उत्तरप्रदेश के हाथरस में हुए सामूहिक बलात्कार ने न केवल इस प्रदेश और देश में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए, बल्कि अब सवाल सरकार और पुलिस प्रशासन की नीयत पर भी उठने लगा है। इस घटना में पहले ही पुलिस की लापरवाही पर सवाल उठ रहे थे और अब तो बात लापरवाही से काफी आगे निकलकर संवेदनहीनता के दायरे को पार करती हुई खुलकर सत्ता की चाकरी करने तक पहुंच गई है। हाथरस की घटना का वर्णन पढ़-सुनकर ही किसी भी संवेदनशील इंसान के रोंगटे खड़े हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग तरह-तरह से अपना गुस्सा व्यक्त कर रहे हैं।
लेकिन भाजपा को शायद धार्मिक भावनाओं के अलावा कोई और भावना समझ ही नहीं आती है। एक वक्त था जब यूपीए के कार्यकाल में हुई घटनाओं पर भाजपा नेता स्मृति ईरानी सड़कों पर जनता की जुझारू प्रतिनिधि के अभिनय में नजर आती थीं। लेकिन अभी महिला एवं बाल विकास मंत्री होने के बावजूद उन्हें हाथरस मामले में दो शब्द कहने में दो दिन लग गए। उन्होंने कहा कि दोषी जल्द फांसी पर लटकेंगे। इसी तरह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने भी दोषियों को सख्त से सख्त सजा देने की बात कही है। मगर अभी जिस तरह का रवैया पुलिस का है, उसे देखकर डर लग रहा है कि कहीं उस दलित युवती के साथ किस तरह का दुराचार हुआ, इसकी सही जानकारी कानूनन दर्ज होगी भी या नहीं। सजा तो दोषियों को तभी मिलेगी, जब उन पर जुर्म साबित होगा।
14 सितंबर को हुई इस घटना में 29 सितंबर तक तीन बार पुलिस ने एफआईआर की धाराओं को बदला। पहले केवल हत्या के प्रयास की बात दर्ज हुई, फिर गैंगरेप की और अब पीड़िता की मौत के बाद हत्या की धाराएं जोड़ी गई हैं। लड़की ने अस्पताल में दिए अपने बयान में गैंगरेप की बात कही थी, लेकिन पुलिस मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर ही आगे बढ़ती है और उसमें अभी इस बात की पुष्टि होना बाकी है कि गैंगरेप हुआ था या नहीं। दरअसल लड़की मां को जिस हाल में मिली थी, उसमें उसे बड़ी मुश्किल से बगहला के सरकारी अस्पताल तक ले जाया गया था। यहां उसका मेडिको लीगल नहीं किया जा सका, क्योंकि उसकी हालत बेहद खराब थी। उसे एमएमयू के जेएन मेडिकल कालेज भेजा गया और वहां से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में। इस बीच लड़की ने पहले होश आने पर एक लड़के का नाम लिया, फिर बाद में बाकी लोगों के नाम भी बताए, जिन्होंने उनके साथ दुष्कर्म किया।
जिस के साथ इतनी दरिंदगी हुई हो, वो एक बार में अपनी आपबीती कैसे बयां कर सकती है। फिर यहां तो उसकी जुबान से लेकर रीढ़ की हड्डी तक सब उसके आत्मसम्मान के साथ चूर-चूर कर दी गई थी। और इंसानियत के बचे-खुचे अवशेष तब राख हो गए, जब पीड़िता का अंतिम संस्कार आधी रात को पुलिस वालों ने कर दिया, घर वालों को इतना मौका भी नहीं दिया कि वे अपनी बच्ची का चेहरा आखिरी बार देख लेते। उसकी मेडिकल रिपोर्ट भी अब तक उसके परिजनों को नहीं दी गई है। और अब उत्तरप्रदेश की आदित्यनाथ योगी सरकार यह भी सुनिश्चित कर रही है कि उसके परिजनों का विपक्ष के नेताओं खासकर राहुल गांधी या प्रियंका गांधी से कोई संपर्क हो पाए।
मजबूत और ईमानदार शासन-प्रशासन का ढोल पीटने वाली भाजपा सरकार भीतर से इस कदर डरी हुई है कि उसे विपक्ष के नेताओं के पैदल मार्च से भी तकलीफ हो रही है। इसलिए आज पहले राहुल और प्रियंका गांधी को नोएडा बार्डर पर ही आगे बढ़ने से रोक दिया गया और जब उन लोगों ने हाथरस तक पैदल जाने का निश्चय किया तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया। इस बीच खबर ये भी है कि राहुल गांधी के साथ थोड़ी धक्का-मुक्की भी हुई। अगर ऐसा है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। वे आम जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं और आम जनता सरकार की ऐसी संवेदनहीनता का धक्का रोज ही खा रही है। दुख इस बात का है कि इस मौके पर अकेले राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को पुलिस की सख्ती से दो-चार क्यों होना पड़ा। सोशल मीडिया पर मेरी बच्ची मुझे माफ कर देना, जैसे दिखावटी जुमले लिखने वाले बड़े पुरस्कार विजेता या उप्र पुलिस से खून के आंसुओं का हिसाब मांगने वाले तथाकथित जननेता, समाजसेवी, महिला अधिकारों पर वेबिनारों में व्यस्त बुद्धिजीवी, बसपा, सपा, वामदल, दलित राजनीति के पुरोधा ये सारे लोग क्या इस मौके पर एकजुट होकर हाथरस जाने का निश्चय नहीं कर सकते थे। क्या आधी आबादी के साथ दरिंदगी पर गुस्सा भी राजनीतिक सुविधा के हिसाब से आता है।
अगर आज राहुल-प्रियंका के साथ तमाम पार्टियों के लोग हाथरस जाने का निश्चय करते, तो क्या उप्र पुलिस सबको रोकती। और अगर रोकती तो इस बहाने एक बड़ा जनांदोलन महिला सुरक्षा के नाम ही खड़ा हो जाता। इसका लाभ देश भर की महिलाओं को मिलता, फिर चाहे वे कांग्रेसी परिवार की महिलाएं हों या भाजपाई परिवार की या किसी और राजनैतिक दल के समर्थक परिवार की। महिलाओं के लिए शोषण और तकलीफें तो धर्म, जाति, राजनैतिक दल सबसे परे एक समान ही हैं। हाथरस की घटना के बाद बलरामपुर और राजस्थान से भी ऐसी ही घटनाओं की खबर सामने आई है और जब तक बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को राजनीति के नजरिए से तौला जाता रहेगा, तब तक ऐसी घटनाओं पर कोई लगाम नहीं लगेगी। समाज का खून दिल्ली से लेकर उन्नाव और कठुआ तक खौला, लेकिन दो-चार राजनैतिक जुमलों से इस खौल पर ठंडे पानी के छींटे पड़ जाते हैं और वो शांत हो जाता है।
जनता शायद सचमुच ये मानने लगी है कि राम मंदिर बनेगा, तो राम राज आ जाएगा। केवल बातों से भारत आत्मनिर्भर बन जाएगा। मन की बात में सारी समस्याओं का समाधान मिल जाएगा। लेकिन सच ये है कि भारत किसी आश्रम का नाम नहीं है, जहां एक व्यक्ति प्रवचन दे, योगासन के दो-चार करतब दिखाए, मोर को दाना चुगाए और जनता यही देखते रहे कि मोरपंख में कितने रंग हैं। भारत एक महादेश का नाम है, जिसकी असली छटा यहां की विविधताओं से भरी सांस्कृतिक परंपरा और यहां के मेहनतकश लोगों से है। उस आम जनता का रोजाना अपमान होगा, तो इस देश की खूबसूरती बिगड़ने में देर नहीं लगेगी। भारतमाता की काल्पनिक छवि की पूजा से बेहतर है कि समाज जीती-जागती औरतों का सम्मान करे।
(देशबंधु)