दो साल पहले कोरोना के फैलाव का ठीकरा जिस तरह मुस्लिम समुदाय पर फोड़ा गया था, वो गलत था और उसकी निंदा भी की गई थी। लेकिन तब हमने ये भी लिखा था कि मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा कठमुल्लेपन की गिरफ़्त में है। इससे बाहर निकलना उसकी पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। उसे अशिक्षा और ग़रीबी से जूझ रहे अपने लोगों की बेहतरी के लिए सोचना चाहिए और कुछ ठोस कदम तुरंत उठाना चाहिए। लेकिन हाल की कुछ घटनाओं को देखें तो लगता नहीं कि देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय ने अपनी बदनामी से कोई सबक लिया है।
बेशक, अपने समुदाय के सामूहिक नरसंहार के आह्वान या अपनी औरतों के साथ दुष्कर्म की धमकियों पर कोई प्रतिक्रिया न देकर उसने समझदारी बरती, लेकिन हिजाब विवाद से लेकर नुपुर शर्मा तक के मामले में यह समझदारी जैसे ताक पर रख दी गई।
ताज़ा मामला मध्यप्रदेश के शाजापुर का है। यहां नगरपालिका के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार समीउल्लाह खान की जीत का जश्न मनाने के लिए जुलूस निकाला गया।
जुलूस में शामिल कुछ लोगों ने पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगा दिए। हिन्दूवादी संगठनों ने इस नारेबाजी का विरोध करते हुए पुलिस को शिकायत कर दी, जिसके आधार पर जुलूस का नेतृत्व करने वाले पार्षद समीउल्लाह के खिलाफ पुलिस ने एक से ज़्यादा धाराओं में मामला दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया और वहां से उसे उज्जैन जेल भेज दिया गया। समीउल्लाह पर पहले से ही कुछ मामले दर्ज हैं। उसके आपराधिक रिकार्ड को देखते हुए उसके खिलाफ रासुका के तहत कार्रवाई की गई है। हालांकि अभी यह कहा नहीं जा सकता कि नारे लगाने वाले लोग कौन थे, लेकिन जो कुछ हुआ, वह निहायत गैरजरूरी था और उसकी ज़िम्मेदारी तो समीउल्लाह पर ही आयद होती है।
इससे पहले उदयपुर के कन्हैयालाल की दिनदहाड़े की गई नृशंस हत्या की स्याही सूखी नहीं थी कि कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ जिले के बेल्लारे में भाजपा युवा मोर्चा के जिला सचिव प्रवीण नेट्टारू की हत्या कर दी गई। स्थानीय हिंदू संगठनों का दावा है कि एक मुस्लिम युवक मसूद की हत्या के प्रतिशोध लेने के लिए ऐसा किया गया। कन्हैया की हत्या के विरोध में सोशल मीडिया पर प्रवीण की पोस्ट को भी इसका कारण बताया जा रहा है। स्थानीय हिंदू संगठनों और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस मामले को कुछ इस्लामिक संगठनों से जोड़ दिया है। कर्नाटक और केरल की सीमा के पास हुए इस काण्ड को लेकर श्री जोशी ने कहा कि इन संगठनों को केरल में बढ़ावा दिया जा रहा है और कर्नाटक में इन्हें कांग्रेस का समर्थन है। इस घटना का सच अभी सामने आना बाकी है, लेकिन शक की सुई कहां और क्यों ठहर रही है, कहने की जरूरत नहीं।
इस साल की शुरुआत में कर्नाटक के उडुपी से उठे हिजाब विवाद के बाद प्रदेश के सभी शिक्षण संस्थानों में हिजाब सहित कोई भी धार्मिक चिन्ह धारण करने पर पाबंदी लगा दी गई थी। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने भी कहा कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य नहीं है, लेकिन कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसका तोड़ निकालने की कोशिश की है। ख़बर है कि वे राज्य में दर्जन भर से ज़्यादा नए निजी कॉलेज शुरू करना चाहते हैं। इन कॉलेजों में हिजाब पर बंदिश नहीं होगी। एक अखबार के मुताबिक मुस्लिम संगठनों की ओर से निजी कॉलेज खोलने के एक साथ इतने आवेदन पहले कभी नहीं मिले थे। पिछले 5 साल में तो उन्होंने एक भी आवेदन नहीं किया। इस पहल से जाहिर होता है कि मुस्लिम समुदाय को लड़कियों की पढ़ाई की कम, अपनी मजहबी ज़िद पूरी करने फिक्र ज़्यादा है। यह ज़िद पूरी होगी या नहीं, पता नहीं लेकिन तय है कि इससे हिन्दू-मुस्लिम विभाजन बढ़ेगा ही।
हमारा देश लगातार सांप्रदायिकता के दुष्परिणाम भोग रहा है। सदियों पुरानी जिस गंगा-जमुनी रवायत पर हमें नाज़ रहा है, वो बीते कल की बात बनती जा रही है। एक समुदाय की कट्टरता, दूसरे समुदाय की कट्टरता के लिए ईंधन का काम कर रही है और जैसे इस बात की प्रतिस्पर्धा चल रही है कि कौन कितना सांप्रदायिक हो सकता है। ऐसे में किसी देवी-देवता की शोभायात्रा में लोगों को शरबत पिलाने या कांवड़ियों पर फूल बरसाने का तब तक कोई मतलब नहीं है, जब तक आप अपने दुराग्रह छोड़कर अपनी बदहाली से उबरने की कोशिश न करें। इसके साथ ही नेकी के वो सारे काम जारी रखें, जो केवल और केवल इंसानियत के नाते किए जाते रहे हैं। यह भी याद रखा जाना चाहिए कि हिंसा का जवाब हिंसा नहीं हो सकता। यह एक अंतहीन सिलसिला है, जिसके लिए महात्मा गांधी ने कहा था कि आंख का बदला आंख से लेने पर पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी।
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