पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बने नए रक्षा कार्यालय परिसरों का उद्घाटन किया था, इस दौरान श्री मोदी ने सेंट्रल विस्टा परियोजनाओं के आलोचकों को जवाब देते हुए कहा था कि मुझे 2014 में आपने सेवा का मौका दिया था। मैं सरकार में आते ही संसद भवन को बनाने का काम शुरू कर सकता था। लेकिन हमने यह रास्ता नहीं चुना।
सबसे पहले हमने देश के लिए जान देने वालों के लिए स्मारक बनाना तय किया। सेंट्रल विस्टा पर कुछ लोगों ने भ्रम फैलाने का काम किया है। आजादी के तुरंत बाद जो काम होना चाहिए था, उसे हम आज कर रहे हैं। देश के दफ्तरों को ठीक करने का बीड़ा उठाया। सबसे पहले हमने देश के शहीदों को सम्मान देने का काम किया।
प्रधानमंत्री ने इस दौरान सेंट्रल विस्टा परियोजना की वेबसाइट को भी लॉन्च किया। इसमें ब्रिटिश राज से लेकर अब तक के भारत के शक्ति केंद्रों को दिखाया गया है, साथ ही परियोजना से जुड़ी सारी जानकारियां भी इसमें दी गई हैं। इसके अलावा वेबसाइट पर परियोजना से जुड़े मिथकों का पर्दाफाश करने के लिए एक खास सेक्शन रखा गया है, जहां हर सवाल का जवाब बारीकी से दिया गया है।
गौरतलब है कि 20 हजार करोड़ रुपए की सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत एक नए संसद भवन के साथ ही प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति के आवास के साथ कई मंत्रालयों के कार्यालय और केंद्रीय सचिवालय भी बनाए जाएंगे। इस परियोजना के तहत राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक की दूरी तक मकान बनाए जाएंगे। नॉर्थ ब्लॉक व साउथ ब्लॉक को म्यूजियम बना दिया जाएगा जबकि मौजूदा उप राष्ट्रपति भवन को गिरा दिया जाएगा।
एक ऐसे वक्त में जब देश की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है, बेरोजगारी और महंगाई से जनता त्रस्त हैं, उस वक्त 20 हजार करोड़ की इस परियोजना की जरूरत पर आलोचकों ने सवालकेआ उठाए हैं। सरकार से पूछा जा रहा है कि महामारी के दौरान जनता की मदद के लिए उसे नकदी सहायता देना ज्यादा जरूरी है, या नए संसद भवन का निर्माण जरूरी है। इस परियोजना के कारण पर्यावरण को पहुंचने वाले नुकसान को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई। हालांकि केंद्र सरकार ऐसी हर आलोचना और चिंता को खारिज करती आई है।
उच्चतम न्यायालय तक भी इस परियोजना को रोकने का मामला पहुंचा था, लेकिन सर्वोच्च अदालत ने परियोजना पर रोक नहीं लगाई। अब सेंट्रल विस्टा का काम जोर-शोर से चल रहा है। जब लॉकडाउन के कारण बहुत से जरूरी काम बंद थे, तब भी सेंट्रल विस्टा के लिए मजदूर दिन-रात काम कर रहे थे। सरकार चाहती है कि अगले साल के गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी 2022 तक परियोजना पूरी हो जाए। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि अगले साल संसद का शीतकालीन सत्र नए संसद भवन में होगा।
सरकार की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं, जिन्हें पूरा करने की शक्ति और संपत्ति दोनों उसके पास है। लेकिन इस बीच सेंट्रल विस्टा परियोजना को लेकर कुछ और सवाल उठे हैं, जिनके जवाब देने में सरकार को ढील नहीं देनी चाहिए। दरअसल पिछले दिनों दिल्ली वक्फ बोर्ड ने सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत काम करने वाले स्थानों के आसपास और आसपास स्थित छह धार्मिक संपत्तियों के संरक्षण और संरक्षण के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। वक्फ बोर्ड की याचिका में कहा गया है कि छह संपत्तियों में पांच मस्जिदें शामिल हैं जो 100 साल से अधिक पुरानी हैं।
इसमें मानसिंह रोड पर मस्जिद ज़ब्ता गंज, रेड क्रॉस रोड पर जामा मस्जिद, उद्योग भवन के पास मस्जिद सुनहरी बाग, मोती लाल नेहरू मार्ग के पीछे मजार सुनहरी बाग, कृषि भवन परिसर के अंदर मस्जिद कृषि भवन और भारत के उपराष्ट्रपति के आधिकारिक आवास परिसर में स्थित मस्जिद शामिल हैं। इन ऐतिहासिक महत्व वाली धार्मिक संपत्तियों के लिए दिल्ली वक्फ बोर्ड ने सुरक्षा की मांग की है।
दिल्ली वक्फ़ बोर्ड ने अदालत में दायर अर्जी में कहा है कि ये मौजूदा इबादतगाह हैं, लोगों की संवेदना से जुड़े हुए हैं और यह जरूरी है कि यह स्पष्ट किया जाए कि इनका भविष्य क्या होगा। इस याचिका पर केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा से कहा कि वह एक सप्ताह के भीतर बोर्ड की याचिका पर सरकार के निर्देश के आधार पर जवाब सौपेंगे।
अदालत ने सुनवाई की अगली तारीख 29 सितंबर रखी है। वक्फ़ बोर्ड की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील सुजय घोष ने आग्रह किया कि तब तक संपत्तियों की सुरक्षा के संबंध में सॉलिसिटर जनरल द्वारा आश्वासन दिया जाए। हालांकि, न्यायाधीश ने जवाब दिया कि इस तरह का आश्वासन चल रहे काम पर ‘अप्रत्यक्ष रोक’ होगा।
अदालत ने कहा, ‘उन्हें आश्वासन क्यों देना चाहिए? यह एक अप्रत्यक्ष रोक होगी। परियोजना एक विशेष रूप में जारी है। परियोजना का समय तय है, निर्माण की योजना बनी हुई है, ये पुरानी संरचनाएं हैं, सबको पता है, निश्चित तौर पर इसके लिए कोई व्यवस्था की गई होगी।’ दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सेंट्रल विस्टा परियोजना पर रोक लगाना मुमकिन नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है।
हालांकि सुजय घोष का कहना कि उनके मुवक्किल का जारी परियोजना में किसी भी तरह से बाधा डालने का इरादा नहीं है, लेकिन केवल ‘स्पष्टीकरण चाहते हैं कि सरकार इन धार्मिक स्थलों की अखंडता का सम्मान करेगी।’ इसके पहले दिल्ली वक्फ़ बोर्ड ने अर्जी देकर यह कहा था कि वह सिर्फ यह चाहता है कि धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व की इमारतों का ध्यान रखा जाए, उन्हें सुरक्षित किया जाए। बोर्ड ने यह भी कहा कि उसे अदालत इसलिए आना पड़ा कि कई प्रतिवेदनों के बावजूद उसे इससे जुड़ा कोई आश्वासन नहीं मिला।
अदालत को यह भरोसा है कि सरकार ने इन ऐतिहासिक संरचनाओं के बारे में जरूर कोई व्यवस्था की होगी। इन संरचनाओं के साथ केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, अतीत की गाथाएं भी जुड़ी हुई हैं। जब एक मजबूत कल का दावा करते हुए सरकार नई इमारतें खड़ी कर रही है, तो उसकी यह जिम्मेदारी है कि बीते कल की पुख्ता बुनियाद भी मजबूती से टिकी रहे। देखना होगा कि सरकार इस जिम्मेदारी को कैसे निभाती है।
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