-मुशर्रफ अली॥
बीजेपी ने जो लक्ष्य निर्धारित कर रखे हैं उनमें से मुसलमानों द्वारा एक ही समय मे तीन तलाक़ दिया जाने की समाप्ति के लिये क़ानून बनाना, राम मंदिर निर्माण और धारा 370 के लक्ष्यों को सफलता पूर्वक पूरा कर लिया है अब जो नए लक्ष्य पूरे किए जाने हैं उनमें काशी-मथुरा मस्जिद विवाद, समान नागरिक संहिता और परिवार नियोजन क़ानून शामिल हैं। इनकी सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। आने वाले दिनों में निश्चय ही मुसलमानों के सामने यह मुद्दें आने वाले हैं। कबूतर के आंखे बंद करने या शुतुरमुर्ग के रेत में मुंह छिपा लेने से इन मुद्दों से बचा नही जा सकता इसलिये इन मुद्दों से आंखे मिलाकर इनपर हिकमत अमली तैैैयार करनी होगी। इन मुद्दों में से काशी-मथुरा मस्जिद विवाद पर फिलहाल चर्चा को आगे के लिये स्थागित करते हुए बाद के दोनों मुद्दों यानी समान नागरिक संहिता और परिवार नियोजन क़ानून पर चर्चा को केंद्रित करते हैं।
आमतौर पर हर देश मे दो तरह की क़ानून संहिताएं होती है एक नागरिक प्रक्रिया संहिता यानी सिविल कोड जिसे आम बोलचाल में दीवानी भी कहते हैं। इसमे शादी-तलाक़, ज़मीन-जायदाद का बंटवारा, विरासत, गोद लेना आदि से जुड़े क़ानून आते हैं जबकि अपराध और उनके दण्ड से सम्बंधित क़ानून, दण्ड प्रक्रिया संहिता में आते हैं जिन्हें आम बोलचाल में फौजदारी कहा जाता है। भारत मे दण्ड प्रक्रिया संहिता सबपर समान रूप से लागू है जबकि नागरिक संहिता से सम्बंधित क़ानून धर्मो के आधार पर अलग अलग हैं । मुसलमानों के लिये सिविल क़ानून मुस्लिम पर्सनल लॉ यानी इस्लामी शरिया के अनुसार लागू होते हैं जैसे शादी और तलाक़, संपत्ति में हिस्सेदारी, तलाक़ के बाद गुज़ारा खर्च, विरासत, गोद लेना आदि । इसी तरह इस्लाम मे दण्ड प्रक्रिया के तहत चोरी की सज़ा हाथ काटना, हत्या की सज़ा सर काटना, बलात्कार य्या अवैध यौन सबंधो की सज़ा ज़मीन में गाढ़ कर पत्थरों से मारकर जान लेना है लेकिन भारत में अंग्रेज़ो द्वारा बनाई गई समान दण्ड प्रक्रिया संहिता लागू है।

अब अगर समान नागरिक संहिता लागू होती है यानी सब के लिये एक समान दीवानी क़ानून लागू होते हैं तो मुसलमानों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसपर विचार करते हैं। इसके बनने पर मुस्लिम पुरुष और महिलाओं पर अलग अलग प्रभाव पड़ेगा। महिलाओं को तीन तलाक़ से पूरी तरह मुक्ति मिल जाएगी। यहां यह बात साफ कर देना ज़रूरी है कि वर्तमान में बीजेपी सरकार ने जो तीन तलाक़ के क़ानून में संशोधन किया है उसके तहत मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक़ से छुटकारा नही मिला है जैसा कि समझा जा रहा है उनको केवल एक ही समय तीन बार तलाक़ कहने पर तलाक़ हो जाने से छुटकारा मिला है। मुस्लिम पुरुष के पास तीन तलाक़ का अधिकार अभी भी बाक़ी है बस अब उसको एक साथ तीन बार कहने के स्थान पर तीन तलाक़ तीन माह की अवधि में कहना होता है जो समान नागरिकता क़ानून के बाद समाप्त हो जाएगा।
समान नागरिक संहिता बन जाने पर मुस्लिम महिलाओं को दूसरा लाभ एक पत्नी के रहते पुरुषों के बहुविवाह के अधिकार से छुटकारा मिल जाएगा। तीसरा लाभ मुस्लिम महिलाओं को पिता और पति की संपत्ति में जो पुरुषों की तुलना में कम हिस्सा मिलता था अब वो हिस्सा बराबर का हो जाएगा। एक और लाभ उन बच्चो को मिल जाएगा जिनके पिता दादा की मौजूदगी में खत्म हो जाते हैं। यानी किसी व्यक्ति का विवाहित पुत्र अगर किसी कारण से मौत का शिकार हो जाता है तो मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मृतक के बच्चे संपत्ति से वंचित हो जाते हैं समान नागरिकता क़ानून बन जाने पर उनको वंचित नही किया जा सकता है। इसके अलावा तलाक़ के बाद केवल इद्दत की तीन माह की अवधि तक पत्नी को गुजारा देने का क़ानून है इस अवधि के बाद गुजारे की ज़िम्मेदारी तलाक़ शुदा लड़की के माँ-बाप पर आ जाती है। इस कानून के बाद हिन्दू महिलाओं की तरह ही मुस्लिम महिलाओं को गुज़ारा पाने का अधिकार मिल जाएगा।
अब हम बात करते हैं कि इस समान नागरिक संहिता के लागू हो जाने से मुस्लिम पुरषों को क्या लाभ और क्या हानि होगी। वर्तमान में मुस्लिम पुरुष अपने मरने के बाद केवल अपनी संपत्ति के 1/3 हिस्से की वसीयत अपने परिवार के बाहर के व्यक्ति को कर सकता है। समान नागरिक संहिता बन जाने पर वो अपनी सारी संपत्ति की किसी को भी उसी तरह वसीयत कर सकता है जैसे हिन्दू करते हैं। हाँ बहुपत्नी रखने का उससे अधिकार छिन जाएगा लेकिन वास्तविकता यह है कि मुस्लिम पुरुष पर बेशक बहुपत्नी रखने का अधिकार है लेकिन मुस्लिम समाज मे ऐसे व्यक्ति को सम्मान की नज़र से नही देखा जाता इसलिये उसको इस अपमानजनक स्थिति से भी छूटकारा मिल जाएगा और जो लोग उसपर चार पत्नी रखने और उनसे चालीस बच्चे पैदा करने का आरोप लगाते है इस कानून के बाद उनसे यह मुद्दा छिन जाएगा और यह आरोप समाप्त हो जाएगा। मुस्लिम पुरुष को जो महिलाओं की तुलना में संपत्ति में ज़्यादा हिस्सेदारी मिली हुई है वो समाप्त हो जाएगी इसके अलावा तीन तलाक़ देने की सुविधा भी उससे छिन जाएगी। इस सुविधा के छिनने से बतौर पति तो उसको नुक़सान होगा लेकिन बतौर पिता या भाई उसको लाभ होगा क्योंकि उसकी बहन या बेटी को इससे लाभ मिलेगा यानी अगर एक तरफ उसके अधिकार कम होते है तो दूसरी ओर बेटी और बहन के माध्यम से उन अधिकारों की भरपाई हो जाती है।
अब हम परिवार नियोजन क़ानून पर आते है तो इस कानून के लागू हो जाने पर सभी धर्मों के लोगो पर सीमित परिवार रखने की बाध्यता होगी। सीमित परिवार आज की ज़रूरत है इससे बच्चो की बेहतर परवरिश होगी। पालन पोषण में आसानी होगी। शिक्षा और स्वास्थय बेहतर होगा और इस तरह जीवन स्तर ऊंचा होगा। यह क़ानून कहीं से भी नुक़सान पहुंचाने वाला नही है।
उपरोक्त तथ्यो पर गौर करने से यह नतीजा सामने आता है कि समान नागरिक संहिता और परिवार नियोजन क़ानून से मुसलमानों को कोई नुकसान नही होने जा रहा बल्कि लाभ ही हासिल होगा रही बात शरीयत की तो हम उसका आधा भाग, समान दण्ड संहिता के रूप में पहले से ही स्वीकार कर चुके हैं। इस बारे में आज तक मुसलमानों के किसी भी धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक संगठन ने शरीयत के अनुसार दण्ड प्रक्रिया संहिता लागू करने की मांग नही उठायी है इसलिये समान नागरिक संहिता अगर लागू हो जाती है तो उससे भी कोई नुकसान नही होने वाला। आख़री बात यह कि इससे पहले की दूसरे लोग इस मांग को उठाएं मुसलमानों को चाहिए कि वो खुद इसकी पहल करते हुए सरकार से इसको बनाने की मांग करें ताकि मुसलमानों का दानवीकरण करके उससे राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा को हतोत्साहित किया जा सके। बल्कि इसमे इस मांग को और जोड़ दिया जाए कि सरकार समान नागरिक संहिता बनाने के साथ ही समान धार्मिक और समाजिक संहिता भी बनाने का काम करे ताकि किसी भी जाति के व्यक्ति को पुरोहित पद पर योग्यता के आधार पर नियुक्त किया जा सके ताकि एक बेहतर और समरस समाज का निर्माण हो सके।
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