भारतीय वायुसेना के बेड़े में अब तक 14 जंगी राफेल विमान शामिल हो चुके हैं। इसे भारत की बड़ी ताकत माना जा रहा है। लेकिन इस जंगी विमान की सौदेबाजी में जिस तरह की भ्रष्टाचार की खबरें सामने आ रही हैं, उससे ऐसा लगता है कि हमारी सेनाएं भले मजबूत हो जाएंगी, देश इस भ्रष्टाचार के कारण भीतर से खोखला हो जाएगा। उससे भी बड़ा डर ये है कि सरकार न इस भ्रष्टाचार के बारे में कुछ सुनना चाहती है, न कहना चाहती है।
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी फ्रांस से राफेल के सौदे में गड़बड़ी की बात शुरु से उठाते रहे हैं। यूपीए सरकार के वक्त ही यह तय कर लिया गया था कि फ्रांस से राफेल विमान खरीदना है। लेकिन तब जितने विमानों का, जितनी कीमत पर सौदा हुआ था, एनडीए सरकार में उसके काफी फेरबदल हो गया। राहुल गांधी ने दो साल पहले ही कहा था कि जिस लड़ाकू विमान को यूपीए सरकार ने 526 करोड़ रुपए में लिया था उसे एनडीए सरकार ने 1670 करोड़ प्रति विमान की दर से लिया।
कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया था कि सरकारी एयरोस्पेस कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस सौदे में शामिल क्यों नहीं किया गया। इस फैसले के खिलाफ लगाई गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर, 2019 को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस मामले की जांच की जरूरत नहीं है। भाजपा तो अपने ऊपर लगे आरोपों को नकारती ही थी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद वह कुछ और दिलेरी के साथ यह बताने में लग गई कि राफेल सौदे में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। जो वाजिब सवाल कांग्रेस की ओर से उठाए गए थे, उन्हें न केवल खारिज किया गया, बल्कि जनता के सामने यह साबित करने की कोशिश की गई कि कांग्रेस गुमराह कर रही है।

वैसे यहां जिक्र करना उचित होगा कि राहुल गांधी ने नोटबंदी, जीएसटी, कोरोना का प्रसार रोकने की रणनीति, लॉकडाउन आदि फैसलों को लेकर भी जो आशंकाएं जतलाईं, वे बाद में सही साबित हुईं। लेकिन भाजपा और सरकार भक्तों ने एक नौसिखिए राजनेता के रूप में उनकी छवि बनाने की कोशिश जनता के बीच की। हालांकि इसमें राहुल गांधी से अधिक नुकसान जनता का हुआ, जो तर्कों की कसौटी पर किसी चीज को परखने की आदत छोड़ रही है।
बहरहाल, राफेल विमानों के सौदे में भ्रष्टाचार की बात एक बार फिर निकली है और इस बार खुलासा किया है फ्रांस की एक समाचार वेबसाइट ने। मीडियापार्ट नामक इस वेबसाइट ने अपनी सरकार पर भी सवाल उठाए हैं। मीडियापार्ट की रिपोर्ट के मुताबिक राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दसॉ ने भारत में एक बिचौलिये को एक मिलियन यूरो ‘बतौर गिफ्ट’ दिए थे। साल 2017 में दसॉ ग्रुप के खाते से 5 लाख 8 हजार 925 यूरो ‘गिफ्ट टू क्लाइंट्स’ के तौर पर ट्रांसफर हुए थे। इस बात का खुलासा तब हुआ, जब फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी एएफए ने दसॉ के खातों का ऑडिट किया। मीडियापार्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, खुलासा होने पर दसॉ ने सफाई में कहा था कि इन पैसों का इस्तेमाल राफेल लड़ाकू विमान के 50 डमी ‘मॉडल’ बनाने में हुआ था लेकिन ऐसे कोई मॉडल बने ही नहीं थे। फ्रांसीसी रिपोर्ट का दावा है कि ऑडिट में ये बात सामने आने के बाद भी एजेंसी ने कोई कार्रवाई नहीं की, जो फ्रांस के राजनेताओं और न्याय व्यवस्था की मिलीभगत को भी दिखाता है।
आपको बता दें कि एएफए की जांच के दौरान दसॉ एविएशन ने बताया कि उसने राफेल विमान के 50 मॉडल एक भारतीय कंपनी से बनवाए। इन मॉडल के लिए 20 हजार यूरो यानी 17 लाख रुपए प्रति पीस के हिसाब से भुगतान किया गया। हालांकि यह मॉडल कहां और कैसे इस्तेमाल किए गए, इसका कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक मॉडल बनाने का काम कथित तौर पर भारत की कंपनी डेफसिस साल्यूशंस को दिया गया। रिपोर्ट सामने आने के बाद अब राफेल का मामला फिर गरमा गया है।
कांग्रेस ने एक बार फिर मोदी सरकार से कुछ सवाल पूछे हैं जैसे 1.1 मिलियन यूरो के जो क्लाइंट गिफ्ट दसॉ के ऑडिट में बताया गया है, क्या वो राफेल डील के लिए बिचौलिये को कमीशन के तौर पर दिए गए थे? जब दो देशों की सरकारों के बीच रक्षा समझौता हो रहा है, तो कैसे किसी बिचौलिये को इसमें शामिल किया जा सकता है? क्या इस पूरे मामले की जांच नहीं की जानी चाहिए, ताकि पता चल सके कि डील के लिए किसको और कितने रुपए दिए गए?
कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी से जवाब मांग रही है, लेकिन उनकी प्राथमिकता फिलहाल भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करना है। फ्रांस के मीडिया ने तो इस सौदे पर नए सिरे से सवाल उठाए हैं, लेकिन भारत में मुख्यधारा के कई बड़े पत्रकारों और मीडिया चैनलों और सबसे अधिक सरकार की चुप्पी सौदे में अंधेरे को और गहरा रही है।
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