-सुनील कुमार॥
उत्तराखंड के नए सीएम तीरथ सिंह रावत अपने एक बयान की वजह से एकाएक खबरों में आ गए हैं, और हिन्दुस्तान के जिन लोगों ने उनके मुख्यमंत्री बनने की खबर नहीं पढ़ी होगी, उन सबको एकाएक उनका नाम और चेहरा दिख गया, और याद रहेगा। उन्होंने घुटनों पर फटी हुई जींस पहनी एक महिला का जिक्र करते हुए कहा कि विमान में बगल में बैठी ऐसी महिला को देखकर हैरानी हुई कि उनके घुटने दिखते हैं, वे समाज के बीच में जाती हैं, बच्चे साथ में हैं, वे क्या संस्कार देंगी?
अब फटी हुई या फाड़ी हुई जींस को पहनना बरसों से पूरी दुनिया में चली आ रही एक ऐसी फैशन है जिसे पश्चिमी कहना भी गलत होगा क्योंकि 10-20 बरस से तो हिन्दुस्तान में भी उसका इतना चलन है कि लोगों की नजरें भी अब ऐसे घुटनों पर नहीं जाती। मुख्यमंत्री के इस बयान को लेकर जवाब में कुछ लोगों ने कटी हुई जींस से बना हाफ पेंट पहनी हुई उनकी बेटी के साथ उनकी तस्वीर पोस्ट की है, और भी कुछ दूसरे किस्म के उघड़े कपड़ों में उनकी बेटी उनके साथ खड़ी दिख रही है। हम इस बहस को उनके परिवार पर ले जाना नहीं चाहते क्योंकि उनकी सोच अलग हो सकती है, और उनकी बालिग बेटी की सोच उसकी उल्टी भी सकती है। हम किसी के बालिग बेटे-बेटियों पर उनकी सोच थोपने के खिलाफ हैं, इसीलिए हम उनके परिवार को इस बहस में घसीटना नहीं चाहते, बहस में घसीटने के लिए तीरथ सिंह रावत के खुद के शब्द काफी हैं।
सोशल मीडिया पर जिन लोगों ने उनके बयान की खिंचाई की है, वह भी पढऩे लायक है, और सीएम के बयान के बाद ऐसी फैशन करने वाली तमाम लड़कियों का यह हक भी बनता है कि वे उसका जवाब दे सकें। एक लडक़ी/महिला ने लिखा है- महिला को ऊपर से लेकर नीचे तक निहारने वाले ये खुद बड़े संस्कारी हैं? ऐसी घटिया बातें बोलकर भाजपाई क्यों अपने संस्कार प्रदर्शित करते हैं? विदेशों में जाकर ऐसे ही लोग औरतों को घूर-घूरकर देखते हैं।
एक दूसरी लडक़ी/महिला ने लिखा है- रिप्ड जींस पहनने वाली औरतें क्या संस्कार देंगी? क्या इसी वजह से शर्टलेस आदमी फेल होते हैं? एक दूसरी लडक़ी/महिला ने लिखा है- फटी जींस नहीं, फटी मानसिकता को सिलाई की जरूरत है। अमिताभ बच्चन की नातिन ने भी सोशल मीडिया पर लिखा है- हमारे कपड़े बदलने से पहले अपनी सोच बदलिए।
उत्तराखंड सीएम के इस बयान के खिलाफ दूसरे राजनीतिक दलों के लोगों ने भी लिखा है और ट्विटर-फेसबुक पर बहुत सी लड़कियों और महिलाओं ने रिप्ड जींस में अपनी तस्वीरें पोस्ट करने की मुहिम छेड़ दी है।
हिन्दुस्तानी वोटरों के जिस बड़े तबके को एक काल्पनिक भारतीय संस्कृति दिखाकर, उसे भारत का इतिहास बताकर जिस तरह की सांस्कृतिक शुद्धता से उसके गौरव को उत्तेजित किया जाता है, वह अभियान इस उत्तेजना को वोटों में तब्दील करने की पुरानी हरकत है। हिन्दुस्तान के इतिहास के जितने भी पन्नों को देखें, यहां की प्रतिमाओं से लेकर यहां की पुरानी तस्वीरों तक, और यहां के साहित्य में सौंदर्य के वर्णन तक महिलाएं बड़े ही दुस्साहसी किस्म के कपड़ों में दिखती थीं। हिन्दुस्तान के अनगिनत मंदिरों में न सिर्फ बेनाम सुंदरियों की प्रतिमाएं, बल्कि देवियों की प्रतिमाएं भी बहुत ही कम कपड़ों की दिखती हैं। संस्कृत साहित्य से लेकर भारत की लोकभाषाओं तक की साहित्य में सुंदरियों के शरीर और कपड़ों का जो ब्यौरा दिखता है, वह रिप्ड जींस से कहीं अधिक खुला हुआ रहता है। यह अलग बात है कि जींस एक पश्चिमी और ईसाई-बहुल देश अमरीका से निकलकर पूरी दुनिया में छाई है, और पूरी दुनिया की नौजवान पीढ़ी की सबसे लोकप्रिय अकेली पोशाक का एकाधिकार पा चुकी है। अब जींस से पश्चिम के नाते परहेज करें, या पश्चिम के ईसाईयों के नाते परहेज करें, उस जींस को फाडक़र पहनना दुनिया के तमाम देशों में एक फैशन बन चुका है जो कि लौटने वाला नहीं है। ऐसे में इस फैशन को कोसना भारतीय संस्कृति के झंडाबरदारों को खुश करने का काम तो हो सकता है, लेकिन यह हकीकत को नकारकर एक अस्तित्वहीन इतिहास की कल्पना को स्थापित करने के पाखंड के सिवाय कुछ नहीं है।
जैसा कि बहुत से लोगों ने अपने जवाब में लिखा भी है, कपड़ों पर पैबंद के बजाय अधिक जरूरत लोगों की फटी हुई सोच और उससे भी अधिक फटी हुई भाषा में पैबंद लगाने की है। आज जिन तथाकथित हिन्दुत्ववादियों या राष्ट्रवादियों का हमला लड़कियों की पोशाक पर होता है, उनके शाम तक बाहर रहने पर होता है, रात में किसी पार्टी में जाने पर होता है, उन्हें अपना हमला उन लडक़ों और आदमियों पर केन्द्रित करना चाहिए जिनसे इन लड़कियों और महिलाओं को खतरा होता है। दिक्कत यह है कि बलात्कारियों की आलोचना भी इस राष्ट्रवादी तबके से तब तक सुनाई नहीं पड़ती जब तक बलात्कारी कोई गैरहिन्दू न हो। अगर मंदिर में पुजारी सहित दर्जन भर लोग एक मुस्लिम बच्ची से बलात्कार कर रहे हैं, तो भी इन राष्ट्रवादियों को कोई दिक्कत नहीं है, वे बलात्कारियों को छुड़ाने के लिए जम्मू में देश का तिरंगा झंडा लेकर लंबी-लंबी रैलियां निकालते हैं, उस बच्ची की महिला वकील पर हमले करते हैं, उसका सामाजिक बहिष्कार करते हैं, लेकिन ऐसे लोगों का ईश्वर मंदिर में एक छोटी बच्ची से सामूहिक बलात्कार और उसके कत्ल से भी अपमानित नहीं होता है। इन लोगों की यह तथाकथित भारतीय संस्कृति लड़कियों के घुटने दिखने से घायल हो जाती है, अपमानित हो जाती है।
यह पूरा सिलसिला बहुत ही शर्मनाक है। जिन लोगों को भारतीय संस्कृति की फिक्र है, उन्हें भारत को दुनिया की बलात्कार-राजधानी बनने से रोकना चाहिए लेकिन जिनके जिम्मे देश की लड़कियों की हिफाजत है, वे बलात्कारियों की हिफाजत में लगे हैं, और लड़कियों के घुटनों को कुसूरवार ठहरा रहे हैं। सोच की यह शर्मनाक हालत बदलनी चाहिए।
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