भवन निर्माण से जुड़े सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर 20 हज़ार करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं। जिसमें संसद भी शामिल है जिसपर 971 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। संसद पर होने वाले खर्च पर तो सवाल उठ ही रहे हैं लेकिन फिर भी उसे सहा जा सकता है लेकिन भवन निर्माण के इस प्रोजेक्ट पर बाक़ी जगह होने वाले खर्च पर किसी का ध्यान नही गया। सेंट्रल विस्टा राजधानी क्षेत्र में आने वाले एक एरिया का नाम है जिसमें राष्ट्रपति भवन, उसी के अग़ल बग़ल वाली बिल्डिंग नोर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, केंद्रीय सचिवालय, राजपथ, नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स की बिल्डिंग आती है। इन बिल्डिंगों के सौंदर्यीकरण पर ही 20,000 करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं।ये कितनी अश्लील सी बात है कोरोना से लड़ाई के लिए सरकार पर पैसे नहीं होते, गरीब जनता से पैसों की उगाही की गई, सरकारी कर्मचारियों के वेतन काटे गए। कोरोना का बहाना करके अभी तक छात्रों की scholarship नहीं दी गई लेकिन पहले से ही बनी बिल्डिंगों को दोबारा से भव्य बनाने पर 20 हज़ार करोड़ खर्च कर दिए जा रहे हैं।

संसद ख़ासकर लोकसभा में मात्र 545 सांसद हैं पर्याप्त स्थान है, सोशल डिस्टन्सिंग आराम से फ़ॉलो की जा सकती है, इसके अलावा कोरोना से बचाव के लिए जो भी उपाय करने हैं वे सब किए जा सकते हैं। लेकिन बावजूद इसके संसद का शीतकालीन सत्र रद्द कर दिया गया है। एक तरफ़ प्रधानमंत्री 3-3 लाख लोगों की चुनावी रैली करते हैं, अकेले बिहार चुनाव में प्रधानमंत्री ने 12 रैलियाँ कीं, जिसमें लाखों लोगों की भीड़ एकत्रित की गई, जहां दो गज की दूरी तो छोड़िए पैर रखने के लिए जगह नहीं होती थी, क्या भाषण देते समय प्रधानमंत्री को वह भीड़ नज़र नहीं आती थी?
विधानसभा चुनाव छोड़िए भाजपा द्वारा निकाय चुनावों में भी ध्रुवीकरण करने के लिए हैदराबाद में लाखों की भीड़ में रोड शो किए गए। जम्मू कश्मीर निकाय चुनावों में भी भाजपा के बड़े बड़े नेता राजनीतिक कार्यक्रम करने पहुँच रहे हैं। लेकिन संसद में शीतक़ालीन सत्र नहीं बुलाया जा रहा। क्योंकि देश में कोरोना है। असल में शीतकालीन सत्र इसलिए नहीं बुलाया जा रहा क्योंकि दिल्ली में कोरोना है बल्कि इसलिए नहीं बुलाया जा रहा क्योंकि दिल्ली में किसान हैं। संसद सत्र होता तो किसानों पर चर्चा होती, चर्चा होती तो किसान आंदोलन और अधिक तीव्र होता। सरकार को किसानों की बात माननी पड़ती। जिसे एक नेता के अभिमान में किसानों द्वारा डाली गई नकेल के रूप में देखा जाता। लेकिन सोचने वाली बात है राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ प्लॉक पर 20000 करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन सरकार संसद सत्र नहीं बुला रही।
सरकार में इतनी क्षमता है कि 5-5 लाख लोगों की राजनैतिक रैलियाँ आयोजित कर सकती है लेकिन 545 सांसदों का सत्र आयोजित नहीं कर सकती। ग़ज़ब देश है…
-श्याम मीरा सिंह॥
भवन निर्माण से जुड़े सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर 20 हज़ार करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं। जिसमें संसद भी शामिल है जिसपर 971 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। संसद पर होने वाले खर्च पर तो सवाल उठ ही रहे हैं लेकिन फिर भी उसे सहा जा सकता है लेकिन भवन निर्माण के इस प्रोजेक्ट पर बाक़ी जगह होने वाले खर्च पर किसी का ध्यान नही गया। सेंट्रल विस्टा राजधानी क्षेत्र में आने वाले एक एरिया का नाम है जिसमें राष्ट्रपति भवन, उसी के अग़ल बग़ल वाली बिल्डिंग नोर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, केंद्रीय सचिवालय, राजपथ, नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स की बिल्डिंग आती है। इन बिल्डिंगों के सौंदर्यीकरण पर ही 20,000 करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं।ये कितनी अश्लील सी बात है कोरोना से लड़ाई के लिए सरकार पर पैसे नहीं होते, गरीब जनता से पैसों की उगाही की गई, सरकारी कर्मचारियों के वेतन काटे गए। कोरोना का बहाना करके अभी तक छात्रों की scholarship नहीं दी गई लेकिन पहले से ही बनी बिल्डिंगों को दोबारा से भव्य बनाने पर 20 हज़ार करोड़ खर्च कर दिए जा रहे हैं।
संसद ख़ासकर लोकसभा में मात्र 545 सांसद हैं पर्याप्त स्थान है, सोशल डिस्टन्सिंग आराम से फ़ॉलो की जा सकती है, इसके अलावा कोरोना से बचाव के लिए जो भी उपाय करने हैं वे सब किए जा सकते हैं। लेकिन बावजूद इसके संसद का शीतकालीन सत्र रद्द कर दिया गया है। एक तरफ़ प्रधानमंत्री 3-3 लाख लोगों की चुनावी रैली करते हैं, अकेले बिहार चुनाव में प्रधानमंत्री ने 12 रैलियाँ कीं, जिसमें लाखों लोगों की भीड़ एकत्रित की गई, जहां दो गज की दूरी तो छोड़िए पैर रखने के लिए जगह नहीं होती थी, क्या भाषण देते समय प्रधानमंत्री को वह भीड़ नज़र नहीं आती थी?
विधानसभा चुनाव छोड़िए भाजपा द्वारा निकाय चुनावों में भी ध्रुवीकरण करने के लिए हैदराबाद में लाखों की भीड़ में रोड शो किए गए। जम्मू कश्मीर निकाय चुनावों में भी भाजपा के बड़े बड़े नेता राजनीतिक कार्यक्रम करने पहुँच रहे हैं। लेकिन संसद में शीतक़ालीन सत्र नहीं बुलाया जा रहा। क्योंकि देश में कोरोना है। असल में शीतकालीन सत्र इसलिए नहीं बुलाया जा रहा क्योंकि दिल्ली में कोरोना है बल्कि इसलिए नहीं बुलाया जा रहा क्योंकि दिल्ली में किसान हैं। संसद सत्र होता तो किसानों पर चर्चा होती, चर्चा होती तो किसान आंदोलन और अधिक तीव्र होता। सरकार को किसानों की बात माननी पड़ती। जिसे एक नेता के अभिमान में किसानों द्वारा डाली गई नकेल के रूप में देखा जाता। लेकिन सोचने वाली बात है राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ प्लॉक पर 20000 करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन सरकार संसद सत्र नहीं बुला रही।
सरकार में इतनी क्षमता है कि 5-5 लाख लोगों की राजनैतिक रैलियाँ आयोजित कर सकती है लेकिन 545 सांसदों का सत्र आयोजित नहीं कर सकती। ग़ज़ब देश है…