मथुरा के नंदगांव स्थित नंद बाबा मंदिर परिसर में नमाज पढ़ने का मामला बहुत जल्दी शांत होता नहीं दिखाई देता। इस प्रकरण के मुख्य आरोपी फै़सल खान ने न केवल भरपूर सफाई दे दी है, बल्कि माफी भी मांग ली है। उसके खिलाफ अलग-अलग धाराओं में मामला दर्ज हो चुका है और उसे हिरासत में भी लिया जा चुका है। इसके बावजूद कुछ लोग इस मसले को सांप्रदायिक रंग देने में जुटे हुए हैं। मंगलवार को चार युवकों ने मथुरा की ईदगाह में हनुमान चालीसा का पाठ किया, जिसके सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद चारों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया। पुलिस ने बिना किसी शिकायत के शांति भंग करने के आरोप में इनका चालान किया है। फै़सल की तरह इन आरोपियों का भी कहना है कि वे भाईचारा बढ़ाने के लिए मस्जिद में हनुमान चालीसा पढ़ने गए थे।
दूसरी तरफ बागपत के विश्व हिंदू परिषद के जिला मंत्री पप्पन राणा ने ऐलान किया है कि वे शुक्रवार को बड़ौत स्थित फूंस वाली मस्जिद में हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। इसी बागपत के विनयपुर गांव स्थित मस्जिद में एक भाजपा नेता मनुपाल बंसल ने गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा का पाठ किया। हालांकि ऐसा करने से पहले उन्होंने वहां के मौलाना से बाकायदा इजाजत ली और लोगों से यह अपील भी की कि इस बात को तूल न दिया जाए। मौलाना ने भी कहा कि खुदा या भगवान सभी एक हैं, कहीं भी बैठकर ऊपर वाले की इबादत की जा सकती है। इससे उलट फूंस वाली मस्जिद के शहरी इमाम और प्रबंधक के साथ जमीयत उलेमा हिंद के स्थानीय अध्यक्ष साबिर ने पुलिस अधीक्षक से मिलकर मांग की है कि ऐसा होने से रोका जाए। किसी की भावना को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए।

यह बताना लाजमी होगा की फ़ैसल खान ख़ुदाई खिदमतगार नामक उस संस्था के संयोजक हैं, जिसकी स्थापना 1929 में सीमान्त गांधी यानि खान अब्दुल गफ़्फार खान ने की थी। इस संस्था के क्रियाकलाप गांधीजी के सिद्धांतों से प्रेरित रहे हैं। संस्था ने एक बयान में कहा है कि फै़सल गोवर्धन की प्राचीन चौरासी कोस यात्रा में भाग ले रहे थे, इसी बीच नमाज का समय हो गया। संस्था का यह भी कहना है कि फ़ैसल खुद गांधीवादी हैं और संस्था का काम ही सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ाना है, इसलिए किसी गलत इरादे का सवाल ही नहीं उठता है। फ़ैसल खान खुद भी यह कह चुके हैं कि वे किसी साजिश के तहत नहीं, बल्कि सदभावना यात्रा पर गए थे। उन्होंने धोखे से नमाज नहीं पढ़ी, धार्मिक भावनाएं भड़काने का उनका कोई इरादा नहीं था। वहां कई लोग थे और किसी ने उन्हें नमाज पढ़ने से नहीं रोका।
यह ठीक है कि मंदिर परिसर में नमाज पढ़ने या मस्जिद में हनुमान चालीसा का पाठ करने से कोई आसमान नहीं टूट पड़ता। लेकिन जरूरी नहीं कि ऐसा करने से दो समुदायों के बीच भाईचारा पनपता हो या सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ता हो। हां, तनाव पैदा होने की पूरी गुंजाईश रहती है। इसलिए फै़सल खान और उनके साथियों के इरादे कितने ही नेक क्यों न हों, उन्हें अतिरिक्त रूप से सावधान रहना चाहिए था। आिखर वे इस बात से अनजान तो नहीं हो सकते कि इस विविधवर्णी महादेश को एक ही रंग में रंगने की कैसी-कैसी कोशिशें लगातार की जा रही हैं और एक छोटी सी चूक भी चिंगारी को भीषण आग में बदल सकती है। तब्लीग़ी जमात से लेकर तनिष्क के विज्ञापन तक कैसे झूठ और कैसे कुतर्क रचे गए, हाल के दिनों में हम सबने देखा है। हो सकता है कि इन तमाम घटनाओं ने फ़ैसल को ब्रज यात्रा के लिए प्रेरित किया हो।
इस मामले को पुलिस तक ले जाने वाले, गंगा जल और हवन से परिसर का तथाकथित शुद्धिकरण करने वाले सेवादारों ने ये देखने की जहमत नहीं उठाई कि फै़सल और उनके साथियों ने नंदबाबा मंदिर में दर्शन किए थे और प्रसाद ग्रहण किया था। फै़सल ने तो वहां मौजूद लोगों को रामचरित मानस की चौपाईयां तक सुनाईं। एक निजी खबरिया चैनल से बातचीत में भी फ़ैसल ने कृष्ण के दो अनन्य भक्तों- रसखान और ताज बीबी का हवाला दिया। दोनों की ही मजारें मथुरा में हैं। लेकिन जिन लोगों ने हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब को मटियामेट कर देने की कसम खा रखी है, उन्हें इन बातों से क्या मतलब। उन्हें तो बस वे तस्वीरें ही अच्छी लगती हैं जिनमें बुर्काधारी महिलाएं हनुमान जी की पूजा करती नजर आती हों या कृष्ण का भेस धरे कोई बच्चा अपने मुस्लिम पिता की ऊंगली पकड़ सड़क पर चल रहा हो। जनता को ऐसे पाखंडियों से सतर्क रहना चाहिए।
(देशबन्धु)
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