देश में चल रही चौतरफा मुसीबतों के बीच अयोध्या में दीपावली जैसा उत्सव मनाने की तैयारी चल रही है। आने वाले 5 अगस्त को रामलला के भव्य मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन होगा और यह काम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों संपन्न होगा।
जैसे अमेरिका में हाउडी मोदी कार्यक्रम वृहद स्तर पर आयोजित हुआ था और इसे दुनिया भर में बसे भारतीयों तक पहुंचाने के लिए पूरी तैयारी की गई थी, वही इरादा राम मंदिर भूमि पूजन के लिए भी है। हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग की पाबंदी के कारण सीमित संख्या में ही लोगों को आमंत्रित किया जाएगा। लेकिन मोदीजी की उपस्थिति ही इसे मेगा इवेंट बनाने के लिए पर्याप्त है।
सभी रामभक्त स्वयं को कार्यक्रम में शामिल महसूस कर सकें, इसके लिए योजना बनाई जा रही है। देश भर में लाइव प्रसारण के अलावा अयोध्या-फैजाबाद में दर्जनों स्थानों पर एलईडी टीवी के माध्यम से कार्यक्रम का सजीव प्रसारण किया जाएगा। संघ के ही आनुषंगिक संगठन नववर्ष चेतना समिति ने पांच अगस्त को नगरवासियों से दीपावली मनाने की अपील की है।

इस अपील को सोशल मीडिया पर भी जमकर प्रचारित किया जा रहा है। यूं तो धर्मनिरपेक्ष देश के मुखिया को अपनी धार्मिक आस्थाएं सार्वजनिक तौर पर दर्शाने से बचना चाहिए और मंदिर निर्माण जैसे कार्यक्रमों से दूरी बनानी चाहिए, निजी तौर पर वे किसी के भी भक्त हों, सार्वजनिक तौर पर उनका हर धर्म से निरपेक्ष भाव रहना चाहिए। लेकिन ये सैद्धांतिक बातें व्यावहारिक राजनीति में फिट नहीं बैठती हैं। इसलिए अब जनप्रतिनिधि खुलेआम अपनी धार्मिक आस्थाओं का प्रदर्शन करते हैं और इसमें किसी को कुछ गलत नहीं लगता। जबकि यहीं से राष्ट्रीय हित के मुद्दों के सांप्रदायिककरण की शुरुआत होती है और देश में धार्मिक अलगाव पनपता है।
आजादी के पहले तो संविधान नहीं था, लेकिन जब संविधान बना, तब भी इस तरह के नेताओं की कमी नहीं थी, जो धार्मिक कट्टरता को गलत नहीं मानते थे। फिर भी उनकी कोशिशों पर काफी हद तक लगाम लगी रही, क्योंकि पं. नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद जैसे लोगों ने राष्ट्र निर्माण को पहला धर्म माना और अपनी धार्मिक आस्था को घर तक ही सीमित रखा। वह दौर धार्मिक तुष्टीकरण का नहीं था, लेकिन अब चुनाव ही इस मुद्दे पर जीते या हारे जाते हैं कि कौन मंदिर बनवा सकता है, कौन नहीं।
इसलिए भाजपा खुलेआम अपने घोषणापत्र में वादा करती थी कि वह अयोध्या में राम मंदिर बनवाएगी। और किसी को इसमें कुछ आपत्तिजनक नहीं लगा कि जिस मामले पर अदालत में सुनवाई चल रही है, वहां कोई निर्णायक फैसला लेने की घोषणा एक राजनैतिक दल कैसे कर सकता है।
बहरहाल, अब जबकि भाजपा लगातार छठवें साल सत्ता में है, उसके वादा निभाने की तारीख करीब आ रही है। सुप्रीम कोर्ट में लगातार हुई सुनवाई के बाद यह फैसला आया कि अयोध्या की विवादित भूमि पर हिंदू पक्ष का अधिकार है और इसके बाद से उम्मीद जतलाई जा रही थी कि वहां जल्द ही राम मंदिर बनाने की शुरुआत हो जाएगी।
कोरोना के कारण इसके भूमिपूजन में थोड़ी देर हुई। लेकिन अब 5 अगस्त की तारीख तय हुई तो खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसमें शामिल होने की इच्छा व्यक्त की। रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास के प्रतिनिधि महंत कमल नयन दास ने बताया कि ट्रस्ट की पहली बैठक के बाद 20 फरवरी को प्रधानमंत्री से भेंट करने गए सभी पदाधिकारियों को मोदीजी ने शुभकामना दी थी और स्वयं भूमि पूजन में आने की इच्छा भी जताई थी। अब उनकी यह इच्छा पूरी होने जा रही है।
हिंदू हृदय सम्राट की जो छवि उनकी गढ़ी गई है, अब वह और मुकम्मल हो जाएगी। चर्चाएं हैं कि 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा गृहमंत्री अमित शाह, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, उमा भारती, कल्याण सिंह, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समेत कई लोगों को औपचारिक तौर पर आमंत्रण भेजा जाएगा। इनमें से कई लोग बाबरी विध्वंस के आरोपी भी हैं।
अदालत में हिंदू पक्ष के अधिकार का फैसला तो हो गया, लेकिन बाबरी मस्जिद तोड़ने के गुनहगारों का कोई फैसला अब तक नहीं हुआ है। विशेष सीबीआई अदालत में इसकी सुनवाई अब अपने अंतिम दौर में पहुंच चुकी है।
गौरतलब है कि छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के मामले में विशेष अदालत को 31 अगस्त तक $फैसला सुनाना है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इस मामले की रोजाना सुनवाई की जा रही है। अभी आरोपियों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं। 86 साल के मुरली मनोहर जोशी ने गुरुवार को सीबीआई कोर्ट के स्पेशल जज एस. के. यादव के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपना बयान दर्ज कराया। शुक्रवार को इसी तरीके से 92 साल के आडवाणी भी अपना बयान दर्ज करा सकते हैं।
आपको बता दें कि बाबरी मस्जिद विध्वंस कांड में कुल 49 लोगों को आरोपी बनाया गया। इनमें से बाला साहेब ठाकरे, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णुहरी डालमिया समेत 17 आरोपियों की मौत हो चुकी है। और अब 32 आरोपी ही बचे हैं। दरअसल बाबरी विध्वंस के बाद दो आपराधिक मु$कदमे दर्ज किए गए थे। पहला कई अज्ञात कार सेवकों के $िखला$फ और दूसरा आडवाणी और अन्य नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के आरोपों में मु$कदमा दर्ज हुआ था। अब तक तो सुनवाई का दौर ही चल रहा है, उसके बाद जब $फैसला आएगा, तो पता चलेगा कि अदालत ने किसे दोषी माना और किसे नहीं।
अदालत साक्ष्यों, तर्कों और तथ्यों के आधार पर $फैसला देगी। जो इल्जाम तर्क की कसौटी पर सही पाए जाएंगे, उनके मुताबिक फैसला सुनाएगी। लेकिन कई बातें ऐसी भी होती हैं, जो न•ार नहीं आती, लेकिन अपना प्रभाव दिखा देती हैं। जैसे रथयात्रा के बाद से भारत में सांप्रदायिक भावनाओं में उफान देखने मिला। उन्मादी भीड़ जब एक धक्का और का नारा दे रही थी, तो उससे भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद को भी धक्का पहुंच रहा था।
विभाजन के बाद हिंदू-मुस्लिम की जो खाई गहरी होनी शुरु हुई थी, उसे मंदिर वहीं बनाएंगे की राजनीति ने और गहरा कर दिया। बाबरी मस्जिद का टूटना कानूनन गलत था, तो उस गलत काम को अंजाम देने वालों को सजा दिए बिना उसी जगह पर मंदिर बनाने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा भूमिपूजन कितना सही है, इस पर विचार होना चाहिए।
प्रधानमंत्री किसी एक पार्टी के नहीं, पूरे देश के होते हैं, यह बात बार-बार कही जाती है, फिर वे ऐसा काम क्यों कर रहे हैं, जिसमें वे भाजपा के प्रधानमंत्री ही नजर आएंगे। रामजन्मभूमि पर मंदिर बनेगा, यह तय है, लेकिन प्रधानमंत्री इस मौके पर श्रेय लेने के मोह से खुद को बचा पाते तो उनकी ही छवि निखरती।
(देशबंधु)