-श्याम सिंह रावत।।
सिर्फ साढ़े चार दिन में कूट लिये 22,000 करोड़ रुपए ऑनलाइन बिजनेस कंपनियों ने!
कुछ ही समय पहले यह भारतीय लोगों के लिए अकल्पनीय था लेकिन मोदी है तो क्या मुमकिन नहीं है? रसातल में जा चुकी अर्थव्यवस्था वाले इस देश में पहले ही तहस-नहस कर दिये खुदरा बाजार में अब आगे सड़कों के दोनों ओर चमचमाती दुकानें और शॉपिंग मॉल भी शायद ही नज़र आएं। अब एक खरीदो, 3 मुफ्त पाओ का आकर्षण भी लोगों को नहीं लुभा पा रहा है। उपभोक्ता की क्रय शक्ति धड़ाम गिरने से स्टॉक धरे रह गए हैं।
कभी कृषि प्रधान रहे इस देश में खरीफ की फसलों के बाजार में आने के साथ ही दशहरा-दीपावली की धूमधाम शुरू हो जाती थी लेकिन इस बार वह रौनक गायब है। इस त्यौहारी सीजन से खुदरा व्यापारियों को बड़ी उम्मीदें थीं। उन्होंने किसी तरह उधार लेकर थोक में माल उठाया था लेकिन उनकी हालत फेरी वाले जैसी हो चुकी है। इस पर भी देश के इन 7 करोड़ खुदरा कारोबारियों के दर्द की परवाह किसी को नहीं।
मदमस्त सत्ताधारी तो याद नहीं रखना चाहेंगे, लेकिन आपको याद रखना चाहिए कि लॉक डाउन से पहले यही 7 करोड़ व्यापारी रोज़ाना 15,000 करोड़ का कारोबार किया करते थे। इसके लगभग एक चौथाई यानी करीब 2 करोड़ खुदरा दुकानें बंद हो चुकी हैं। अविवेकपूर्ण तरीके से लगाये गये लॉक डाउन ने 15 लाख करोड़ के खुदरा कारोबार का नुकसान किया।
जबकि फ्लिपकार्ट और फिर अमेज़न ने दशहरे से पहले अपनी दुकानें सजा लीं। सेल लगा दिया। अभी तक 22 हजार करोड़ और कुल 50 हजार करोड़ से ज़्यादा की बिक्री हुई है क्योंकि तेल-मसालों से लेकर टीवी और रेफ्रिजरेटर तक 30 फीसदी से ज़्यादा का कारोबार ऑनलाइन के हवाले किया जा चुका है। जल्दी ही भारत में प्रतिमाह 4.5 लाख करोड़ के रिटेल सैक्टर की आधी कमाई ई-कॉमर्स के हवाले होने जा रही है।
देश का व्यापारी वर्ग ही अब तक संघ-भाजपा का अटूट हिस्सा रहा है। इसी के चंदे से भाजपा मजबूत होकर राजनीति की सीढ़ियां चढ़ती रही है। देश की केंद्रीय सत्ता में आने के बाद अब उसका खजाना देसी-विदेशी कारपोरेट घरानों के वैध-अवैध धन से लबालब भर ही नहीं गया है, बल्कि लगातार और भी भरता जा रहा है तो अब शायद उसे इनकी उतनी जरूरत नहीं रह गई है। वोट जुगाड़ने का फार्मूला भी उसके हाथ लग ही गया है।
देश का यह बर्बाद कर दिया गया व्यापारी वर्ग संघियों के न्यू इंडिया में आगे चलकर किस करवट बैठेगा, नहीं मालूम, लेकिन इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता कि इनकी बदहाली देश की तबाही है। घाटे में डूबे कारोबारियों की दुकानें बंद होने से भविष्य के बाजारों में पसरे सन्नाटे की कल्पना मात्र से सिहरन दौड़ जाती है। क्या है भारत का भविष्य?
ऐसे हालात में विचार करने योग्य है कि देश में ऐसा कौन-सा क्षेत्र है जिसे मोदी एंड कंपनी ने तबाह नहीं कर दिया है। दुनिया के मुकाबले आज हम कहां खड़े हैं? क्या मोदी को हिंदुओं का हीरो बनाने का हासिल यही बर्बादी है?
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