-राजेन्द्र राज।।
साँस-हम नाक और मुँह ढक लें तो क्या हम अपने शरीर को पर्याप्त ऑक्सिजन लेने दे रहे हैं? हवा में तैर रहे विषाणु व कीटाणु से बचाव करने के उपाय में क्या हमने ऑक्सिजन को लेने पर रोक लगा दी है? क्या हम अपने फेफड़ों से निकली साँस को ही बार बार वापस लेने को बाध्य हैं। क्या मास्क लगाए लगाए आप का दम नहीं घुटने लगता है । अगर आप वास्तव में वाइरस को रोक पाने में सक्षम मास्क लगाते हैं तो, क्या आप अपनी ही यूज़्ड साँस को बार बार अंदर नही ले रहे होते ?
पानी- क्या कोरोना संक्रमण काल में अब आप इस काल से पहले के दिनों जितना पानी पीते हैं। मैंने तो ये महसूस किया है कि अब अगर मैं किसी वेंडर को पानी ऑफ़र करता हूँ, तो वो मना कर देता है, कोई किसी कारण से मिलने आया भी तो भी वो मेरे घर का पानी तक ग्रहण नही करता । जबकि पानी पीना पिलाना एक सामान्य शिष्टाचार रहा है।
भोजन- ये तो हमें कमाना पड़ता है, बनाना पड़ता है, ख़रीदना पड़ता है । क्या हमारी क्रय शक्ति पहले की तुलना में घटी है, या स्थिर है, या बढ़ गयी है? मुझे लगता है कि अधिकांश लोगों की (किराना स्टोर, मेडिकल स्टोर, आदि कुछ को छोड़कर) आमदनी घटी है और चीजें मँहगी हुई हैं । रोज़गार के अवसर घटने से लोगों को भोजन कमाने के, अवसर भी कम हुए हैं। आमदनी और क़ीमतों में अंतर बढ़ने से लोगों को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है ।
तो,समुचित साँस, समुचित पानी, समुचित भोजन के अभाव में क्या आप केवल मास्क लगा कर, हाथ सेनिटाइज करके, दो मीटर की दूरी रखने मात्र से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा लेंगे। केवल अपने बारे में नहीं , रोज़ का खर्च रोज़ कमाने वाली भारत की चालीस प्रतिशत जनता की सोचकर देखिए।
डरना ज़रूरी है, लेकिन डरने से ज़्यादा ज़रूरी है भोजन, भोजन के लिए कमाई। रोज़गार । सरकार अपनी कमाई के लिए शराब की दुकाने खोल सकती है, तो लोग भी अपनी कमाई के लिए कोई भी ग़लत तरीक़ा अपना सकते हैं, चेत जाइए।