-चंद्र प्रकाश झा।।
वही हुआ जिसका अनुमान था. सुप्रीम कोर्ट ने ‘बड़ी बहादुरी ‘ से अन्याय को तरफ बढ़ते अपने कदम आज वापस ले लिए.स्वांग कुछ यूं रचा गया कि उसने न्याय का ही रास्ता चुना है अन्याय का नहीं .
उच्चतम न्यायालय ने इसी कोर्ट के वरिष्ठ वकील और नागरिक अधिकारवादी एक्टिविस्ट प्रशांत भूषण (पीबी)
को बतौर सजा फकत एक रुपये का जुर्माना किया. देश की इस सबसे बड़ी औपचारिक अदालत ने उन्हें एक रुपए के इस धन को 15 सितंबर 2020 तक कोर्ट के ‘खजाना ‘ में जमा करने का निर्देश दिया है.

कोई कह सकते हैं कि जुर्माना की रकम इतनी कम क्यों है? तो जवाब है कि सजा सांकेतिक है और इसलिए जुर्माना भी प्रतीकात्मक है. एक रुपए से भी कम का जुर्माना किया जा सकता था . अगर भारतीय मुद्रा की चौवन्नी का प्रचलन , हमारी सरकार बहादुर ने करीब एक दशक पहले बंद नहीं कर दिया होता. वैसे , अठन्नी में वो खनक कहां जो चौवन्नी में होती थी
पिक्चर अभी बाकी है.अगर पीबी ने ये जुर्माना नहीं भरने का निर्णय किया या फिर जुर्माना भरने का निर्णय करने के बाद भी उसे निर्धारित अवधिं में कोर्ट में जमा नहीं किया तो फिर उन्हें वास्तविक सजा भुगतनी होगी. ऐसे में उन्हें तीन महीने कारावास की सजा भुगतनी पड़ेगी।
यही नहीं तब उन्हें तीन महीने के लिए कोर्ट में वकालत करने से रोक दिया जाएगा।
फिलवक्त यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है : कोर्ट ने पीबी पर ही छोड़ दिया है कि उन्हे मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए? बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए?
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