बिहार में पहले चरण के मतदान में अब कुछ ही दिन शेष हैं और उससे पहले अलग-अलग दलों के घोषणापत्र सामने आने लगे हैं। इन घोषणापत्रों को पढ़-सुनकर ऐसा लगता है मानो नयी सरकार के बनते ही बिहार, न केवल बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर होगा, बल्कि देश का सबसे अधिक विकसित राज्य अगले पांच सालों में बन जाएगा। न रोजगार की दिक्कत होगी, न महंगाई परेशान करेगी, न महिला सुरक्षा की कोई समस्या रहेगी, न अपराध का नामोनिशान रहेगा। सब कुछ चंगा सी, की तर्ज पर विभिन्न दल अपनी भावी सत्ता की झलक मतदाताओं को दिखला रहे हैं।
राजद के तेजस्वी यादव ने सत्ता संभालते ही पहला हस्ताक्षर 10 लाख नौकरियों का वादा करने को लेकर किया। वहीं प्लूरल्स पार्टी की पुष्पम प्रिया 80 लाख नौकरियों की बात कर रही हैं। नीतीश कुमार बतौर मुख्यमंत्री इतने सालों में रोजगार के लिए कुछ खास काम नहीं कर पाए, अब वे अपनी कमी छिपाने के लिए तेजस्वी यादव से सवाल कर रहे हैं कि इतनी नौकरियों के लिए धन कहां से लाएंगे, जेल से या फिर नकली नोट छापेंगे। जिस पर तेजस्वी यादव ने भी जवाब दिया है कि नीतीश जी के कार्यकाल में 30000 करोड़ के 60 घोटाले हुए हैं। 500 करोड़ चेहरा चमकाने के लिए विज्ञापन पर खर्च करते हैं। 24500 करोड़ जल जीवन हरियाली के नाम पर पार्टी कार्यकर्ताओं को बांटते हैं। शराबबंदी के नाम पर अवैध इकॉनामी चलाते हैं।
मानव शृंखला पर हजारों करोड़ लुटाते हैं। वो यह नहीं समझेंगे…। रोजगार के मसले पर इस सवाल-जवाब से यह संकेत मिल रहे हैं कि नीतीश कुमार के लिए आरजेडी की घोषणा एक बड़ी परेशानी बन गई है। आरजेडी की सभाओं में भी खूब भीड़ उमड़ रही है, जिससे भाजपा-जदयू परेशान हैं, हालांकि भाजपा का यह विश्वास है कि आरजेडी की सभाओं में उमड़ती भीड़ वोट में तब्दील नहीं होगी। भाजपा के लोग यह भी मानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के आने से माहौल बदल जाएगा। वैसे माहौल बदलने की तैयारी भाजपा ने पहले ही कर ली है। इसलिए राजनाथ सिंह ने अपनी चुनावी रैली में भारत विभाजन से लेकर सीएए का मसला उठाया। उधर आदित्यनाथ योगी भी अपनी फायर ब्रांड इमेज को सही साबित करने में लगे हैं। उन्होंने अपनी सभा में राहुल गांधी को पाकिस्तान से प्रेम करने वाला बताते हुए उन्हें राजनीति न करने की नसीहत दी।
कोरोना के कारण चुनाव आयोग ने इस बार स्टार प्रचारकों की संख्या सीमित रखी है, उसके बावजूद आदित्यनाथ योगी को इस लिस्ट में जगह मिली, क्योंकि भाजपा जानती है कि वे धार्मिक, राष्ट्रवादी, भावनात्मक मुद्दे खड़े कर ही लेंगे, जिससे मतविभाजन में आसानी होती है। वैसे हाथरस जैसे गंभीर मामले और उप्र में कानून-व्यवस्था की बदहाली में कोई और मुख्यमंत्री होता तो शायद ही उसे इतनी तवज्जो मिलती, लेकिन आदित्यनाथ योगी अब भाजपा में काफी ऊपर आ चुके हैं, यह जाहिर है।
बिहार में मोदीजी 12, अमित शाह 15 रैलियां करने वाले हैं, लेकिन योगी के लिए 20 जनसभाएं रखी गई हैं। अगड़ी जातियों को साधने और राम मंदिर से लेकर कश्मीर तक के भावनात्मक मुद्दों को साधने के लिए पार्टी उनका उपयोग करेगी। देखना ये है कि चिराग पासवान को लेकर भाजपा आगे क्या रुख अपनाएगी।
आज लोजपा ने भी अपना घोषणापत्र जारी किया, और इस मौके पर चिराग पासवान ने नीतीश कुमार पर जातीयता और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। उन्होंने बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट के विजन को सामने रखते हुए विकास, रोजगार, शिक्षा, दुग्ध उत्पादन धार्मिक टूरिज़्म आदि के दावे किए। सूखे, बाढ़ की समस्या से जूझने के लिए नदियों को जोड़ने की बात कही, जिसे जानकार वाजपेयी प्रभाव बता रहे हैं। इसके साथ उन्होंने अलग से प्रवासी मजदूर मंत्रालय बनाने की बात कही, ताकि दूसरे राज्यों में रह रहे प्रवासी मजदूरों से संपर्क हो सके।
चिराग के इस विजन डाक्यूमेंट में बिहार की सूरत बदलने की बात है। कुछ ऐसा ही दावा कांग्रेस ने अपने बदलाव पत्र में कही है, इस बार कांग्रेस के घोषणापत्र को बदलाव पत्र का ही नाम दिया गया है। इसमें किसानों के लिए ऋण माफी, बिजली बिल माफी और सिंचाई की बढ़ती सुविधाओं के बारे में घोषणा की गई है। कांग्रेस ने कहा कि अगर हमारी सरकार बिहार में सत्ता में आती है, तो हम अलग राज्य किसान बिल लाकर एनडीए सरकार के कृषि कानूनों को खारिज कर देंगे जैसा कि हमने पंजाब में किया है।
राजद और कांग्रेस रोजगार, विकास, बिजली, खेती की बात कर रहे हैं। लेकिन ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट का हिस्सा बने एआईएमआईएम प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी दावा कर रहे हैं कि राजद और कांग्रेस भाजपा को नहीं रोक सकते, क्योंकि उन्होंने कभी भी राज्य की शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और बिजली जैसे बुनियादी मुद्दों को नहीं उठाया। ओवैसी इसके लिए खुद को बेहतर विकल्प बता रहे हैं। उनके बयानों से साफ है कि वे राजद-कांग्रेस यानी महागठबंधन के वोट काटने के इरादे से मैदान में उतरेंगे, लेकिन इसका फायदा उन्हें होगा या एनडीए को वे इसका लाभ देते हैं, ये देखना होगा। कुल मिलाकर बिहार के चुनाव में एक ओर जाति, पाकिस्तान, सीएए, राम मंदिर है, दूसरी ओर रोजगार, विकास, किसान, मजदूर हैं, देखना है कि किसका पलड़ा भारी पड़ता है।
(देशबन्धु)