हिन्दू-मुसलमान दोनों की आँख के तारे क़ाज़ी रशीद मसूद नही रहे..
-तौसीफ़ क़ुरैशी।।
राज्य मुख्यालय लखनऊ।चालीस साल तक सहारनपुर की सियासत में अपना दबदबा रखने वाले साथ ही प्रदेश और देश की सियासत में भी जगह बनाने वाले छह बार लोकसभा और दो मर्तबा राज्यसभा के सदस्य और केंद्रीय सवास्थ्य राज्य मंत्री रहे दिग्गज नेता क़ाज़ी रशीद मसूद इस दुनियाँ ए फ़ानी को अलविदा कह गए, क़ाज़ी रशीद मसूद का क़द इतना बड़ा था कि मुलायम सिंह यादव ने विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर उनको उपराष्ट्रपति का चुनाव भी लड़ाया था,देश ही नही दुनियाँ भर में मशहूर क़ाज़ी रशीद मसूद नेता बनाने की फैक्ट्री माने जाते थे, जगदीश राणा, संजय गर्ग, कुंवरपाल दूधला, कुंवरपाल माजरा, धर्म सिंह मौर्य, वीरेन्द्र ठाकुर व महत्वकांक्षी भतीजा इमरान मसूद को लीडर बनाने का श्रेय भी पूरी तरह से क़ाज़ी रशीद मसूद को ही जाता है।
यह भी बताना उचित होगा उनके किसी शिष्य ने उनका आज तक अनादर नही किया चाहे वह उनसे अलग भी हुए हो लेकिन उनके भतीजे इमरान मसूद ने महत्वकांक्षाओं के चलते उनका बहुत अनादर किया जिसका उन्हें बहुत दुख था और वह इस दर्द को अपने साथ ले गए हालाँकि उन्होंने परिवार की ख़ातिर इस दर्द को भूलाते हुए भतीजे से समझौता कर लिया था 2019 के लोकसभा चुनाव में भतीजे को पूरी मेहनत से चुनाव लड़ाया था जिसकी वजह से भतीजा दो लाख वोट पाने में कामयाब रहा था जबकि जीत गठबंधन से बसपा प्रत्याशी हाजी फजलूर्रहमान की हुईं थी, भतीजे इमरान के दिल में यह डर था कहीं चाचा मुझे निपटा ना दे क्योंकि चाचा क़ाज़ी रशीद मसूद की यह ख़ासियत भी थी कि उनकी सियासी नय्या से उतरने के बाद कोई नेता कामयाब नही रहा। उस नेता को फिर क़ाज़ी रशीद मसूद की शरण में ही आना पड़ता था। केंद्र की विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में स्वास्थ्य राज्यमंत्री भी रहे और एक बार एपीडा के चेयरमैन भी रहे थे क़ाज़ी रशीद मसूद। पश्चिम उत्तर प्रदेश के एकमात्र ऐसे लीडर रहे जिनको हिन्दू-मुस्लिम वोट बराबर पड़ता रहा और जनता उनको धर्मनिरपेक्ष नेता मानती रही। लंबे वक्त से बीमार चल रहे क़ाज़ी रशीद मसूद को पिछले महीने कोरोना हुआ तो दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भर्ती किए गए और करीब एक महीने भर्ती रहने के बाद कोरोना को मात देकर नेगेटिव होकर सहारनपुर घर वापिस आ गए थे।
कल सुबह अचानक तबियत खराब होने के बाद रुड़की में भतीजे कर्नल अदनान मसूद, जिनकी मदद करने की वजह से अदालत ने उन्हें सजा सुनाई थी जिसके चलते उन्हें राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था, के अस्पताल में ले जाये गए और आज आख़री सांस पूरी कर इस दुनियाँ ए फ़ानी से कूच कर गए। यकीनन लंबे वक्त तक याद किये जाएँगे क़ाज़ी रशीद मसूद और हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक।
धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में उनकी मिसाल हमेशा दी जाती रहेगी। यहाँ यह भी ज़िक्र ज़रूरी है क़ाज़ी रशीद मसूद को किसान नेता चौधरी चरण सिंह के क़रीब पहुँचाने वाले देवबन्द के नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी की अहम भूमिका रही थी क्योंकि चौधरी चरण सिंह नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी को बहुत मानते थे। यह बात उनके टाइम के नेता बहुत अच्छी तरह जानते है या थे। यह बात क़ाज़ी रशीद मसूद ने ख़ुद स्वीकार की थी। टिकट वितरण को लेकर क़ाज़ी रशीद मसूद और नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी में 1984 में मतभेद हो गए थे, जिसको अपनी ग़लती मानते हुए क़ाज़ी रशीद मसूद नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी को मनाने उनके देवबन्द स्थित आवास पर आए थे। काफ़ी देर तक दोनों में हुई मीटिंग के बाद भी दोनों नेताओं के बीच मतभेद तो दूर नही हो पाए थे तथा दोनों ने अपनी-अपनी सियासी राह अलग कर ली थी। नेता तौफ़ीक़ क़ुरैशी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता देवबन्द विधानसभा से तीस साल तक विधायक रहे ठाकुर महावीर सिंह कांग्रेस में अपने साथ ले गए थे और क़ाज़ी रशीद मसूद कांग्रेस विरोधी दलों में ही रहकर सियासत करते रहे। यह बात अलग है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में बेहट सीट को लेकर क़ाज़ी रशीद मसूद की सपा के मालिक मुलायम सिंह यादव से अनबन हो गई थी जिसकी वजह से क़ाज़ी रशीद मसूद को कांग्रेस विरोधी सियासत को छोड़ कांग्रेस में ही शामिल होना पड़ा था। जब पार्टी से क़ाज़ी के मतभेदों की ख़बरें बाहर आ रही थी जिसको हमने ही ख़बर के रूप में कहा थी कि (सपा में क़ाज़ी की गाँधीगीरी चलेगी या आज़म खान की खां साहबी उस ख़बर को पढ़ने के बाद ) क़ाज़ी रशीद मसूद का हमारे पास फ़ोन आया जो नेता का अंदाज होता है बोले कि आप तो हमें सपा से निकाल या निकलवा रहे हो उस पर मैंने जवाब दिया क़ाज़ी जी मैं कौन होता हूँ आपको निकालने या निकलवाने वाला लगता है पार्टी को अब आपकी ज़रूरत नही है। जिसपर क़ाज़ी जी बोले मुझे अब क्या करना चाहिए उस पर मैंने कहा कि क़ाज़ी जी मेरी राय में अब आपको कांग्रेस में चले जाना चाहिए। इसके अलावा कोई जगह आपके क़द के मुताबिक़ नही है। इस पर उधर से जवाब आया कांग्रेस बहुत बड़ी पार्टी है वहाँ क्या मैं समायोजित हो पाऊँगा उसके बाद मैंने कहा जी आपकी बात सही है कांग्रेस बहुत बड़ी पार्टी है लेकिन यूपी में नही। वह बहुत बड़ी पार्टी देश में हैं यूपी में आपके जैसे मज़बूत नेता उनको चाहिए। यह बात मानते हुए उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का फ़ैसला किया वही हुआ जो हमने उनसे कहा था कांग्रेस ने उन्हें CWC में लिया और सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी उनकी हैसियत के मुताबिक़ उनको तर्जीह देते थे लेकिन अफ़सोस वह ज़्यादा दिन कांग्रेस में भी नही रह पाए अपने बेटे शाजान मसूद को सपा से 2014 का टिकट दिला लाए जबकि सपा से उनके महत्वकांक्षी भतीजे इमरान मसूद का टिकट हुआ था लेकिन मुलायम सिंह यादव ने अपने पुराने साथी के टिकट माँगने पर भतीजे इमरान का टिकट कटकर उनके बेटे को टिकट दे दिया। परिवार के दोनों सदस्यों ने आमने-सामने रहकर चुनाव लड़ा उस चुनाव में भतीजा इमरान भारी रहा क्योंकि इमरान ने अपनी एक पुरानी स्पीच को हाईलाइट करा दिया जिसमें वह मोदी की बोटी-बोटी करने की बात कह रहे थे। मोदी की भाजपा सहित मोदी ने ख़ुद उसे मुद्दा बनाया वह दौर भी नफ़रतों की सियासत का दौर था जो अब तक चल रहा है । उसका पूरे देश में प्रचार किया गया इमरान को जेल जाना पड़ा उससे वोटों का धुर्वीकरण हो गया हिन्दू पहले से ही इमरान को पसंद नही करता था अब और मज़बूत हो गया था। हिन्दू मोदी की भाजपा के साथ चला गया और मुसलमान भी भावनाओं में बहने का आदि रहा है वह भी इमरान के साथ चला गया। इमरान को चार लाख सात हज़ार वोट मिले और वह दूसरे नंबर पर रहे और क़ाज़ी रशीद मसूद के बेटे क़ाज़ी शाजान मसूद मात्र पचास हज़ार तक ही सिमट गए। कुल मिलाकर महत्वकांक्षी भतीजे इमरान की वजह से क़ाज़ी रशीद मसूद का सियासत का आख़री पड़ाव बहुत दुखद रहा। जिसने अपने जीवन में कभी पीछे मुड़कर नही देखा उसका सियासी सफ़र का अंत दुखदाई होगा किसी ने सपने में भी नही सोचा होगा। उनके दुनियाँ से चले जाने का दुख जनपद सहित सियासत की समझ रखने वाले सभी को है। चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान सिख हो या ईसाई सबने नम आँखों से अपने प्रिय नेता को अंतिम विदाई दी। उनके निधन की सूचना मिलने पर सपा के संरक्षक पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ , पूर्व मुख्यमंत्री बसपा की सुप्रीमो मायावती , सपा के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव , कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव यूपी की प्रभारी प्रियंका गाँधी, सहित सहारनपुर लोकसभा से सांसद हाजी फजलूर्रहमान सहित सैकड़ों नेताओं ने क़ाज़ी रशीद मसूद के निधन पर शोक व्यक्त किया है।