-सर्वमित्रा सुरजन॥
सिकंदर और पोरस की कहानी अब भूलने का वक्त आ गया है, जहां एक हारा हुआ राजा, विजेता से बराबरी के व्यवहार की उम्मीद कर रहा था। अब सम्मान में नहीं अपमानित करने में बराबरी की जा रही है। माननीय मुख्यमंत्री जैसे शब्द थूक और झूठ में लिपटकर सुनो फलाने, सुनो ढिकाने तक पहुंच गए हैं। अब हिंदुस्तान की जनता उठे और सुनने-सुनाने वाले इन लोगों को जवाब दे,वर्ना देश पूरी तरह मिट्टी में मिल जाएगा।
भारत की पहचान, यानी अनेकता में एकता वाली हमारी खासियत पर पिछले सात-आठ सालों से हमले तेज हो गए हैं। ये हमले अंग्रेजों जैसे बाहरी शासक भी नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस देश के भीतर बैठे स्वघोषित राष्ट्रवादी इसके लिए जिम्मेदार हैं। और जब-जब ऐसा लगता है कि अब इससे अधिक बुरा और क्या होगा, इससे अधिक नीचता अब कहां देखने मिलेगी, संविधान का, संसद का, लोकतंत्र का इससे अधिक अपमान और क्या होगा, तभी कट्टरपंथी राष्ट्रभक्त अपने पिटारे से कोई नया माल नफरत के बाजार में पेश कर देते हैं। पिछले तीन-चार दिनों की घटनाओं को ही उठा कर देख लीजिए, हर दिन नीचता का एक नया उदाहरण देश के सामने पेश किया गया। मानो भारत की लोकतांत्रिक जनता के लिए विकल्प प्रस्तुत किए जा रहे हैं कि इनमें से किसी एक विकल्प पर निशान लगाइए और चुनिए कि इनमें से देश को सबसे अधिक किसने नुकसान पहुंचाया है।
पहली घटना शाहरुख खान की तस्वीर पर खड़े किए गए विवाद की है। लता मंगेशकर के निधन के बाद उन्हें अंतिम विदाई देने शाहरुख खान अपनी मैनेजर पूजा डडलानी के साथ पहुंचे। इस्लाम धर्म के मुताबिक शाहरुख खान ने आत्मा की शांति के लिए दुआ पढ़ी और पूजा डडलानी ने हिंदू रिवाजों के अनुसार हाथ जोड़कर प्रार्थना की। दुआ के लिए उठे और प्रार्थना के लिए जुड़े हाथों की तस्वीर एक ही फ्रेम में कैद हुई और सोशल मीडिया पर वायरल भी हो गई कि यही है असली भारत, यही है भारत की सही पहचान। लेकिन जल्द ही इस तस्वीर के साथ एक वीडियो भी वायरल हो गया और लोगों को ये अहसास होने लगा कि जिस भारत की पहचान पर वे अब तक इठलाते रहे हैं, उसे दरअसल कितना विकृत कर दिया गया है।
वीडियो में दिख रहा है कि शाहरुख खान दुआ पढ़ते हैं, फिर अपना मास्क नीचे करके फूंकते हैं। माना जाता है कि दुआ पढ़ने के बाद फूंकने से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं। और यही शाहरुख खान ने भी किया। लेकिन जिन लोगों को नफरत से हो प्यार, वो इस तस्वीर को कैसे करेंगे स्वीकार। सो, सिलसिला शुरु हुआ नफरत फैलाने का। भाजपा आईटी सेल के प्रभारी अरुण यादव ने इस वीडियो को ट्विटर पर लगाते हुए सवाल पूछा क्या इसने थूका। इसके बाद कुछ और नामी-गिरामी लोगों ने भी शाहरुख खान के थूकने पर सवाल उठाए, उनसे स्पष्टीकरण मांगा, और हद तो ये है कि ग्वालियर में हिंदू महासभा ने सोमवार को जिला प्रशासन के अधिकारियों से शाह रुख खान के खिलाफ लिखित शिकायत करते हुए उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज करने की मांग उठाई।
शाहरुख खान को पता है कि उन्होंने क्या किया, और जिन लोगों ने उनके खिलाफ जबरन झूठ फैलाने की कोशिश की, उन्हें भी पता है कि वे क्या कर रहे हैं। फिर भी यह झूठ सोशल मीडिया पर प्रसारित हो रहा है। सच्चाई कितने लोगों तक पहुंचेगी, यह कोई नहीं जानता। लेकिन झूठ करोड़ों लोगों तक पहुंचाया जाएगा, यह तय है। क्योंकि भाजपा के बड़े नेताओं ने अरुण यादव के इस बेसिरपैर के ट्वीट की न निंदा की, न शाहरुख खान के समर्थन में बढ़कर कुछ कहा। जिन लोगों ने बिना इंटरनेट के रातोंरात गणेश की मूर्ति को दूध पिलाने की अफवाह दुनिया भर में फैला दी, उनके लिए तो अब झूठ और नफरत का कारोबार और आसान हो गया है, क्योंकि सरकार उनकी ही है।
दूसरी घटना कर्नाटक से सामने आई। जनवरी की शुरुआत से ही शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने का विवाद वहां खड़ा हो गया है और अब इसने वहां बाकायदा सांप्रदायिक रंग ले लिया है। हिजाब पहनी छात्राओं को पहले स्कूल में प्रवेश से रोका, फिर उनके विरोध में हिंदू छात्रों या सरकार समर्थकों गुंडों ने भगवा गमछा पहन कर हिंदुत्व की दबंगई दिखाई, हिजाब के समर्थन में छात्राओं ने जब प्रदर्शन किया, तो वहां से घातक हथियारों के साथ दो लोगों को पुलिस ने पकड़ा, एक जगह प्रदर्शन के दौरान पथराव हुआ, एक शिक्षण संस्थान में तिरंगा फहराने वाले खंभे पर भगवा झंडा फहरा दिया गया, हालात संभालने में नाकाम कर्नाटक की भाजपा सरकार ने तीन दिन के लिए स्कूल-कॉलेज ही बंद कर दिए हैं।
लेकिन इस बीच एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें अपने दोपहिया वाहन से हिजाब पहने एक छात्रा जब कॉलेज पहुंची, तो भगवाधारी लड़कों ने उसका विरोध किया, उसके सामने लगभग धमकाते हुए अंदाज में जय श्री राम के नारे लगाए। लेकिन वह छात्रा गुंडों की उस भीड़ के सामने अल्ला हू अकबर कहते हुए कॉलेज के भीतर चली गई। उस छात्रा ने बताया कि उसे डर लगा, लेकिन कॉलेज के प्रिंसिपल को देखकर उसे हिम्मत मिली। कर्नाटक के इन प्रसंगों से पता चलता है कि सांप्रदायिकता की अमरबेल अब केवल सोशल मीडिया या राजनैतिक मंचों तक ही नहीं फैली है, बल्कि शिक्षण संस्थानों तक इसका फैलाव हो चुका है और यह बड़ी तेजी से हिंदुस्तान का जीवनदायी रस सोख रही है।
ये शर्मनाक प्रसंग तो केवल झलकियां थे, झूठ और विष वमन की पूरी पिक्चर नजर आई संसद में। जहां दोनों सदनों में प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के जवाब में कांग्रेस के खिलाफ जहर उगलने के अलावा कुछ नहीं कहा। गोवा की आजादी से लेकर महंगाई तक प्रधानमंत्री ने पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की। गरीबों को घर, शौचालय, उनके खातों में धन पहुंचाने को लेकर झूठे दावे किए और हद तो तब हो गई जब कोरोना काल में लोगों की मदद करने को कांग्रेस का पाप बता दिया।
जबकि सभी जानते हैं कि अचानक लॉकडाउन थोपने का फैसला मोदीजी का था और उससे पहले जब विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना को लेकर महामारी की चेतावनी दे रहा था, तब मोदीजी फरवरी 2020 में डोनाल्ड ट्रंप के स्वागत-सत्कार में लगे थे। जब कांग्रेस के नेताओं ने कोरोना की रोकथाम और लोगों की मदद के लिए सलाह दी, तो उन्हें मोदीजी ने नजरंदाज किया। उन्हें आक्सीजन के लिए तड़पते और लाश जलाने के लिए परेशान लोग भी नजर नहीं आए। वे मोर को दाना चुगाने में लगे थे। ऐसी निर्लज्जता और क्रूरता भारत ने पहले कभी नहीं देखी। मोदीजी ने ये भी मुमकिन कर दिखाया।
संसद के इन भाषणों से मोदीजी की जितनी फजीहत हुई है, वो उन्हें वक्तके साथ पता चल ही जाएगी। क्योंकि कांग्रेस पर लगाए आरोपों के बावजूद वो अपने शासनकाल की नाकामियों पर सफाई पेश नहीं कर पाए हैं। इसलिए महंगाई, बेरोजगारी, विदेशनीति, पेगासस जासूसी, किसानों के मसले जैसे सवाल बने ही हुए हैं। वैसे हिंदुस्तान को शर्मिंदा करने वाली इन घटनाओं में एक और प्रसंग अभी जुड़ना बाकी ही था। मोदीजी ने संसद में कोरोना को लेकर जो कुछ दावे किए, उसके बाद उत्तरप्रदेश और दिल्ली के मुख्यमंत्रियों ने एक-दूसरे के लिए जिस भाषा में ट्वीट किए, वो अब तक की राजनीति में अकल्पनीय ही थे। आदित्यनाथ योगी ने ट्वीट किया था, ‘सुनो केजरीवाल’ जब पूरी मानवता कोरोना की पीड़ा से कराह रही थी, उस समय आपने यूपी के कामगारों को दिल्ली छोड़ने पर विवश किया। इसके जवाब में अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया- ‘सुनो योगी’ आप तो रहने ही दो। इसके बाद उन्होंने गंगा में लाशें बहाने आदि का जिक्र करते हुए योगी को निर्दयी और क्रूर शासक बताया, जबकि योगी ने केजरीवाल के लिए झूठ बोलने का महारथी जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया।
सिकंदर और पोरस की कहानी अब भूलने का वक्त आ गया है, जहां एक हारा हुआ राजा, विजेता से बराबरी के व्यवहार की उम्मीद कर रहा था। अब सम्मान में नहीं अपमानित करने में बराबरी की जा रही है। माननीय मुख्यमंत्री जैसे शब्द थूक और झूठ में लिपटकर सुनो फलाने, सुनो ढिकाने तक पहुंच गए हैं। अब हिंदुस्तान की जनता उठे और सुनने-सुनाने वाले इन लोगों को जवाब दे, वर्ना देश पूरी तरह मिट्टी में मिल जाएगा।
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