मोदी है तो मुमकिन है, अपने ऊपर गढ़े गए इस नारे को चरितार्थ करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आए दिन देशवासियों को चमत्कृत कर रहे हैं। उनका नया चमत्कार गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के महान विचारों को राष्ट्रवाद और आत्मनिर्भर भारत की भाजपायी सोच से संबंधित करते हुए अंतत: गुरुदेव का संबंध गुजरात से जोड़ लेना है। अब इसे चाहे आपदा में अवसर कह लीजिए या फिर वोकल फॉर लोकल का उदाहरण समझ लीजिए।
अपने लेखन और विचारों से विश्व नागरिक कहलाने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर की महान छवि को भाजपा चुनावी राजनीति में मोहरे की तरह इस्तेमाल करना चाहती है, यह अब साफ नजर आ रहा है। बीते कई महीनों से देश बढ़ती का नाम दाढ़ी का ट्रेलर देख ही रहा था, अब उसकी पूरी तस्वीर दिखने लगी है।
यह अजीब संयोग है कि मोदीजी के छह सालों के कार्यकाल में देश के कई बड़े शैक्षणिक संस्थान ओछी राजनीति का मैदान बन कर रह गए और इसका असर इन संस्थाओं की छवि और छात्रों के भविष्य दोनों पर ही बुरा पड़ा।
जेएनयू, जामिया मिलिया इस्लामिया, हैदराबाद विश्वविद्यालय, एएमयू ऐसे अनेक उच्च शिक्षण संस्थानों में सरकार विरोधी विचार रखने वाले छात्रों को कई किस्म के अन्याय सहने पड़े और यह सिलसिला अब तक जारी है। लेकिन दूसरी ओर मोदीजी को ही यह अवसर भी मिला कि वे एएमयू और विश्वभारती इन दो ख्यातनाम उच्चशिक्षण संस्थानों के शताब्दी वर्ष का हिस्सा बनें।
अभी कुछ दिन पहले मोदीजी ने वर्चुअली अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोह में हिस्सा लिया। करीब 34 मिनट का भाषण दिया, जिसमें 17 बार आत्मनिर्भर भारत का जिक्र उन्होंने किया। इसके अलावा नारी शिक्षा, इनोवेशन, एकजुटता आदि पर भी अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने एएमयू को मिनी इंडिया बताया।
अब ये सोचने की बात है कि इस मिनी इंडिया को भी क्या वे अपने न्यू इंडिया की तरह बनाना चाहते हैं। एएमयू के बाद अब मोदीजी ने विश्वभारती विश्वविद्यालय के सौ साल पूरा होने पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया।
इस अवसर पर उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर के एकला चलो के मंत्र की याद छात्रों को दिलाई।
साथ ही ये समझाने की कोशिश की कि गुरुदेव के शैक्षणिक चिंतन में आत्मनिर्भर भारत की सोच कैसे समाहित थी। उन्होंने कहा कि विश्व भारती के लिए गुरुदेव का विजन आत्मनिर्भर भारत का भी सार है। हालांकि यजुर्वेद से लिए गए ध्येय वाक्य यत्र विश्वम भवत्येकनीडम यानी सारा विश्व एक घर है, के तहत जब 1921 में गुरुदेव ने विश्वभारती की स्थापना की थी तो इसके पीछे उद्देश्य था कि सत्य के विभिन्न रूपों की प्राप्ति के लिए मानव मस्तिष्क का अध्ययन करना, पूर्व एवं पश्चिम में निकट संपर्क स्थापित कर विश्व शान्ति की संभावनाओं को विचारों के स्वतंत्र आदान-प्रदान द्वारा दृढ़ बनाना और शान्ति निकेतन में एक ऐसे सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना करना जहां धर्म, साहित्य, इतिहास, विज्ञान एवं हिन्दू, बौद्ध, जैन, मुस्लिम, सिख, ईसाई और अन्य सभ्यताओं की कला का अध्ययन और उनमें शोधकार्य, पश्चिमी संस्कृति के साथ, आध्यात्मिक विकास के अनुकूल सादगी के वातावरण में किया जाए।
इन उद्देश्यों में गुरुदेव के विचारों का विराट फलक नजर आता है, जिसे सत्ता की राजनीति से परे हटकर देखने और समझने की जरूरत है। लेकिन भाजपा को तो अभी 2सौ से अधिक सीटें लाने वाला मिशन बंगाल नजर आ रहा है, जिसमें वक्त और जरूरत के मुताबिक महान हस्तियों को भाजपाई सांचे में ढाला जा रहा है।
मोदीजी ने कहा कि वेद से विवेकानंद तक भारत के चिंतन की धारा गुरुदेव के राष्ट्रवाद के चिंतन में भी मुखर थी। वे गुरुदेव के राष्ट्रवाद को भाजपा के राष्ट्रवाद से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि गुरुदेव की राष्ट्रवाद के बारे में क्या सोच थी। उन्होंने इस विषय पर अमेरिका और जापान में कई वक्तव्य दिए हैं।
एक जगह उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद की धारणा मूलत: राष्ट्र की समृद्धि और राजनैतिक शक्ति में बढ़ोतरी करने में इस्तेमाल की गई है। शक्ति की बढ़ोतरी की इस संकल्पना ने देशों में पारस्परिक द्वेष, घृणा और भय का वातावरण बनाकर मानव जीवन को अस्थिर और असुरक्षित बना दिया है। यह सीधे-सीधे जीवन से खिलवाड़ है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की देशभक्ति भी आज की सत्ता के खांचे में फिट नहीं बैठती। वे मानवता को देशभक्ति से ऊपर रखते थे। जबकि आज मोदी सरकार देश के नाम पर मानवता के साथ खुला खिलवाड़ कर रही है। 29 दिनों से चल रहा किसान आंदोलन इसका ताजा प्रमाण है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का संबंध गुजरात से बताने की बेजा कोशिश मोदीजी ने की। उन्होंने बताया कि उनके बड़े भाई अहमदाबाद में नियुक्त थे, तब वे वहां आए थे और उन्होंने दो कविताएं वहां लिखीं। उन्होंने ये भी बताया कि गुजरात की बेटी गुरुदेव के घर बहू बनकर आईं। साथ ही साड़ी के पल्लू को लेकर एक किस्सा भी सुनाया। इन बातों का विश्वभारती विश्वविद्यालय से कोई सरोकार नहीं है, फिर भी मोदीजी ने ये सब शायद इसलिए कहा क्योंकि गुजरात उनका गृहप्रदेश है और इस नाते वे क्षेत्रीय प्रभाव में आकर गुजरात के साथ गुरुदेव का संबंध बता रहे थे। लेकिन ऐसा करना गुरुदेव के विचारों के साथ न्यायसंगत नहीं होगा, क्योंकि वे तो देश और काल की सीमाओं के परे हैं।
एक सप्ताह के भीतर देश के दो बड़े विश्वविद्यालयों में शिरकत करने का सुनहरा मौका मोदीजी को मिला था, जिसका लाभ उठाकर वे विद्यार्थियों को ही नहीं देशवासियों को भी कुछ प्रेरणादायी विचार दे पाते। लेकिन इससे पहले उन्हें खुद चुनावी, मौकापरस्त, सत्तालोलुप राजनीति से ऊपर उठना पड़ता और जिन महापुरुषों का नाम वे अपने भाषणों में ले रहे हैं, उनके देशभक्ति के पैमाने को समझना होता। अफसोस कि प्रधानमंत्री इस मौके से चूक गए।
(देशबंधु)