कृषि कानूनों से नाराज किसानों ने बीते दिनों पंजाब के मुक्तसर जिले के मलोट में भाजपा विधायक अरुण नारंग की न केवल जमकर पिटाई कर दी बल्कि उनके कपड़े भी फाड़ डाले। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था। घटना के आरोपी भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के नेताओं और दो सैकड़ा अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में मामले दजर् किए गए और कुछ गिरफ्तारियां भी हुईं। इस कार्रवाई के विरोध में किसानों ने धरना दिया और मामले रद्द करने की मांग की। दूसरी तरफ भाजपा ने भी मुख्यमंत्री निवास के बाहर प्रदर्शन किया और कैप्टन अमरिंदर सिंह पर आरोप लगाया कि वे डर का माहौल पैदा कर रहे हैं।
किसान आंदोलन से सहानुभूति रखने वाले तमाम लोगों ने मलोट प्रकरण को गलत बताया और उसकी निंदा की, लेकिन अभय चौटाला जैसे नेता उसे एक नजीर की तरह पेश कर रहे हैं। इंडियन नेशनल लोकदल के प्रमुख नेता और अपनी पार्टी के इकलौते विधायक रहे अभय चौटाला ने किसानों से कहा कि वे भाजपा और जननायक जनता पार्टी के नेताओं को अपने इलाके में घुसने न दें और अगर फिर भी वे आते हैं तो उन्हें खंभे से बांधकर उनकी पिटाई करें और उनके कपड़े फाड़ दें। अभय चौटाला की इस अपील से जाहिर है कि किसानों को उकसाकर वे आईएनएलडी छोड़ जजपा बनाने वाले अपने ही भाई-भतीजों से हिसाब चुकता करना चाहते हैं।
अभय चौटाला ने आंदोलनरत किसानों के साथ एकजुटता दखिाते हुए जनवरी में ऐलनाबाद सीट से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस कदम के लिए किसान महापंचायत में उनका सम्मान भी किया गया था। ये सच है कि नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों में भारी आक्रोश है और केन्द्र सरकार लगातार उनके सब्र का हर मुमकिन इम्तिहान ले रही है। बावजूद इसके, इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़कर उनका आंदोलन अभी तक शांतिपूर्ण ही रहा है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों के नेताओं को गांव में न घुसने देने तक तो बात ठीक है, लेकिन अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए हिंसा के लिए उन्हें दुष्प्रेरित करना किसी भी तरह से सही नहीं माना जा सकता।
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को यूं भी जगह-जगह जलालत का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में जी न्यूज के मालिक और राज्यसभा सांसद सुभाष चंद्रा को हरियाणा के हिसार में किसी कार्यक्रम में शरीक होना था। लेकिन सैकड़ों किसानों ने समारोह स्थल का घेराव कर दिया तो कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। इससे पहले रोहतक के सांपला में केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के जन्मदिन पर आयोजित समारोह को भी किसानों ने रद्द करवा दिया था। उनका विरोध इतना जबरदस्त था कि उस समारोह के लिए रैली निकालने वाले युवकों को मंत्री जी के चेहरे की छाप वाली टी शर्ट्स उतारकर फेंकना पड़ी और बीच सड़क पर वाहन छोड़कर भागना पड़ा।
दरअसल, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में भाजपा नेताओं की हालत सांप-छछूंदर के माफिक हो गई है। कई-कई गांवों में उनके प्रवेश पर किसानों ने रोक लगा रखी है, उनकी सभाओं का बहिष्कार किया जा रहा है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व और केंद्र सरकार के अब तक के रवैये से साफ है कि दोनों ही किसान आंदोलन से बेपरवाह हो चुके हैं। उनके लिए राज्यों पर काबिज होने की चिंता, किसानों की चिंताओं से ऊपर है। उसे अपने ही नेताओं के मान-सम्मान और उनके भविष्य की भी फिक्र नहीं है। हमारी राय में किसी भी नेता और पार्टी को अपनी लोकप्रियता और प्रबंधन पर इतना भरोसा नहीं कर लेना चाहिए कि उसके नुमाइंदों की कोई औकात ही न बचे।