उच्च शिक्षा के लिए भारत के सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालयों में से यकीनन एक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एक नया विवाद पैदा किया जा रहा है। यहां दोहरी डिग्री वाले इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में छात्रों के लिए ‘काउंटर टेररिज्म’ अर्थात ‘आतंकवाद-विरोध’ का नया विषय रखा गया है। इस पर पाठ्यक्रम को मंजूरी देनी है या नहीं, इस पर गुरुवार को विवि की कार्यकारी परिषद अंतिम निर्णय लेगी।
हालांकि इस पर पहले ही विवाद शुरू हो गया है और यहां के शिक्षकों एवं छात्रों के एक वर्ग ने इस पर इसलिए आपत्ति जताई है कि इसमें जिहादी आतंकवाद को कट्टरपंथी-धार्मिक आतंकवाद का एक रूप बतलाया गया है।
इसके साथ ही उनका यह भी आरोप है कि ‘काउंटर टेररिज्म, एसिमेट्रिक कान्फ्लिक्ट्स एंड स्ट्रैटेजीज़ फॉर कोऑपरेशन एमंग मेजर पॉवर्स’ शीर्षक के पाठ्यक्रम में यह भी दावा किया गया है कि सोवियत संघ और चीन में साम्यवादी शासन आतंकवाद के शासकीय प्रायोजक थे। उन्होंने ही कट्टरपंथी इस्लामिक देशों को प्रभावित किया था। आपत्ति इस आशंका के चलते हैं कि इस पाठ्यक्रम के जरिये एक ओर इस्लाम तो दूसरी तरफ साम्यवादी देशों को बदनाम किया जा सकता है।
इन आरोपों में भी दम दिखलाई पड़ता है कि सरकार यहां के छात्रों की विचारधारा को इस पाठ्यक्रम के माध्यम से प्रभावित करना चाहती है। विवि परिसर का रूझान साम्यवादी, समाजवादी, सेक्युलर और लोकतांत्रिक है जबकि वर्तमान शासन व्यवस्था इन मूल्यों के खिलाफ है। वैसे भी एक तरह से मानों केन्द्र सरकार, उसे चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी एवं मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जेएनयू से पुरानी रंजिश है।
वैसे तो यहां दक्षिणपंथी विचारधारा पर आधारित छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की उपस्थिति है लेकिन अक्सर उस पर वामपंथी विचारों के छात्र संगठन का ही कब्जा होता आया है। पिछले 40 वर्षों में जेएनयू के छात्रसंघ के अध्यक्ष पद साम्यवादी विचारधारा एवं दलों का अनुसरण करने वाले संगठनों के प्रतिनिधि ही जीतते आये हैं।
कम्युनिस्ट विचारधारा में विश्वास रखने वाले स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया एवं ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन 22 बार, एबीवीपी 11 बार और तीन-चार बार एनएसयूआई या दिल्ली छात्र महासंघ जीता है। सीताराम येचुरी, वृंदा करात, कन्हैया कुमार, आयसी घोष जैसे प्रखर नेता इसी विवि की देन हैं।
अक्सर यहां की केन्द्रीय विचारधारा से खार खाने वाले लोग एवं संगठन इस विवि को बदनाम करने की कोशिश करते रहे हैं। एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री द्वारा कभी यहां के छात्रों को तोप भेंट करने की सलाह दी गई थी ताकि उनमें देशभक्ति जागे, तो वहीं कुछ लोग यहां के छात्रों को अय्याशी का अड्डा मानते हैं। कुछ का कहना है कि यहां के छात्रों को रियायती दरों से मिलने वाली शिक्षा एवं तमाम सुविधाएं बन्द कर देनी चाहिये।
नये नागरिकता कानून के खिलाफ यहां के छात्रों द्वारा किये गये आंदोलन से बौखलाकर सरकार ने यहां लाठी चार्ज भी कराया था। कन्हैया कुमार को तो जेल में तक डाला गया और उत्तर प्रदेश के बदायूं का रहने वाला बेहद सक्रिय कार्यकर्ता छात्र नजीब अहमद 2016 की अक्टूबर से गायब है। भाजपा नेता तो सुब्रमण्यम स्वामी मानते हैं कि नेहरू इतने काबिल नहीं थे कि उनके नाम पर कोई विश्वविद्यालय का नाम हो।
अक्सर घोर दक्षिणपंथी विचारधारा के खिलाफ हमेशा तनकर खड़ा होने वाला जेएनयू इसीलिये भाजपा और उससे संबंधित संस्थाओं की आंख की किरकिरी बना रहा है। इस विषय में नया कोर्स शुरू करने का मकसद भाजपा एवं संघ का वही पुराना एजेंडा है- सामाजिक धु्रवीकरण। इसके लिए जरूरी है कि मुस्लिमों के प्रति समाज में नफरत भरती जाये।
प्रतिष्ठित जेएनयू के पाठ्यक्रम में यह विषय शामिल करने का उद्देश्य भी यही है कि अध्ययन, शोध आदि की आड़ में अल्पसंख्यकों के खिलाफ कटुता एवं घृणा का वातावरण बनाया जाये। कुछ समय पहले भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस प्रकार की कोशिश की थी लेकिन अल्पसंख्यक आयोग द्वारा आपत्ति उठाये जाने के कारण इसे वापस ले लिया गया था। इस बार भी परिषद के कुछ सदस्य इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।
समाज में साम्प्रदायिक टकराव रोकने के लिए इस तरह की शिक्षा का कड़ा विरोध होना चाहिये। आशा की जानी चाहिये कि परिषद इस पाठ्यक्रम को मंजूरी नहीं देगा और शैक्षणिक संस्थानों में ऐसी कोई भी शिक्षा नहीं दी जानी चाहिये जिससे समाज के किसी वर्ग के प्रति घृणा फैले।
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