देश में कोरोना के मरीजों की संख्या एक करोड़ के पार हो चुकी है और भारत अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा संक्रमित देश बन चुका है। फिर भी तिनके जैसी राहत की बात ये है कि बीते एक सप्ताह में मरीजों की संख्या 17 प्रतिशत कम हुई है। अब एक दिन में 24-25 हजार मरीज आ रहे हैं, तो इसे उम्मीद की तरह देखा जा रहा है कि देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या कम हो रही है। इस बीच वैक्सीन की तैयारियां भी शुरु हो गई हैं। हरेक नागरिक तक वैक्सीन कब पहुंचेगी, इस बारे में फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता, अलबत्ता चुनावी घोषणापत्र से लेकर बजट की तैयारियों तक में अब वैक्सीन का जिक्र होना शुरु हो गया है। आम हिंदुस्तानी के लिए यूं तो स्वास्थ्य मोर्चे पर कई चुनौतियां हैं।
लेकिन वह भी इस बात को लेकर आशान्वित है कि आज नहीं तो कल उसे वैक्सीन मिल जाएगी। इधर देश के कुछ राज्यों में संक्रमण पर रोक लगाने के लिए नाइट कर्फ्यू जैसे उपाय भी किए जा रहे हैं। 2020 में अनेक बुरे अनुभवों से गुजर चुके लोगों को इस साल के खत्म होने का बेसब्री से इंतजार है। उन्हें उम्मीद है कि 2021 नई राहत लेकर आएगा। ऐसी उम्मीदों से ही जीवन आगे बढ़ता है। लेकिन इसके साथ-साथ यथार्थ भी आईना दिखाता रहता है।

कोरोना वायरस से अभी दुनिया ने अंतिम लड़ाई जीती नहीं है, औऱ इससे पहले ही ब्रिटेन में इसका एक नया नमूना सामने आ गया है, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा फिर बढ़ चुका है। यूके के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार पैट्रिक वॉलेंस के मुताबिक वायरस के इस नए रूप के फैलने की क्षमता ज्यादा है। अभी इस बात पर शोध होना है कि कोरोना वायरस के लिए तैयार की गई वैक्सीन इस नए रूप पर कितनी असरकारी होगी। ब्रिटेन में अभी जो भी नए मामले सामने आ रहे हैं, उनमें से दो तिहाई इस नए नमूने से ही संक्रमित हैं। दुनिया में अब चीन के बाद ब्रिटेन को लेकर दहशत दिखने लगी है।
कई देशों ने ब्रिटेन से आवाजाही पूरी तरह रोक दी है। भारत ने भी 31 दिसंबर तक ब्रिटेन से तमाम उड़ानों को रद्द कर दिया है। लेकिन बीते दिनों जो यात्री ब्रिटेन से आए होंगे, उनमें से संक्रमितों का पता लगाना एक चुनौतीपूर्ण काम है। मार्च से पहले कोरोना भी इसी तरह देश में फैला था औऱ फिर मरीजों की संख्या बढ़ती रही। अंदेशा होता है कि कहीं मार्च जैसे हालात देश में फिर न बन जाएं। ब्रिटेन से फैले इस नए संक्रमण से अर्थव्यवस्था को भी नए सिरे से चुनौती मिली है।
क्रिसमस औऱ नए साल के मौके पर पर्यटन के साथ-साथ बाजार में भी तेजी आती है, जिस पर अभी रोक लग सकती है।
सोमवार को दुनिया के शेयर बाजार में गिरावट देखने मिली औऱ भारतीय शेयर बाजार तो बुरी तरह धड़ाम हुआ। सोमवार को सेंसेक्स 1,400 अंक से ज्यादा गिरकर बंद हुआ। जबकि एक वक्त इसमें 2 हजार अंकों की गिरावट आ गई थी। निफ्टी भी 600 अंकों से ज्यादा टूटा। शेयर बाजार के जानकार बताते हैं कि इस गिरावट से निवेशकों के 7 लाख करोड़ रूपए डूब गए।
लेकिन यहां सुधार कर शायद कहना सही होगा कि छोटे-मंझोले निवेशकों के 7 लाख करोड़ डूब गए। क्योंकि बड़े निवेशक ही बाजार में असल खेल खेलते हैं और मुनाफा कमाते हैं। ब्रिटेन से संक्रमण का डर इस गिरावट का एक छोटा सा कारण लगता है। शायद इसकी आड़ में ही बाजार के दिग्गज खिलाड़ियों ने लाखों करोड़ का खेल कर दिया। बाजार कोई तालाब तो है नहीं कि जिसमें पैसे सच में डूब जाएं। असल बात तो ये है कि बहुत सारे लोगों की जेब से निकला पैसा चंद लोगों के खाते में चला जाता है औऱ इसे पैसा डूबना कह दिया जाता है। याद रहे कि कोरोना काल में जब भारतीय अर्थव्यवस्था में हाहाकार था, तब भी शेयर बाजार बढ़ रहा था। मार्च में सेंसेक्स 25 हजार से ऊपर था जो बढ़ते-बढ़ते दिसंबर में 47 हजार तक जा चुका है। इस उछाल की वजह से शेयरों की कीमतें काफी बढ़ गई थीं। जाहिर सी बात है कि निवेशकों को इस समय कमाई का मौका था और उन्होंने शेयरों की बिक्री कर दी। और इस वजह से हजारों छोटे निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ा।
विदेशी निवेशकों ने भी लगभग 50 दिनों बाद सोमवार को पैसे निकाले है। शुद्ध रूप से 323 करोड़ रुपए के शेयर सोमवार को बिके हैं। क्रिसमस और नए साल की तैयारी में अब नया विदेशी निवेश होने की संभावना नहीं है औऱ पुराने निवेश को निकाल लिया गया है। इस वजह से बाजार को मुंह की खानी पड़ी। छोटे निवेशकों को यह नुकसान नहीं होता, अगर उन्हें पहले से सचेत किया जाता।
लेकिन तब बड़े लोगों को फायदा कैसे होता। शायद इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की खबरें आती रहीं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट से पहले उद्योगपतियों से चर्चा करने में व्यस्त रहीं। उन्होंने तो दावा किया है कि सौ साल में इस तरीके से बजट नहीं बना होगा। ऐसे दावे उन्हें मुबारक, लेकिन देश तो इस वक्त असहाय महसूस कर रहा है। स्वास्थ्य के मोर्चे पर घबराहट बनी हुई है। घरेलू मोर्चे पर किसान आंदोलन भविष्य की चिंताएं दिखा रहा है। सरकार जनता को राहत पहुंचाने वाले काम करने की जगह निकाय चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक में व्यस्त है। औऱ इन सबके बीच आर्थिक चिंताएं बढ़ रही हैं। देखना है कि सरकार वाकई कब काम करेगी।
(देशबंधु)
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