देश में कोरोना की दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई, उसके लिए केंद्र में बैठी मोदी सरकार को जिम्मेदार माना जा ही रहा है, इसके साथ ही चुनाव आयोग पर भी उंगलियां उठ रही हैं। फरवरी अंत में जब चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की घोषणा की, तब इस टाइमिंग और प.बंगाल में आठ चरणों में चुनाव करवाने पर सवाल उठे। उस वक्त चुनाव आयोग का दावा था कि कोविड प्रोटोकॉल के साथ चुनाव संपन्न कराए जाएंगे और जनता ने उसके इस दावे पर भरोसा किया। लेकिन अब भरोसा करने का नतीजा जनता ही भुगत रही है। देश में कोरोना मरीजों की रोजाना बढ़ती संख्या नए रिकार्ड बना रही है।
अस्पताल संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं, वैक्सीन की कमी जुलाई तक बनी रहेगी, ऐसी खबरें आ रही हैं और इन सबके बीच हर रोज बीमार स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण अकाल मौतें हो रही हैं। जिन राज्यों में चुनाव संपन्न हुए, वहां मतदान तक तो कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ नहीं रही थी, लेकिन जैसे ही चुनाव खत्म हुए संक्रमितों का विस्फोट सा हुआ। विधानसभा चुनावों के साथ ही उत्तरप्रदेश में पंचायत चुनाव भी हुए, जिनमें कोविड प्रोटोकॉल नजर ही नहीं आया। नतीजा ये रहा कि चुनावी ड्यूटी में लगे सैकड़ों लोग कोरोना से ग्रसित हुए और कईयों की मौत हो गई।
चुनाव आयोग जिस तरह मोदी सरकार का साथ चुनावों के दौरान दे रहा था, उस पर यह आक्षेप लगने लगे थे कि वह स्वायत्त संस्थान न होकर सरकार के सहयोगी की तरह काम कर रहा है। लेकिन अब ऐसा लगने लगा है कि मोदी सरकार औऱ चुनाव आयोग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, वे भले अलग-अलग दिखें, लेकिन रहेंगे हमेशा एक ही मूल्य के। कोरोना की दूसरी लहर और उससे उपजी त्रासदी के लिए सभी मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, लेकिन सरकार ने अब तक बढ़ कर अपनी गलती नहीं मानी, बल्कि उस पर लीपा-पोती करने की तमाम कोशिशें हुईं। कुछ यही हाल चुनाव आयोग का भी है।
पिछले दिनों मद्रास हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए चुनाव आयोग पर सख्त टिप्पणियां की थीं। हाई कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयोग पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार अभियानों के दौरान कोविड प्रॉटोकॉल का पालन करवाने में असफल रहा। हाई कोर्ट के जज ने यहां तक कहा था कि आयोग के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए। उन्होंने चुनाव आयोग को सबसे ज्यादा गैर-जिम्मेदार संस्था भी करार दिया था।
हाईकोर्ट की इस टिप्पणी पर देशव्यापी चर्चा हुई और कई लोग हाई कोर्ट से इत्तेफाक रखते नजर आए। लेकिन चुनाव आयोग हाई कोर्ट जज की इस टिप्पणी से आहत हुआ और उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अपनी याचिका में चुनाव आयोग ने कहा कि मद्रास हाई कोर्ट ने हमें अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना ही यह टिप्पणी कर दी। उसने डिजास्टर मैनेजमेंट ऐक्ट के अधीन काम कर रहे जिम्मेदार अधिकारियों से भी जवाब नहीं मांगा। आयोग ने यह भी कहा कि जब चुनावी रैलियां हो रही थीं तब कोरोना की हालत उतनी भयावह नहीं थी।
आयोग के इन तर्कों से समझा जा सकता है कि उसने स्थितियों को समझने में कितनी लापरवाही की। सरकार ने भले कोरोना से जीतने का दावा कर लिया हो, हकीकत तो यही थी कि देश से कोरोना खत्म ही नहीं हुआ था। और जब चुनावी रैलियों में बिना मास्क लगाए नेता उतर रहे थे, भीड़ की भीड़ इकठ्ठी कर रहे थे, तब भी आयोग ने उस पर तुरंत कोई सख्ती नहीं दिखाई। जब प.बंगाल में चुनाव चरणों को समेटने की अपील कुछ दलों ने की, तब भी आयोग ने कोई फैसला नहीं लिया। और जो जैसा चल रहा है, चलने दिया। अगर इसके बाद भी चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करता, तो इसे क्या कहा जाए।
चुनाव आयोग को अदालत की टिप्पणी पर मीडिया कवरेज से भी ऐतराज था। चुनाव आयोग को शायद यह उम्मीद रही होगी कि सुप्रीम कोर्ट मद्रास हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणी पर ऐतराज जताएगा या उसके खिलाफ कुछ कहेगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी आयोग को नसीहत ही मिली। चुनाव आयोग की याचिका पर सुनवाई के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत ने आयोग से कहा कि वो मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी को आदेश मानने की जगह एक जज का बयान माने और उसे उचित भावना से समझने की कोशिश करे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज जब सुनवाई के दौरान कुछ कहते हैं तो उनका मकसद व्यापक सार्वजनिक हित सुनिश्चित करना होता है। इसके साथ ही जस्टिस चन्द्रचूड़ ने यह कहा कि मीडिया को सुनवाई के दौरान कोर्ट की मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्टिंग करने से नहीं रोका जा सकता। ये टिप्पणियां न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और जनता के हित में हैं। इसकी भी इतनी ही अहमियत है, जितनी कोर्ट के औपचारिक आदेश की। कोर्ट की मंशा ऐसी नहीं होती है कि किसी संस्था को नुकसान पहुंचाया जाए, सभी संस्थान मजबूत हों तो लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
चुनाव आयोग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाता है, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन फिलहाल उसने जो नसीहत दी है, उसे चुनाव आयोग के साथ सरकार को भी सुनना और समझना चाहिए।
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