आत्ममुग्धता, चापलूसी और झूठ की कोई हद नहीं हो सकती, यह मौजूदा केंद्र सरकार और भाजपा नेताओं के बयानों से साबित होता है। दुनिया देख रही है कि कैसे जनवरी से चेतावनी मिलने के बावजूद सरकार ने कोरोना को लेकर लापरवाही बरती, जिसका नतीजा आज ये है कि अमेरिका के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा संक्रमण वाला देश भारत बन चुका है। कुछ दिन पहले तक ब्राजील हमसे आगे था।
लेकिन रोजाना 80-90 हजार मामलों के आने से हमने ब्राजील को भी पछाड़ दिया और एक दिन शायद अमेरिका से भी आगे हो जाएंगे, क्योंकि रोज अमेरिका से तीन गुना ज्यादा मामले भारत में मिल रहे हैं। वैसे भी आबादी के लिहाज से हम अमेरिका से काफी आगे हैं और स्वास्थ्य सुविधाओं में काफी पिछड़े हुए हैं। प्रति व्यक्ति डाक्टर की उपलब्धता भी देश में काफी कम है। इसलिए आगे हालात कैसे होंगे, इस बारे में कोई अच्छे विचार नहीं आते हैं। लेकिन सत्ता का नशा शायद ऐसा होता है कि हर हाल में अपना फायदा ढूंढना चाहता है। इसलिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ओडिशा में भाजपा कार्यकारिणी की बैठक को डिजीटली संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर उपयुक्त समय पर कड़े फैसले लिए।
कोरोना महामारी के फैलाव को रोकने में जहां शक्तिशाली राष्ट्र असहाय महसूस कर रहे थे वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने लॉकडाउन लागू करने का निर्णायक फैसला किया ताकि लोगों के जीवन की रक्षा हो सके। स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का ध्यान रखने के अलावा मोदी सरकार ने गरीब कल्याण योजना और आत्मनिर्भर भारत अभियान जैसे कई कार्यक्रमों के जरिए अर्थव्यवस्था की भी चिंता की। पता नहीं जेपी नड्डा जैसे नेताओं को जनता की दुख तकलीफें नजर आती हैं या नहीं, या वे अपने नेता की तारीफ में इतने मग्न हैं कि जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं। देश में 44 लाख के करीब कोरोना के मरीज हैं।
करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई है। नयी नौकरियां मिल नहीं रही हैं। जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट है। तमाम अर्थशास्त्री चेतावनी दे रहे हैं कि भारत भयानक मंदी का सामना कर रहा है। लेकिन भाजपा को अब भी यही लगता है कि मोदीजी ने आपदा को अवसर में बदल दिया। बेशक उन्होंने इस आपदा को सरकार के मनमाने फैसले लेने के लिए अवसर में बदला होगा, लेकिन आम जनता के लिए तो लॉकडाउन जैसे फैसले बचे-खुचे अवसरों के भी आपदा में बदल जाने की तरह हैं।
जैसे मोदीजी ने लॉकडाउन करने में मनमानी की, वैसे ही आरोग्य सेतु ऐप में भी सरकार की मनमानी देखने मिली। मैं सुरक्षित, हम सुरक्षित, भारत सुरक्षित इस टैगलाइन के साथ दो अप्रैल को भारत सरकार ने कोरोना का ‘दृढ़ता से मुकाबला करने के लिए’ सार्वजनिक-निजी साझेदारी से विकसित आरोग्य सेतु नामक एक मोबाइल ऐप की शुरुआत की थी। दावा था कि यह ऐप लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण पकड़ने के जोखिम का आकलन करने में सक्षम करेगा। एंड्रॉयड और आईफोन दोनों पर ही उपलब्ध यह ऐप यूजर से उसकी लोकेशन की जानकारी और कुछ सवालों के आधार पर उस व्यक्ति के आसपास मौजूद संक्रमण के खतरे और संभावना का पता लगाने में सहायता करता है, ऐसा कहा गया था। लेकिन इस ऐप से संक्रमण रोकने में कितनी मदद मिल पाई, इसका कोई जवाब सरकार के पास नहीं है, क्योंकि देश में रोजाना हजारों की संख्या में मामले बढ़ते रहे, जबकि इस ऐप को अब तक 15.50 करोड़ बार डाउनलोड किया जा चुका है।
ऐप की वेबसाइट पर 26 मई 2020 को जारी किया एक दस्तावेज उपलब्ध है, जिसमें एक जगह पर बताया गया है कि ऐप ने जितने लोगों को कोरोना टेस्ट कराने की सलाह दी थी, उसमें से 24 फीसदी लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। गौरतलब है कि उस समय देश भर में पॉजिटिविटी रेट 4.65 फीसदी था। हालांकि इसमें ये विवरण नहीं है कि उस समय तक ऐप ने कितने लोगों को कोरोना टेस्ट कराने का सुझाव दिया था। बहरहाल, आरोग्य सेतु ऐप सरकार की नई जिद और सनक बन गया और इस फेर में इसे सभी के निए अनिवार्य बनाने जैसी बातें उठने लगीं। एक मई को गृह मंत्रालय ने तो अपने दिशानिर्देशों में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यालयों के कर्मचारियों के लिए आरोग्य सेतु ऐप को अनिवार्य बना दिया था। जिसके बाद नोएडा पुलिस ने एक आदेश जारी कर कहा था कि आरोग्य सेतु के आवेदन नहीं करने पर छह महीने की कैद या 1,000 रुपये तक का जुर्माना होगा।
हालांकि आलोचनाओं के बाद आगे चलकर मंत्रालय ने इसकी ‘अनिवार्यता’ खत्म कर इसे ‘निर्देशात्मक’ बना दिया। आरोग्य सेतु ऐप के इस्तेमाल करने को अनिवार्य बनाए जाने को विशेषज्ञों ने भी पूरी तरह से अवैध करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बीएन श्रीकृष्णा ने कहा था कि इस तरह का कदम उठाना उचित नहीं है, क्योंकि इसे किसी कानून का समर्थन प्राप्त नहीं है। इस ऐप से लोगों की निजता हनन का खतरा भी बताया गया, क्योंकि इसमें यूजर का सारा डेटा उपलब्ध होता है। हालांकि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 11 मई को इसके नियम जारी किए थे, जिसके तहत ऐप का डेटा इकठ्ठा होने के ठीक 180 दिन बाद डेटा डिलीट हो जाएगा, इसके साथ ही डेटा का इस्तेमाल सिर्फ स्वास्थ्य से जुड़े उद्देश्यों के लिए ही हो सकेगा। लेकिन साइबर अपराध करने वालों के लिए 180 दिन किसी का डेटा चुराने से लेकर लीक करने के लिए बहुत होते हैं।
निजता पर खतरे के बावजूद सरकार के कहने पर करोड़ों लोगों ने इसे डाउनलोड किया। सरकार ने भी इसके प्रचार-प्रसार में साढ़े तीन महीने में करीब 4.15 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। एक आरटीआई के जरिए ये जानकारी हासिल हुई है। सवाल ये है कि करोड़ों का यह तामझाम सरकार ने आखिर किसके लिए किया। आरोग्य सेतु ऐप से न कोरोना का प्रसार रोका जा सका, न लोगों को बीमार होने से। फिर किसके फायदे के लिए यह ऐप बना। क्या इसका जवाब सरकार कभी देगी।
(देशबंधु)