-राजीव मित्तल॥
उच्च स्तर पर शीघ्र ही ‘सब्जी ऑन व्हील’ योजना को हरी झंडी दिखाई जाने वाली है.. जैसे पचास साल पहले एमएस स्वामीनाथन ने अनाज के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाया था, पचास साल बाद हमारे एग्रीकल्चर टायकून श्री गौतम अदाणी सब्जी के मामले में क्रांति करने जा रहे हैं.. उनके इस क्रांतिकारी अभियान में अपनी भी तर्जनी और अदना दिमाग शामिल हैं..

मालगाड़ी की रेफ्रीजरेटर युक्त बोगियों में देश के कोने कोने सब्जी पहुंचाना फूड रेवोल्यूशन से कम नहीं.. अगर यह योजना कामयाब हुई तो एक दिन वो आयेगा जब हम काकेशस के गुलाबी कद्दू, डेनमार्क की गोल नीली तोरई, ग्रीनलैंड की भूरी मटर और फ्रांस की बैंगनी गोभी का स्वाद मुसहर की झोंपड़ी तक पहुंचा सकेंगे..मुझे बेहद खुशी हो रही है कि हमारी-आपकी-हम सबकी ‘अदाणी हरी-ताजी स्पेशल’ बहुत जल्द देश भर की पटरियों पर दौड़ने वाली है..
आइये इस योजना के मुख्य बिंदुओं पर ध्यान दें–
1-सब्जी स्पेशल के लिए विशेष किस्म के यार्ड और प्लेटफार्म बनेंगे.. बोगियां का खास डिजाइन का निर्माण अंतिम चरण में है..
2- सब्जियां किसानों के खेतों से न खरीद कर ट्रेन के डिब्बों के अंदर और उनकी छतों पर उगायी जाएंगी..नीचे के हिस्से में मिट्टी भर कर आलू, जिमीकंद, घुइयां, तो ऊपर मटर, भिंडी, लौकी और कुम्भड़े की बेलें.. इस काम को करने के इच्छुक लोगों को जापान भेज कर प्रशिक्षण दिलाया गया है, जहां तरबूज प्याले में और मिर्चा चम्मच में उगायी जाती है..
3-ऐसी ट्रेनों में उपजाऊ मिट्टी के साथ रासायनिक खाद की जगह उत्तर बिहार के पानी का इस्तेमाल होगा.. ट्रेन के डिब्बों में नांद बना कर सिंघाड़ा और मखाना भी उगाया जा सकता है.. लेकिन पानी उत्तर बिहार का ही क्योंकि वहां के पानी में आर्सेनिक और आयरन भरपूर होता है..
4-ट्रेनों की रफ्तार इतनी होगी कि मूली का बीज इस स्टेशन पर पड़े तो उस स्टेशन तक पहुंचते-पहुंचते वो मूली कोफ्ता बनने की उत्सुकता में खिड़की से झांक रहा हो..इसके लिये देश भर में एक बार फिर नैरो गेज का जाल बिछाया जाएगा और इंजन में अखबार की रद्दी का इस्तेमाल होगा.. हालांकि लॉक डाउन के चलते ट्रेनों की रफ्तार वही है पर, तब बड़ी लाइन पर लोड काफी बढ़ जाएगा..
5-सब्जियों को अदल बदल कर उगाया जाएगा- जैसे ‘अप’ में लौकी तोे ‘डाउन’ में बेंगन.. इस अभियान को पानी के जहाज और हवाईजहाज के जरिये विदेशों तक फैलाया जा सकता है..कैसे! इस बारे में बाकी सुझाव देशी सफलता के दर्शन होने के बाद..
इसके बाद फल और फूलों पर ध्यान देने की जरूरत है..तब कुछ ट्रेनों को चमेली जान स्पेशल या रंग बदलता खरबूजा स्पेशल नाम दिया जाएगा..
अब आखिरी बात..वो ये कि हमारे देश में ट्रेनों की बड़ी दुर्गत है.. जहां चाहे वहां रोक इस पर जूता-लात चलने लगते हैं.. प्रख्यात नारीवादी शख़्सियत तारा का कहना है कि ट्रेन या रेलगाड़ी स्त्रीलिंग से जुड़े शब्द हैं, इसलिये उनका यह हाल है.. इंजन को कोई छूता भी नहीं.. ट्रेन की बोगियों को पुरुषोचित अत्याचार से बचाने के लिये जरूरी है कि जितनी जल्दी हो, संसद में एक ऐसा बिल पास कराया जाए, जिसके अंतर्गत सम्पूर्ण स्त्रीलिंग कवर होता हो.. साथ ही ट्रेनों पर हाथ-पांव छोड़ने वालों के खिलाफ कड़े कानून बनाये जाएं और स्पेशल टास्क फोर्स बनाई जाए..
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