-संजय कुमार सिंह॥
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की सहायता करने वाले बहुत सारे नौकरशाह सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर हैं। आइए, ऐसे अफसरों से मोदी-शाह द्वय को मिली सहायता और उनका पद जानें। इससे पहले, यह भी बता दूं कि यह ट्वीटर पर है और अंत में उसका लिंक भी दिया है। आप अगर संबंधित खबरें देखना चाहें तो ट्वीटर पर जाकर सबका लिंक देख सकते हैं। पढ़ने में सहूलियत के लिए मैं सभी ट्वीट को हिन्दी में पेश कर रहा हूं और यही इस पूरे प्रयास का मुख्य मकसद है। ये ट्वीट किसी ओम (@navodian7) ने किए हैं। मैं उन्हें नहीं जानता और मेरा मकसद उन्हें प्रचार देना नहीं है। हो सकता है उनका कोई मकसद हो पर मेरा मकसद सिर्फ पाठकों तक सूचना पहुंचाना है। उनकी वाल पर लिखा है, मेरा अकाउंट रेस्ट्रिक्ट कर दिया गया है। इसलिए कुछ आलेख आपको नहीं दिखेंगे। (मैं उन्हीं की चर्चा कर सकूंगा जो मुझे दिखेंगे और वो कम नहीं हैं)। इसलिए सब को यहां कंपाइल (इकट्ठा) कर दिया है। इसके साथ एक और डिस्केलमर है, मैंने कोई रिसर्च नहीं की, ना ही मेरे पास कोई प्रूफ है। मैंने सिर्फ आलेखों (के लिंक) को इकट्ठा कर दिया है। बेशक यह एक प्रशंसनीय काम है और अगर सभी लिंक ऐतिहासिक दस्तावेज हैं तो यह लिंक सूची उन दस्तावेजों की सूची तो है ही।
हिन्दी के पाठकों के लिए मैं सारे शीर्षक हिन्दी में कर दे रहा हूं। मूल कंपाइलर या इकट्ठा करने वाले की तरह मैं नहीं कहूंगा कि मेरे पास कोई सबूत नहीं हैं। मैंने ये खबरें और ये लिंक समय-समय पर पढ़ीं और देखी हैं समय पर हवाला भी दिया है। इसमें अपवाद स्वरूप संजीव भट्ट जैसे कुछ अफसरों का भी जिक्र है और इसे देखकर आप मानेंगे कि जो यह दावा करता था कि उसका कोई नहीं है, भ्रष्टाचार किस लिए करेगा उसके कितने लोग हैं। ना खाऊंगा ना खाने दूंगा के दावे के बावजूद ऐसे सेवकों, सहायकों या समर्थकों को मलाईदार पदों पर बैठा रखा है। इसका दोहरा फायदा है, काम करने वालों को कीमत चुकाई जा रही है और ये अभी सेवा में लगे हुए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि इससे भ्रष्ट व्यवस्था को मदद मिल रही है। इन मामलों और इन लोगों को जानना इसलिए भी जरूरी है कि इनके समर्थक और खुद प्रधानमंत्री भी राहुल गांधी के बारे में कहते हैं कि वे जमानत पर हैं। मैं कहता रहा हूं कि उनपर किसी जज की हत्या करवाने और जांच से बचने के उपाय करने का आरोप नहीं है। बाकी आपके अखबार और आपके टेलीविजन चैनल ने आपको जो बताया है वह तो आप जानते ही हैं। नेता जब प्रचारक होंगे तो ऐसा ही होगा।
वाईसी मोदी
गुजरात दंगे के दौरान 2002 में हुए गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार में नरेन्द्र मोदी को क्लीनचिट दी थी। इसमें 69 लोग मारे गए थे। इसके साथ द टेलीग्राफ की 12.10.2018 की एक खबर का लिंक है। इसके अनुसार आप सीबीआई प्रमुख होने के अग्रणी दावेदारों में थे। उस समय एनआईए के डायरेक्टर जनरल थे। इंटरनेट पर सरसरी तलाश में लगा कि आप अभी भी एनआईए में ही हैं। सीबीआई की बनाई विशेष टीम के भाग थे और 2002 के दंगों की जांच कर नरेन्द्र मोदी को क्लीनचिट दी थी।
आरके राघवन
गुजरात दंगे में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को क्लीनचिट दी थी। साइप्रस में भारत के राजदूत बनाए गए। सबरंग इंडिया के एक आलेख में बताया गया है कि वे स्वास्थ्य कारणों से एसआईटी छोड़कर राजदूत बन गए थे। वे सबीआई के प्रमुख थे और सीबीआई की अनुमति से एसआईटी के प्रमुख का पद छोड़ा था। खबर में लिखा है कि शोर मंचाने वाले एंकर्स ने इस मामले को नजरअंदाज किया। कुछ न्यूडपोर्टर्स पर ही चर्चा रही।
मौलिक नानावती
गुजरात दंगों की जांच के लिए रिटायर जज न्यायमूर्ति जीटी नानावती की अध्यक्षता में एक जांच आयोग बना था। 2011 में इंडिया टुडे ने खबर दी थी कि उनके बेटे मौलिक नानावती को गुजरात सरकार का वकील बना दिया गया था और वे हाईकोर्ट के साथ सुप्रीम कोर्ट में भी पेश हो चुके थे। इंडिया टुडे ने इसे हितों के टकराव का साफ मामला कहा था। 21 मई 2002 को बड़े साब को अध्यक्ष बनाया गया तीन साल बाद बेटे को काम मिल गया।
पी सदाशिवम
पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम केरल के राज्यपाल बना दिए गए थे। यह मामला खूब चर्चित हुआ था। मामला अनुचित होने पर गलत नहीं होने का था। आपने सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में अमितशाह के खिलाफ दूसरी एफआईआर को खारिज कर दिया था। तब फर्स्ट पोस्ट ने लिखा था कि यह भारतीय न्यायपालिका के लिए खराब संकेत है।
उदय यू ललित
वरिष्ठ अधिवक्ता ने तुलसी प्रजापति और सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में अमित शाह का प्रतिनिधित्व किया था। फर्स्ट पोस्ट की जुलाई 2014 की एक खबर के अनुसार उन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज बना दिया गया था। कहने की जरूरत नहीं है कि ललित और भी कई मामले देखते रहे हैं और यहां चर्चा करने का मतलब यह नहीं है कि नियुक्ति उसी बिना पर हुई। सारी नियुक्तियां नियमानुसार हुई हैं हम यहां सिर्फ उस समय के संयोग की बात कर रहे हैं जो अब प्रयोग भी लग रहा है।
अक्षय मेहता
गुजरात दंगे के एक मामले में बाबू बजरंगी को जमानत देने वाले न्यायमूर्ति अक्षय मेहता को नानावती मेहता कमीशन में सदस्य बनाया गया और फिर उन्होंने 2002 में नरेन्द्र मोदी को क्लीन चिट दी थी।
राकेश अस्थाना
गोधरा में ट्रेन जलाने के मामले की जांच की थी और ट्रेन में आग लगने के कारण को स्वीकार किया था जो मोदी सरकार बता रही थी। उन्हें सीबीआई का प्रमुख कैसे बनाया गया, मेरे पाठकों को याद होगा। कई बार लिख चुका हूं। उनके पास एनसीबी का अतिरिक्त चार्ज भी है। इसपर भी लिख चुका हूं।
तुषार मेहता
सांप्रदायिक दंगे के अभियुक्तों के वकील थे। बाद में भारत के एडिशनल एडवोकेट जनरल बना दिए गए। आईपीएस अफसर संजीव भट्ट ने कहा था कि गुजरात सरकार के अधिकारी आरोपियों को बचाने में लगे हैं। उन्होंने कई ईमेल सबूत के रूप में पेश किए थे जो हैक किए गए थे। उन्होंने राज्य सरकार के विधि अधिकारी पर जांच रिपोर्ट आरएसएस के पदाधिकारी को भेजने के आरोप लगाए थे। संजीव भट्ट आईपीएस से हटाए गए थे अभी जेल में हैं। उनका मामला आगे।
आरकेएस भदौरिया
रफाल सौदे में शामिल एयर मार्शल आरकेएस भदौरिया भारतीय वायु सेना के प्रमुख हो गए। इकनोमिक टाइम्स ने 30 सितंबर 2019 को इस आशय की खबर दी थी।
एसवी राजू
सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में अमित शाह के वकील थे। बाद में उन्हें भारत का एडिशनल सोल्सिटर बनाया गया। इस संबंध में इंडियन एक्सप्रेस की खबर का लिंक है।
जीसी मुर्मू
गुजरात कैडर के आईएएस हैं। मोदी और अमित शाह को 2002 के दंगों की जांच और इसरत जहां फर्जी मुठभेड़ में बचाने में सहायता दी थी। बाद में भारत के सीएजी बने। पहले के एक और सीएजी का काम और उन्हें मिला फायदा आप जानते हैं।
समर्थक रहे और सेवकों को अच्छे पद देना कोई नई बात नहीं है। राजनेता वकीलों की फीस भी राज्य सभा की सदस्यता देकर या फिर सरकारी वकील बनाकर चुकाते रहे होंगे लेकिन नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह खुद को दूध का धुला बताया था उसमें उन्हें ये सब तो करना ही नहीं करना चाहिए था। लेकिन लावारिस फिल्म का एक गाना है, जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों ….। इस हिसाब से संजीव भट्ट का भी कोई होगा। देखते रहिए।
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