार विभाग तक बना लिए हैं। ये विशेषज्ञ सोशल नेटवर्किंग साइटों पर उनके खिलाफ हुई टिप्पणियों को हटाने या उनका जवाब देने का काम करते हैं। अश्लील टिप्पणियों के लिए लगभग हर नेटवर्किंग साइट में ‘रिपोर्ट ऐब्यूज़’ जैसे ऑप्शन मौजूद हैं, लेकिन यह रिपोर्ट इस बात की गारंटी नहीं होते की उक्त टिप्पणी को वास्तव में हटा ही लिया जाएगा, और फिर इसमें भी अच्छा खासा वक्त लगता है। खास बात यह है कि ये रिपोर्ट केवल टिप्पणी या लेख के अश्लील होने की दशा में ही काम करता है, शालीन भाषा में किए गए चरित्रहनन पर नहीं।
अब सवाल यह उठता है कि अखबार और टीवी को पेड न्यूज़ जैसे उपायों से मैनेज़ करने की आदत रखने वाले ये नेता करें तो क्या करें? हर राज्य में अलग-अलग पार्टियों की सरकार है। कोई यहां पब्लिक के गुस्से का शिकार है तो कोई वहां।
जनता को खुश रखने के लिए बढ़िया काम करने की बजाय इन नेताओं को सबसे बढ़िया उपाय एक कानूनी चाबुक ही लग रहा है, लेकिन वे शायद भूल रहे हैं कि अगर आम-आदमी को अपनी भड़ास निकालने के लिए फेसबुक और गूगल प्लस जैसे ऑप्शन नहीं दिए गए तो हर दिन किसी न किसी गली में कोई न कोई नौजवान किसी न किसी राजनेता को थप्पड़ रसीद करता नजर आएगा।
Jab netaon ki sachhai samne aane lage to social networking wbsite ko bol rhe hai jab paisa or bharashachar badhaya to kisi janta ko poochha tha nahi. To ye sahi hai
jai bhart mata in bharshtacharion ko utha ….
JAB RAJ NETAO KI KALAYEE KHULNE KA SAMAY AAYA TO UNKA CHRITYA UNKE KRITY UNKA AASATIYA UNKI CHORIYNA UNA KA FAREB UNAKI BEMAANIYA BAHAR AANE LANGI TO JANTA KI MUKHAR AABAJ KO DABANE KI KOSHISH HAI MAGAR YE KOSHISH BAKAR JAYEGI JANTA KA SAMNA TO KARNAHI HOGA 1 AAPRADHA ORR JODAJAYGA IESI SUCHI MAI HAMARA GALA DABANE KI KOSHISH BHI KI GAYEE THI JAISHRI RAM BHARAT MAMTA KI JAI