मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग पर कई दिनों से आंदोलनरत किसानों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया था, जिसका व्यापक असर देश में देखने मिला। बंद पूरी तरह सफल और शांतिपूर्ण रहा। कई जगह रास्ते बंद होने और हाईवे पर चक्का जाम होने से आम जनता को थोड़ी बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ा, लेकिन किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं आई। आम जनता का बड़ा वर्ग जानता है कि आज अगर वे थोड़ी तकलीफ सहन कर लेंगे तो भविष्य में होने वाली तकलीफों से मुक्ति पाएंगे। इसलिए बहुतेरी जनता किसानों के साथ है। देश के कई विपक्षी दल किसानों के समर्थन में हैं। हालांकि इस पर भाजपा और उसके समर्थकों को आपत्ति भी हो रही है और विपक्षी दलों पर तंज कसे जा रहे हैं कि इनके पास कुछ करने को नहीं है तो ये किसानों के साथ खड़े हो गए हैं। लेकिन ऐसा कहने वाले भूल रहे हैं कि किसान किसी दल विशेष के नहीं होते, न ही वे किसी एक के लिए अनाज उगाते हैं।
किसान देश के होते हैं और उनके उगाए अन्न से इंसानों से लेकर पशु-पक्षियों तक सबका पेट भरता है। इसलिए किसानों पर अगर किसी तरह का संकट आता है, तो तय है कि उससे देश का भविष्य भी संकटग्रस्त होगा। दुख इस बात का है कि केंद्र में बैठी मोदी सरकार चंद उद्योगपतियों के मुनाफे की खातिर पूरे देश का भविष्य खतरे में डालने की जिद पर अड़ी है। जब से नए कृषि कानून बने, तब से किसान इसका विरोध कर रहे हैं और उनकी मांग है कि इन कानूनों को रद्द किया जाए। नए कानून बनाना है तो उसमें एमएसपी की बात भी शामिल की जाए। लेकिन सरकार ऐसा करने की कोई नीयत नहीं दिखा रही है और केवल समय बिता रही है।

किसानों के साथ दुश्मन देश जैसा सलूक किया जा रहा है। पहले तो उन्हें दिल्ली आने से रोका गया, फिर उन पर आंसू गैस के गोले, पानी की बौछारें की गईं और तमाम अत्याचारों के बावजूद किसान नहीं रुके तो अब सरकार कूटनीतिक तरीके अपना रही है। जैसे दुश्मनों के साथ युद्धविराम के लिए वार्ताएं की जाती हैं, वैसे किसानों के साथ अब वार्ताओं का दौर चल रहा है। 5 दिसंबर को ही सरकार के मंत्रियों के साथ किसानों की पांचवें दौर की बैठक हुई थी, जिसमें कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश शामिल हुए थे। इसमें किसानों ने सरकार से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की थी। उन्होंने सरकार से हां या ना में जवाब मांगा था।
सरकार कानूनों में संशोधन करने के लिए तैयार हो गई, लेकिन किसान कानूनों को रद्द किए जाने की मांग से पीछे हटने तैयार नहीं हैं। नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछली बैठक के बाद कहा था कि किसानों को मोदी सरकार पर भरोसा रखना चाहिए। जो भी किया जाएगा, वह उनके हित में होगा। इसके साथ ही उन्होंने किसानों से आंदोलन समाप्त करने का अनुरोध किया था ताकि वे ठंड के मौसम में असुविधा का सामना न करें और दिल्ली के नागरिक भी सुविधा के साथ रह सकें।
भारत बंद के दौरान भी उन्होंने ट्वीट किया कि नए कृषि सुधार कानूनों से आएगी किसानों के जीवन में समृद्धि! विघटनकारी और अराजकतावादी ताकतों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रामक प्रचार से बचें। एमएसपी और मंडियां भी जारी रहेंगी और किसान अपनी फसल अपनी मर्जी से कहीं भी बेच सकेंगे। कृषि मंत्री की इन बातों से यही समझ आता है कि सरकार अपने कदम पीछे नहीं लेना चाहती और इसलिए किसानों पर तरह-तरह से दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन सरकार को अगर किसानों की समृद्धि की चिंता है तो क्यों नहीं उनकी मांगों को सुनती। उन पर बिना उनसे मशविरा किए अपनी मर्जी का कानून क्यों थोप रही है।
कृषि मंत्री श्री तोमर दिल्ली के नागरिकों की सुविधा का वास्ता किसानों को दे रहे हैं, लेकिन उनकी प्राथमिकता समूचे देश का भविष्य होना चाहिए। भारत बंद के बीच इन पंक्तियों के लिखे जाने तक समाचार है कि गृहमंत्री अमित शाह किसानों से बातचीत करेंगे। यानी एक बार फिर किसानों को आंदोलन खत्म करने के लिए मनाया जाएगा। अब देखना होगा कि क्या सरकार किसानों की बात मानती है या फिर किसानों को किसी तरह मना लेती है।
दोनों ही सूरतों में यह ध्यान रखना होगा कि किसानों के हितों से किसी तरह का समझौता न हो। इस सरकार ने हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, बसअड्डे और राष्ट्रीय कंपनियां देश के चंद अमीरों को बेच ही दी हैं, अब सरकार चाहती है कि खेती का बाजार भी पूंजीपतियों के हाथ में हो। अगर ऐसा हुआ तो फिर देश को पूरी तरह से उद्योगपतियों का गुलाम बनने से कोई नहीं रोक सकता। क्या हम गुलामी के नए दौर के लिए तैयार हैं, यह सवाल अब हरेक नागरिक को खुद से करना होगा।
(देशबंधु)
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