देश में अब तक बढ़ती महंगाई, घटते रोजगार, सांप्रदायिक सद्भाव के ताने-बाने का बिखरना, अर्थव्यवस्था का लड़खड़ाना, स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव, शिक्षा का गिरता स्तर, प्रदूषण, कुपोषण, भ्रष्टाचार जैसी तमाम ज्वलंत समस्याओं पर चिंता जतलाई जाती थी कि इनका हल कैसे निकलेगा। इनमें से कई समस्याओं के ठीक होने से आम आदमी का जीवन बेहतर हो सकता है। हालांकि भारत का साधारण, गरीब आदमी, तमाम तकलीफों के बावजूद इस आस पर जीवन काट ही लेता है कि कभी उसके साथ कुछ गलत हुआ तो संविधान में दिए अधिकार उसकी रक्षा करेंगे, कानून उसकी हिफाज़त करेगा, क्योंकि न्याय व्यवस्था में हर कोई एक बराबर है, किसी के साथ नाइंसाफी की गुंजाइश नहीं है। मगर देश के हालात इस वक्त जिस तरह बने हुए हैं, उसके बाद सवाल उठता है कि क्या वाकई ऐसा है।
उत्तरप्रदेश चुनाव में आदित्यनाथ योगी ने बुलडोजर को अपनी मजबूती का प्रतीक बनाकर जनता के सामने पेश किया था। उन्होंने जनता को ये यकीन दिलाने में कामयाबी हासिल कर ली थी कि गुंडों, अराजक तत्वों और माफिया पर उनका बुलडोजर चलेगा और प्रदेश अपराध मुक्त हो जाएगा। हालांकि तब जनता की ओर से ये सवाल होना चाहिए था कि बुलडोजर हो या बुलेट, औजार कोई भी हो, न्याय करने का काम तो अदालत का है। फिर सरकार अदालत के कार्यक्षेत्र में दखल देकर किस तरह का प्रदेश बनाना चाहती है। जाहिर है ये सवाल नहीं किया गया और मुख्यमंत्री बनने के बाद श्री योगी को चांदी का बुलडोजर भेंट कर उनके इरादों पर सवर्ण, संपन्न तबके की ओर से मुहर लगाई गई। अब आलम ये है कि उत्तरप्रदेश सरकार में अदालतों की प्रासंगकिता खत्म की जा रही है। हाल ही में जिस तरह जावेद मोहम्मद का घर प्रयागराज में बुलडोजर से ढहाया गया और इसके साथ उनकी पत्नी और बेटी को बिना किसी अपराध के थाने में रखा गया, यह इस बात का उदाहरण है कि पुलिस प्रशासन, सरकार के निर्देशों पर काम करते हुए अदालत के अधिकार क्षेत्र में दखल दे रहा है और हैरानी की बात ये है कि इस पर चंद लोग ही सवाल उठा रहे हैं, बहुसंख्यक जनता इसे मजबूत सरकार का उदाहरण मान रही है। हालांकि जनता को ये याद रखना चाहिए कि नाइंसाफी की आग फैलती है तो फिर सभी को अपनी चपेट में लेती है।
गौरतलब है कि नूपुर शर्मा के पैगम्बर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के बाद प्रयागराज में जुमे की नमाज़ के बाद हुए पथराव और हिंसा हुई और इस मामले में पुलिस ने जावेद मोहम्मद को मुख्य अभियुक्त बताते हुए गिरफ़्तार किया और फिर रविवार को प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) ने उनके घर को ढहा दिया। पीडीए ने कहा कि जावेद मोहम्मद का घर अवैध तरीके से बनाया गया था और उन्हें मई महीने में ही इस सिलसिले में नोटिस भेजा गया था। हालांकि घर उनकी पत्नी परवीन फ़ातिमा के नाम है। जो उनको उनके पिता से मिला था। इस घर का नक्शा पारित नहीं हुआ है, लेकिन जावेद मोहम्मद की बेटी सुमैया फातिमा ने बताया कि केवल उनका ही नहीं प्रयागराज में बहुत से घरों का नक्शा पारित नहीं हुआ है। परवीन फातिमा अपने घर के पानी का बिल और हाउस टैक्स भी अदा करती हैं, प्रयागराज जल विभाग, प्रयागराज नगर निगम से मिली रसीदें इसका प्रमाण हैं। जब नगरीय प्रशासन बिल वसूल रहा था, क्या तब इस ओर ध्यान नहीं गया कि ये मकान वैध है या अवैध।
सवाल ये भी है कि अगर किसी व्यक्ति को किसी घटना का मास्टरमाइंड बताया जाता है तो क्या उसके परिवार को भी पुलिस थाने बुलाती है, या अवैध मकान होने के जुर्म में किसी नागरिक को पुलिस थाने में बिठाया जा सकता है। जावेद मोहम्मद के परिवार के साथ ऐसा ही हुआ है। शुक्रवार को पहले पुलिस उन्हें ले गई, बाद में उनकी पत्नी और बेटी को महिला थाने ले जाया गया। उनकी बेटी के मुताबिक कुछ महिला पुलिसकर्मियों ने उन्हें धमकी दी, और फिर एक पुरुष पुलिसकर्मी ने आकर अपशब्द भी कहे। शुक्रवार और शनिवार उन्हें वहां रखने के बाद रविवार को एक रिश्तेदार के घर छोड़ दिया गया और कुछ देर बाद उनके मकान को ढहा दिया गया।
तीन दिन तक उत्तर प्रदेश में कानून का, न्याय व्यवस्था का तमाशा बनता रहा और अब भी इंसाफ की कोई सूरत नजर नहीं आ रही है। जावेद मोहम्मद के परिवार के वकील का कहना है कि भले ही नक्शा पास न हो फिर भी उत्तर प्रदेश अर्बन डेवलेपमेंट एक्ट में घर गिराने का प्रावधान नहीं है। वो घर सील कर सकते थे। दलील तो सही है, लेकिन कानून के प्रावधान के मुताबिक चलना होता तो इस तरह एक दिन के नोटिस पर बसे-बसाए आशियाने को बुलडोजर से रौंदा नहीं जाता। यहां मकसद सत्ता की ताकत दिखाना है, ताकि समाज में हाशिए पर खड़े लोग थोड़ा और डरें, खुद को थोड़ा और लाचार महसूस करें। इन हालात में अदालत स्वत: संज्ञान लेकर दखलंदाजी कर सकती है, ताकि उसके अधिकारों का अतिक्रमण न हो।
वैसे उत्तरप्रदेश में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ़ की जा रही कार्रवाई को लेकर कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने पत्र लिखकर अदालत से आग्रह किया है कि वो मुस्लिम नागरिकों के खिलाफ राज्य के अधिकारियों द्वारा जिस तरह हिंसा और दमन का रास्ता अपनाया जा रहा है, उस पर दखल दें। पत्र में कहा गया है कि उप्र में अवैध हिरासत, नूपुर शर्मा के बयान का विरोध करने वालों, हिरासत में रखे गए लोगों पर हिंसा और घरों पर बुलडोज़र चलाने जैसी हालिया गतिविधियों पर अदालत स्वत: संज्ञान ले। पूर्व जजों और कानूनविदों ने याद दिलाया है कि ऐसे महत्वपूर्ण समय में न्यायपालिका की योग्यता की परीक्षा होती है। न्यायपालिका अतीत में लोगों के अधिकारों की संरक्षक के रूप में विशिष्ट तौर पर उभरी है। पत्र में सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह लॉकडाउन, पेगासस मामले और 2020 में प्रवासी मजदूरों की मजबूरन घरवापसी जैसे मामलों में स्वत: संज्ञान लिया था, उसके उदाहरण भी पेश किए गए हैं।
जावेद मोहम्मद का घर तो सत्ता की हनक में ध्वस्त कर दिया गया है, जो शायद फिर से बन भी जाएगा। लेकिन संविधान की मर्यादा और न्याय व्यवस्था पर भरोसा जमींदोज हुआ तो फिर उसे दोबारा खड़ा करना कठिन होगा। जनता इस पर विचार करे।
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