-प्रशान्त टण्डन॥
कांग्रेस के पिछले तीन प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के दौर में पार्टी अपनी वैचारिक ज़मीन से खिसकती रही. नतीजा ये हुआ कि राहुल गांधी को सबसे कमज़ोर और कन्फ्यूज़्ड कांग्रेस मिली.
टाटा, अंबानी और उद्योगपतियों की एक लॉबी और इनका मीडिया राहुल गांधी के एक दम खिलाफ है. कुछ कांग्रेसी नेता जो वैचारिक रूप से राहुल के साथ नहीं हैं वो भी इसी भीड़ में शामिल हो लिए हैं.
राहुल गांधी को सबसे बड़ा झटका अपने हम उम्र और कांग्रेसी नेताओं की दूसरी पीढ़ी से लगा.
ज्योतिरादित्य सिंधिया और जीतेन प्रसाद बीजेपी में जा चुके है. मिलिंद देवरा और सचिन पायलट भी वैचारिक रूप से वहां नहीं हैं जहां राहुल गांधी पार्टी को ले जाने का प्रयास कर रहे हैं.
इन सब रुकावटों और विपरीत स्थिती में धीरे धीरे राहुल गांधी पार्टी को एक रूप देने में कामयाब हो रहे हैं.
टीवी में आने वाले कांग्रेस प्रवक्ता अब ज्यादा बोल्ड हैं और किसी वैचारिक कंफ्यूज़न में नहीं हैै. पवन खेड़ा, सुप्रिया श्रीनेत और गौरव वल्लभ के सामने बीजेपी के प्रवक्ता एंकरों की मदद के बावजूद टिक नहीं पा रहे हैं.
याद कीजिये जब मनीष तिवारी और संजय झा टीवी में आते थे तब क्या हाल था.
इस नई कांग्रेस में भूपेश बघेल और चरण जीत सिंह चन्नी जैसे नेता ज्यादा दिखाई देंगे. चन्नी जो बोल रहे हैं वो नई कांग्रेस की भाषा है.
राहुल गांधी का ये प्रोजेक्ट कुछ साल पहले शुरू हुआ तब कुछ वामपंथी विचारों के लोग कांग्रेस में शामिल हुए. सबकी राहुल गांधी से प्राइवेट मुलाकात होती थी.
इस नई कांग्रेस में भूपेश बघेल और चरण जीत सिंह चन्नी जैसे नेता ज्यादा दिखाई देंगे. चन्नी जो बोल रहे हैं वो नई कांग्रेस की भाषा है.
राहुल गांधी का ये प्रोजेक्ट कुछ साल पहले शुरू हुआ तब कुछ वामपंथी विचारों के लोग कांग्रेस में शामिल हुए. सबकी राहुल गांधी से प्राइवेट मुलाकात होती थी.
ऐसी ही एक प्रायवेट मीटिंग में पार्टी में शामिल होने वाले एक वामपंथी नेता से राहुल गांधी ने कहा था कि “मैं चाहता हूं आप जैसे और लोग शामिल हों तभी तो मैं ##### जैसे नेताओं से पार्टी के अंदर लड़ पाऊंगा”
जिग्नेश मेवाणी और कन्हैया कुमार का कांग्रेस में आना उसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है.
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