कोरोना महामारी इस वक्त इंसान के साथ लुका-छिपी का खेल खेल रही है। पिछले साल यही वक्त था जब दुनिया के कई देश इस महामारी की चपेट में आ गए थे। कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए कई तरह के प्रयोगात्मक कदम उठाए गए। लगभग साल भर इंसान डरा-डरा रहा, फिर धीरे-धीरे इस डर के साथ जीना सीख लिया। इस बीच वैक्सीन आ गई, तो इंसान को लगा कि अब कोरोना को काबू करने में देर नहीं है। महामारी का डर कहीं दबा-छिपा महसूस हुआ कि उसने एक बार फिर पीछे से इंसान को धप्पा कर ये बतला दिया है कि अभी सावधानी में ढील दी गई तो आउट होने में वक्त नहीं लगेगा।
दुनिया में कोरोना की नई लहर से सरकारों के माथे पर फिर बल पड़ने लग गए हैं। कई यूरोपीय और दक्षिण अमेरिकी देशों में कोरोना संक्रमितों के मामले में तेजी से उछाल आया है। कई देश फिर से लॉकडाउन की नई प्रक्रिया की ओर अग्रसर हैं। भारत में भी पिछले सप्ताह कोरोना मरीजों के मामले में यकायक वृद्धि देखी गई। हालांकि देश में टीकाकरण अभियान शुरु हो चुका है। लेकिन फिर भी कोरोना के बढ़ते मामले गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। देश के कई राज्यों में आंशिक लॉकडाउन, नाइट कर्फ्यू जैसे उपाय फिर से आजमाए जा रहे हैं।
कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 17 मार्च को मुख्यमंत्रियों की वर्चुअल बैठक बुलाई है। इस बैठक में अन्य विषयों के साथ कोविड -19 से निपटने के लिए टीकाकरण कार्यक्रम के प्रभावी प्रबंधन पर मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा की जाएगी। बताया जा रहा है कि सुझावों के आधार पर, देश में कोरोना वायरस मामलों के दोबारा प्रसार को रोकने के लिए एक रणनीति तैयार की जाएगी। गनीमत है कि इस बार प्रधानमंत्री रणनीति बनाने से पहले ही मुख्यमंत्रियों के सुझाव ले रहे हैं। वर्ना देश अभी उन बुरे दिनों के सदमे से उबर नहीं पाया है, जब लॉकडाउन के अचानक लिए फैसले ने करोड़ों जिंदगियों को दांव पर लगा दिया था।
मार्च 2020 के अंतिम दिनों में ही पहले जनता कर्फ्यू लगा था और फिर लॉकडाउन का ऐलान किया गया था। इस वजह से लाखों प्रवासी मजदूर अपने घर पैदल लौटने लगे थे, क्योंकि बसों, ट्रेनों सब के पहिए थम गए थे। मोदीजी बीच-बीच में आकर थाली बजवाने, दिए जलवाने जैसे काम देशवासियों से करवा गए, लेकिन यह खाए-पिए-अघाए लोगों का शगल ही साबित हुआ। पिछले एक साल में अवैज्ञानिकता और अंधश्रद्धा की नई हदें देश ने देखीं, जब कोरोना की रोकथाम के लिए गौमूत्र से लेकर पापड़ तक के इस्तेमाल की सलाहें ऊंचे पदों पर बैठे लोगों ने दीं। कोरोना के नाम पर अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने का नया बहाना भी मिला।
अदालत में भी यह साबित हो चुका है कि तब्लीगी जमात को किस संकीर्ण मानसिकता के तहत निशाना बनाया गया था। लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था का जो नुकसान हुआ, उससे तो देश कभी उबर ही नहीं पाएगा। क्योंकि करोड़ों बेरोजगार हो चुके लोगों के लिए रोजगार की संभावनाएं क्षीण हैं। कई मध्यम और लघु उद्योग बंद हो चुके हैं। देश की बची-खुची संपत्ति को सरकार निजी क्षेत्र के हवाले कर रही है। और इसके विरोध पर निगाह डालना भी जरूरी नहीं समझती।
लॉकडाउन के चरणों के बाद क्रमबद्ध तरीके से अनलॉक की प्रक्रिया शुरु हुई। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक तमाम तरह की गतिविधियां फिर शुरु हुईं और इन सबके साथ लापरवाही का सिलसिला जो शुरु हुआ, शायद उसका परिणाम ही देश फिर भुगत रहा है।
पिछले साल की कड़वी यादों को दोहराने का मकसद यही है कि सरकार कम से कम इस बार सोच-समझ कर और जनता के हित को सर्वोपरि रखकर फैसले ले। सरकार के फैसलों से उद्योगपतियों को कितना फायदा हुआ है, यह देश ने देख लिया है। लेकिन देश की कमान जनता ने अपनी बेहतरी के लिए भाजपा को सौंपी है, यह उसे याद रखना चाहिए। आरोग्य सेतु ऐप रखने की जनता पर जबरदस्ती, शारीरिक दूरी बनाए रखने की उस पर कड़ाई, जबकि राजनैतिक रैलियों में इसी चीज पर ढिलाई, प्रधानमंत्री का अनेक अवसरों पर बिना मास्क के सार्वजनिक स्थानों पर दिखना, वैक्सीन की प्रामाणिकता को लेकर सवाल उठना, इन सबसे कोरोना के खिलाफ जंग कमजोर होती है, क्योंकि सरकार के फैसलों और नीयत पर कहीं न कहीं सवाल उठते हैं। बेहतर यही होगा कि इस बार पूरी तरह सुविचारित, तार्किक फैसले लिए जाएं और नियम सबके लिए एक जैसे हों। तभी जनता को इस महामारी से लड़ने में साथ लिया जा सकेगा।
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