-सुरेन्द्र ग्रोवर||
राजस्थान का राजनैतिक तूफान कब थमेगा और थम जाने के बाद यह फिर से न उठे इसके लिये राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह ध्यान रखना चाहिए कि पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य की जनता जहाँ पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से आज़िज़ आ चुकी थी तो सचिन पायलट ने भी मतदाताओं के बीच रहकर कांग्रेस को फिर से सत्तानशीन करवाने के लिए दिन रात एक कर कड़ी मेहनत की थी। ऐसे में उन्हें दोयम दर्जे पर रखना सचिन पायलट के आत्मसम्मान को कचोटता रहता है जिसे उचित सम्मान देकर और उनके कार्यकर्ताओं के द्वारा लाये जाने वाले कार्यों और उठाई जाने वाली समस्याओं का उचित देकर ही शांत रखा जा सकता है न कि सचिन को उकसा कर!
यह भी याद रहे कि अशोक गहलोत ने इससे पहले यानी अपने दूसरे टर्म से पहले आलाकमान से गुजारिश की थी कि यदि उन्हें दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो वे फिर कभी मुख्यमंत्री बनने का दावा नहीं करेंगे लेकिन बाद इसके भी उन्होंने अपने पिछले टर्म वाले वायदे को बिसरा तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने का न केवल दावा ही ठोका बल्कि फिर से मुख्यमंत्री बनने में कामयाब भी हो गए। इससे जिन नेताओं की मेहनत से कांग्रेस सत्तासीन हुई उन्हें संतुष्ट रखना गहलोत की ही जिम्मेदारी है।
यही नहीं, कम से कम इस दौर में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को सत्ता का मोह छोड़ संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम करना चाहिए न कि युवा पीढ़ी के नेताओं को नीचा दिखाने का। बड़ों को अपना बड़प्पन दिखाना चाहिए बजाय अपने से छोटों को धूल धूसरित करने के!
जैसे ही राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के दफ्तर से सचिन पायलेट के हटे हुए पोस्टर दुबारा लगाए गए तो एकबारगी तो लगा कि तूफान थम गया है लेकिन बाद में पता चला कि तूफान थमा नहीं था बल्कि ऊपर से आये आदेशों के चलते पोस्टर पुनः लगा पॉयलेट को संदेश दिया गया था कि कांग्रेस में अभी भी उनका सम्मान बरकरार है और कांग्रेस को उनके लौटने का इंतज़ार है। बाद इसके भी लगता है कि सचिन पॉयलेट का लौटना असम्भव नहीं तो इतना आसान भी नहीं। इसे आसान बनाने के लिए अब खुद गहलोत को आगे बढ़ सचिन को मनाना होगा और इसी में कांग्रेस की भलाई है।
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