-संजय कुमार सिंह।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ उर्फ अजय मोहन बिष्ट के बारे में आज द टेलीग्राफ ने संकर्षण ठाकर की यह खबर लीड के रूप में छापी है। इस खबर में अन्य तमाम सूचनाओं, जानकारियों, घटनाओं के अलावा यह भी कहा गया है कि, …. संकेत मिलने पर उत्तर प्रदेश के एडिशनल डायरेक्टर जनरल (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार एक फॉरेनसिक प्रयोगशाला की रिपोर्ट निकालते हैं और एलान करते हैं कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ ही नहीं था। कुमार को दो साल पहले कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से गुलाब की पंखुड़ी बरसाने का दुरुह कार्य सौंपा गया था। पर स्पष्टतः आदित्यनाथ की सरकार कानून व्यवस्था से जुड़े अपने सर्वोच्च अधिकारी पर बहुत कम भरोसा करती है। इसलिए मुंबई से किन्ही सुश्री प्रिसिया रॉड्रिग्स को तैनात किया जाता है।



रॉड्रिग्स खुद को एक पीआर फर्म की अकाउंट एक्जीक्यूटिव बताती हैं और पत्रकारों के चुने हुए समूह के मेलबॉक्स में खुशी के साथ प्रवेश करती हैं। शुभकामनाओं (ग्रीटिंग्स) से शुरुआत करती हैं और फिर बेहद जानकार और निर्देशात्मक हो जाती हैं। “हाथरस की लड़की से बलात्कार नहीं हुआ था … एफएसएल रिपोर्ट से पता चलता है ….. इससे तमाम अटकलों को खत्म हो जाना चाहिए ….। रिपोर्ट से राज्य को जाति के विवाद में धकेलने की साजिश का भी खुलासा होता है। (यह पक्का नहीं है कि रॉड्रिग्स अभी भी उसी एफएसएल रिपोर्ट की चर्चा कर रही हैं) ….. एसआईटी पूरे मामले के पीछे की साजिश का पर्दापाश जरूर करेगी। जाहिर है, रॉड्रिग्स मुंबई के अपने कार्यालय से पहले ही बता दे रही हैं कि एसआईटी की जांच से क्या खुलासा होगा। इसे कल्पनाशील ग्राहक सेवा कहा जाता है और ग्राहक जब आदित्यनाथ हों तो …
देश के ज्यादातर अखबारों में हाथरस के पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की खबर प्रमुखता से है जबकि सच यह है कि पुलिस ने जो राहुल गांधी के साथ किया वही कल तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन के साथ किया। कार्रवाई हो गई – सब ठीक हो गया का संदेश चला गया। मीडिया की स्वतंत्रता उसे खबरों की प्रमुखता तय करने की आजादी देती है वह यह बताने के लिए स्वतंत्र है कि पुलिस ने डेरेक ओ ब्रायन के साथ वही किया जो राहुल गांधी के साथ किया था – कार्रवाई होने के बावजूद। लेकिन नहीं बताएगा। आज के अखबारों में जब मुख्य रूप से यही खबर है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने हाथरस पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की है और यह नहीं बताया गया है कि इसके बावजूद पुलिस का रवैया नहीं बदला है तो यह पुलिस वालों पर कार्रवाई का असर भी है।
मीडिया मैनेजमेंट के लिए प्रचारकों की सेवा लेने वाले या प्रचारकों की फौज रखने वाले देश की आज की मीडिया को मैनेज करने के लिए पीआर एजेंसी की सेवा ले और बिल्कुल हार्ड न्यूज के क्षेत्र में पीआर एजेंसी को लगा दिया जाए जो दिल्ली और दिल्ली सीमा या दिल्ली से 200 किलोमीटर दूर की खबरें मुंबई के अपने कार्यालय से हैंडल और मैनेज करे तो खबरें भी खबर हैं और ऐसे में टेलीग्राफ की ऐसी रिपोर्ट दुर्लभ है। इससे आपको समझ में आएगा का कानून व्यवस्था का जो हाल है वह तो अपनी जगह – आपको जो सूचनाएं मिल रही हैं वह किस गटर या किस आपूर्तिकर्ता से आ रही है उसका भी महत्व है। खबरों और सूचनाओं के लिए चीखने वाले एंकर और थाली बजाने वाली खबरों से बचिए।