-अनिल शुक्ल॥
बीते रविवार की शाम ने उस ‘फेसबुक’ को हथियार डालने को मजबूर कर दिया जिसने ‘किसान एकता मोर्चा’ के ऑफीशियल ‘फेसबुक पेज’ और ‘इंस्टाग्राम एकाउंट’ को ‘स्पैम’ (अवांछनीय ई-मेल) का फ्लैग लगाकर डिलीट कर दिया था। भारत, यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के विभिन्न शहरों में किसान आंदोलन के पक्ष में हुए सामाजिक संगठनों के प्रदर्शनों और कैलिफोर्निया (यूएस) स्थित फेसबुक के मुख्यालय के बाहर व्यापक भीड़ के घंटों चले घेराव से डर कर फेसबुक को 3 घंटे के भीतर अपने दोनों एक्शन वापस लेने पड़े।
सरकार के पक्ष में लगातार सक्रिय देश की मुख्यधारा मीडिया का मुक़ाबला करने के लिए ‘किसान एकता मंच’ ने फेसबुक के अपने पेज और इंस्टाग्राम के अपने एकाउंट को आंदोलन की हर क्षण की गतिविधिओं से सजा रखा है। उन्होंने यूट्यूब पर भी अपनी साईट खोल रखी है जिसके जरिये वे सिंघू बॉर्डर, टिकड़ी बॉर्डर और गाज़ीपुर बॉर्डर पर होने वाली आंदोलन की पल-पल की गतिविधियों का डॉक्यूमेंटेशन कर रहे हैं। वे अपने कई सारे व्हाट्सप्प समूह भी चला रहे हैं जिनके जरिए गतिविधियों का निरंतर कम्युनिकेशन करते रहते हैं।
इतना ही नहीं, हाल में उन्होंने 4 पेज का अपना अख़बार ‘ट्रॉली टाइम्स’ भी शुरू किया है। गुरुमुखी और हिंदी भाषा में छपने वाला यह अखबार सप्ताह में 2 बार निकलेगा। आंदोलन की राजनीति के समान्तर जिस तरह यह आंदोलन’ अपनी संस्कृति विकसित कर रहा है वह न सिर्फ़ गाँधी के ब्रिटिश विरोधी आंदोलन की यादों को ताज़ा करता है बल्कि आज़ादी के बाद का इस क़िस्म का पहला आंदोलन बन गया है जो राजनीति और संस्कृति दोनों को अपने भीतर सहेजे हुए है। जिस तरह गाँधी ने अपना अखबार निकालना आंदोलन के लिए ज़रूरी समझा था, किसान आंदोलनकारियों ने भी अपनी सोशल मीडिया के संचालन की राह पकड़ी है।
रविवार की शाम जब फेसबुक ने ‘किसान एकता मंच’ का फेसबुक पेज और इंस्टाग्राम एकाउंट यकबयक बंद कर दिया उस समय किसान नेता योगेंद्र यादव प्रधानमंत्री के सवालों का लाइव जवाब दे रहे थे। इस घटना की जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया हुई, उसके दबाव में फेसबुक को अपनी कार्रवाई वापस लेनी पड़ी। सोमवार को अपने स्पष्टीकरण में ‘फेसबुक इंडिया’ का कहना था कि ‘‘किसानों के प्रतिरोध पेज को इसलिए ब्लॉक करना पड़ा क्योंकि वह पेज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सामुदायिक मानकों को खंडित कर रहा था।‘’
किसान आंदोलन ने ‘केंद्र सरकार के इशारे पर ऑटोमेशन का बहाना बनाकर फेसबुक पेज को ब्लॉक किये जाने’ का आरोप लगाया है। किसान आंदोलन के इस आरोप में इसलिए सच्चाई लगती है कि ऐसा न होता तो फेसबुक पेजों को ‘आरएसएस’ और भाजपा कार्यकर्ताओं के राजनीतिक और सांप्रदायिक विष वमन के लिए लंबे समय तक छुट्टा न छोड़ा जाता। काफी समय बाद वे तब ब्लॉक किये गए जब न सिर्फ़ सारी दुनिया में इसके विरुद्ध प्रदर्शन होने लग गए थे और फेसबुक के वहिष्कार की धमकियाँ मिलने लगी थीं बल्कि फेसबुक के बड़ी संख्या वाले अल्पसंख्यक तकनीशियनों और स्टाफ ने कम्पनी छोड़ने की धमकी दे डाली थी। इस सम्बन्ध में फेसबुक को अपनी एक वरिष्ठ अधिकारी को भी नौकरी से हटाना पड़ा था जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के प्रति अंधभक्ति का आरोप था। इतना ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव में आँख मूँद कर राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रम्प का लंबे समय तक किया जाने वाला समर्थन भी करोड़ों अमेरिकियों के वहिष्कार की धमकी के डर से फेसबुक को बंद करना पड़ा था।