– राजीव गुप्ता||
फ़्रांस की 1756 की क्रांति का इतिहास साक्षी है , जो कि कोई सुनियोजित न होकर जनता के आक्रोश का परिणाम थी ! जब जनता किंग लुईस के शासन में महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान होकर सडको पर उतरी और तो पूरे राजघराने को ही मौत के घाट उतारते हुए अपने साथियों को ब्रूस्सील ( Brusseel ) जेल को तोड़कर बाहर निकाल कर क्रांति की शुरुआत की ! परिणामतः वहां लोकतंत्र के साथ – साथ तीन नए शब्द Liberty , Equality , Fraternity अस्तित्व में आये ! वास्तव में उस समय राजघराने का जनता की तकलीफों से कोई सरोकार नहीं था ! इसका अंदाजा हम उस समय की महारानी मेरिया एंटोनियो के उस वक्तव्य से लगा सकते है जिसमे उन्होंने भूखमरी और महंगाई से बेहाल जनता से कहा था कि ” अगर ब्रेड नहीं मिल रही तो केक क्यों नहीं खाते ! “
ऐसी ही एक और क्रांति सोवियत संघ में भी हुई थी ! जिसका परिणाम वहां की जारशाही का अंत के रूप में हुआ था ! कारण लगभग वहां भी वही थे जो कि फ़्रांस में थे जैसे खाने-पीने की वस्तुओं का आकाल , भ्रष्टाचार में डूबी सत्ता और सत्ता के द्वारा जनता के अधिकारों का दमन ! सोवियत संघ में लोकतंत्र तो नहीं आया परन्तु वहां कम्युनिस्टों की सरकार बनीं !
आंकड़ो की बाजीगीरी सरकार चाहे जितनी कर ले पर वास्तविकता इससे कही परे है ! बाज़ार में रुपये की कीमत लगातार गिर रही है अर्थात विदेशी निवेशक लगातार घरेलू शेयर बाज़ार से पैसा निकाल रहे है ! गौरतलब है कि रुपये की कीमत गिरने का मतलब विदेशी भुगतान का बढ़ जाना है अर्थात पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतें और बढ़ेगी ही जिससे कि अन्य वस्तुओ की कीमतों में भी इजाफा होगा ! महंगाई को सरकार पता नहीं क्यों आम आदमी की समस्या नहीं मानना चाहती ? एक तरफ जहां हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री दुनिया के माने हुए अर्थशास्त्री है , विदेशों में जाकर आर्थिक संकट से उबरने की सलाह देते है और अपने देश में मंहगाई से आम आदमी का कचूमर निकाल कर कहते है कि हमारे पास कोई जादू की छडी नहीं है तो दूसरी तरफ वित्त मंत्री जी महंगाई कम होने की तारीख पर तारीख देते रहते है जैसे कि कोई अदालतीये कार्यवाही में तारीख दे रहे हो !
उदारवादी आर्थिक नीतियों का फायदा सीधे – सीधे पूंजीपतियों को ही होता है और आम आदमी महंगाई के बोझ – तले पिस जाता है ! अब असली मुद्दा यह है कि आम आदमी जाये तो कहा जाये ? ऐसे में जनता में सरकार के प्रति आक्रोश तो लाज़मी ही है ! जनता का यह आक्रोश कोई विकराल रूप ले ले उससे पहले सरकार को आत्मचिंतन कर इस सुरसा रूपी महंगाई की बीमारी से जनता को निजात दिलाना ही होगा, क्योंकि एक बार राम मनोहर लोहिया जी ने भी कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं किया करती है , ऐसे में मुझे लगता है कि कही ये थप्पड़ किसी क्रांति का आगाज़ तो नहीं है !
Like this:
Like Loading...
ये तो कास्टिंग है फिल्मे तो सुरु होना बाकी है…………… समय आएगा कला बाजार फिल्मे के तरह ये देश की मांग है ………………………………………………………………………………………………………. गुड बाय पबार
सरकार को जल्द से जल्द महगाँई से निपटने का कोई रास्ता निकालना होगा जिससे आम आदमी कम से कम जीवनयापन तो कर सके वरना सम्भंवत ही जनता के अदंर भडक रही आग एक भयानक रुप ले लेगी
स्वर्ण क्रान्ति :
इस देश को अब चुनाव और नेताओं की नहीं क्रांति और क्रांतिकारियों की जरूरत है, अब इस देश को और इस देश की आने वाली पीढियों को “स्वर्ण क्रांति” ही एक उज्जवल और सुरक्षित भविष्य दे सकती है वैसे भी हमने आज़ादी क्रांति करके हासिल की थी न की चुनाव लड़कर.
स्वर्ण क्रांति – जो स्वतंत्र भारत को फिर से स्वर्ण भारत बना देगी क्या आप पूरी देशभक्ति से इस स्वर्ण क्रांति में मेरा साथ देंगे
संदीप भारत”देशभक्त”