-डॉ माया कुमार।।
आज भारती बहुत विचलित है, कारण है कोर्ट का फैसला- “श्रीमती भारती सिंह और श्रीमान आयुष्मान सिंह का बेटा अरमान अपने पिता के साथ रहेगा, उसकी मां भारती सिंह अपने बेटे के साथ महीने में एक दिन गुजार सकती है,चाहे अपने घर लाकर या आयुष्मान के घर जाकर”l भारती के पास फिलहाल नौकरी नहीं है, उसने प्रेग्नेंन्सी के दौरान डॉक्टर के पूर्णत: विश्राम (बेड रेस्ट) की सलाह पर एम.एन.सी. की प्राइवेट नौकरी छोड़ दी थी। कोर्ट ने “मुआवजे के तौर पर” आयुष्मान को 20 लाख रुपए और 30 हजार प्रति माह देने का फरमान जारी किया है।
भारती को यह अंदाज नहीं था कि कोर्ट का फैसला इतना जल्द आ जाएगा। आज अंदर से पूरी टूटी हुई भारती अपने फैसले को कोस रही है, मन में प्रश्न उठ रहे है कि मैंने तलाक की अर्जी दायर करने में इतनी जल्दबाजी क्यों की? मैं इंतजार कर सकती थी, मैं समझौता भी कर सकती थी।
आज उसके अंदर एक द्वंद छिड़ा हुआ है कि अब क्या होगा? मैं अरमान को छोड़कर कैसे रहूंगी? उसे ऐसा महसूस हो रहा है मानो जीवन की पतंग की डोर उसने खुद ही काट दी है और यह कटी पतंग हवा के झोंकों को सहते हुए न जाने कहां गिरेगी? उसे लग रहा है जैसे कि एक ही पल में जिंदगी हाथ से फिसल गई हो l
कोर्ट के फैसले के बाद भारती अपनी मां के पास पहुंच गई और अरमान अपने पिता आयुष्मान के साथ रहने लगा। भारती नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटक रही है, जहां भी इंटरव्यू के लिए जाती है, एक प्रश्न का सामना अवश्य करना पड़ता है। क्या आप शादी-शुदा हैं? जब वह अपना स्टेटस बताती कि वह एक परित्यक्ता है तो लोगों की निगाहें ही बदल जाती, उनका दृष्टिकोण ही बदल जाता। महीनों भटकने के बाद उसे कॉल सेंटर में नौकरी मिली है। नौकरी मिली लेकिन एक मुसीबत है, रात के 8 बजे जाना और 5 बजे अहले सुबह घर वापिस लौटना। नौकरी भी जरूरी है क्योंकि मायके में भाभी के ताने सुन- सुन कर ऊब चुकी है। घर में भाभी की ही चलती है, पिताजी पिछले ही वर्ष कैंसर से गुजर चुके है।
बहुत हिम्मत जुटाकर भारती ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया। ऑफिस में कुल 10 कर्मचारीगण हैं, 7 पुरुष और 3 महिलाएं। बाकी दो महिलाएं मस्तीखोर हैं और बड़े आनंद के साथ काम करती हैं। दोनों अपने-अपने बॉयफ़्रेंड के साथ हंसी-मजाक करती एवम् छुट्टी होते ही उनके मोटरसाइकिल में बैठकर चुन्नी लहराती निकल पड़ती और भारती देखते ही रह जाती। बाकी सात पुरुष सहकर्मियों में छ: अपने काम में लगे रहते, लेकिन उनमें से एक मिस्टर अमित अरोड़ा की निगाहें भारती पर रहती। बलां की खूबसूरत भी तो है भारती। जिस खूबसूरती पर उसे नाज़ था, वहीं अब दर्द का कारण बन रहा था।
भारती अपने काम में लगी रहती लेकिन जब काम से मन ऊब जाता तो उसे समझ में नहीं आता कि किससे बातें करें? इंडिया में अमेरिका के समयानुसार भला कौन मिलेगा, घर-परिवार या मित्र कोई नहीं। सेंटर में ही चक्कर लगाकर, कॉफी ले अपनी कुर्सी में बैठ जाती। कभी-कभी ऐसा भी होता कि काम खत्म करने के बाद जब नज़रे उठाती तो पाती कि मिस्टर अरोड़ा उसे निहार रहे हैं और भारती असुरक्षित और अकेलापन महसूस करती।
उसके लिए अरमान से बिछुड़ने का गम असहनीय है, उसको एक-एक दिन पहाड़ के समान लगने लगा है। महीनों पल-पल का इंतजार करती और अंतिम सप्ताह में पहुंच जाती अरमान के पास। 3 वर्ष का अबोध अरमान भी मां को देखते ही सीने से चिपक जाता और तुतली बोली में पूछता “मां तुम त्यूं इतले दिल बाद आती हो, लोज-लोज त्यूं नहीं आती”? शब्दहीन भारती उसे अपने सीनें से चिपकाकर सिर्फ चूमती, कोई जवाब नहीं है उसके पास। अरमान मां की गोद से उतर कर कहा “मां मेले साथ थेलो”। भारती अरमान के साथ बॉल से खेलने लगी, खेलते खेलते उसकी निगाहें दीवार पर लगी उस तस्वीर पर अटक गई, जिसे शादी की पहली वर्षगांठ पर आयुष्मान के कंधे पर अपने सर टिकाये खिंचवाया था।
मुझे याद है उस दिन आयुष्मान ने कहा था “भारती मैं तुम्हें आज ऐसा उपहार दे रहा हूं जिसे तुम्हारे सिवा कोई तोड़ नहीं सकता, बताओ वह क्या है? भारती कुछ उपहार की ही कल्पना कर रही थी, जो तोड़ने से टूटे नहीं, गहने, शो पीस या कुछ अन्य। जब वह जवाब नहीं दे पाई तो आयुष्मान ने उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा , नहीं बता पाई न मेरी भुल्लो। सुनो, मैं उपहार स्वरूप तुम्हें एक वचन दे रहा हूं कि “मैं जिंदगी भर साथ निभाऊंगा, मैं कभी भी धोखा नहीं दूंगा और एक पल के लिए भी तुमको नहीं भूलूंगा। इसे संकल्प मानो या मेरा वचन, मेरे इस मधुर रिश्ते को कोई शक्ति नहीं तोड़ पाएगी, तुम्हारे सिवा”। आयुष्मान ने इस संकल्प के द्वारा अपने वैवाहिक जीवन की आधाशिला को गहराई और मजबूती प्रदान की थी। एक पति अपनी पत्नी को इससे खूबसूरत और उत्कृष्ट उपहार दे नहीं सकता। भारती यादों में खो गई, “कितना विश्वास था आयुष्मान को मुझपर, उसने तो मुझे मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत उपहार दिया ,तो फिर मैं उसके प्यार को क्यों न समझ पाई? शक की आंधी और मेरा सनकीपन ने मुझे अंधा और बहरा बना दिया था। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। सचमुच, मैं बड़ी अभागिन हूं”।
शक की सुई भी बड़ी अजीब सी चीज होती है, जिसका न तो कोई प्रमाण होता है न ही कोई उपाय। शक ऐसा जाल है जिसमें घिरते-घिरते इंसान मकड़जाल में फंस जाता है, जहां से निकलना मुश्किल हो जाता है, मतलब कि सांप-छछूंदर वाली स्थिति। ऐसा ही हुआ है भारती के साथ।
दरअसल, आयुष्मान बंगलोर के इसरो में टेक्नीशियन के पद पर कार्य कर रहा था जहां चंद्रायन-2 मिशन पर काम चल रहा था। वैज्ञानिक समेत सैकड़ों कर्मचारीगण दिन-रात इस कार्य में जुड़े रहते थे। कभी-कभी सप्ताह भर वे घर नहीं जा पाते, परिवार से बातें भी नहीं कर पाते, ऐसा भी होता कि पर्व त्यौहार में परिवार से दूर रहना पड़ता। जब सीनियर साइंटिस्ट घर से दूर थे तो भला टेक्नीशियन कैसे घर जाते? वहां की कार्य संस्कृति में मिशन की सफलता की चुनौती सर्वोपरि थी, राष्ट्रहित की भावना की झलक यहां के कार्य संस्कृति में देखने को मिलती थी। मिशन में देरी स्वीकार्य थी लेकिन खामियां नहीं, इसलिए सबको बड़ी ही तन्मयता और धैर्य से काम करना पड़ता था। सेंटर के सारें वैज्ञानिकों, अधिकारियों तथा कर्मचारियों को इस बात का एहसास था कि जब योजनाओं का लक्ष्य बड़ा होता है तो चुनौतियां भी बड़ी होती हैं।
भारती को शक होने लगा कि आयुष्मान उसको उपेक्षित तो नहीं कर रहा है? कहीं दूसरा कोई चक्कर तो नहीं है? जैसा कि आम महिलाएं सोचती हैं। आयुष्मान यदा-कदा भारती से बातचीत के दौरान दिव्या नाम की एक सहकर्मी की चर्चा किया करता था कि वह संस्कारी और सुशील लड़की है, पिता के गुजर जाने के बाद मां की एकमात्र सहारा है। एक दिन दिव्या ने अपना लंच आयुष्मान के साथ शेयर किया था और आयुष्मान ने भारती से चर्चा की थी कि दिव्या बड़ा अच्छा खाना बनाती है, आज उसने बड़ी स्वादिष्ट बिरयानी अपनी लंच से शेयर किया था।
घर नहीं आने और आयुष्मान के अधिक व्यस्त हो जाने से घर पर दोनों में नोक-झोंक का सिलसिला महीनों से चल रहा था। आयुष्मान कभी सप्ताह में एक- दो बार आता तो बहुत थका मांदा रहता और घर आकर खाना खा कर सो जाता, सुबह देर तक सोया रहता, जब नींद खुलती और घड़ी पर नज़र जाती तो “ओ माई गॉड” कह कर झटपट उठता और तैयार होकर नाश्ता कर बाय-बाय कहते हुए बस स्टैंड की ओर भागता। भारती देखती ही रह जाती। अब भारती की शक की सुई ऊपर की ओर उठती ही जा रही थी।
भारती के पूछने पर आयुष्मान का सिर्फ एक जवाब मिलता, “मिशन पूरा करना है, काम का बोझ बढ़ गया है, कुछ ही दिनों की बात है, एक बार चंद्रयान-2 मिशन सफलतापूर्वक लांच हो जाए फिर सामान्य रूटीन शुरू हो जाएगा”। लेकिन सनकी भारती कुछ भी सुनने को तैयार न होती, और तू- तू , मैं-मैं शुरू हो जाती। भारती का शक दिन-ब-दिन गहराता गया और शक की मकड़जाल में फंसती ही गई।
उसने अपने शक को और पुख्ता कर लिया, जब दीपावली के दिन भी आयुष्मान ऑफिस से घर नहीं पहुंचा। उसने फोन कर भारती को बता दिया कि आज कुछ ऐसी तकनीकी समस्या आ गई है जिसके कारण उसे सेंटर पर ही रहना पड़ेगा और रात वही बितानी पड़ेगी। यह सुन कर भारती ने मन- ही- मन कहा और फैसला ले लिया “हमें आयुष्मान के साथ नहीं रहना है, अब हमें अपने रास्ते अलग करने हैं” । बिना सलाह मशविरा के उसने तलाक की अर्जी कोर्ट में डाल दी और फास्ट ट्रायल कोर्ट ने कई सुनवाई के बाद छ: महीने के अंदर तलाक का आदेश निकाल दिया।
आज वह तलाक का आदेश हाथ में लिए अपने आप को कोस रही थी, मैंने शादी के पहले सालगिरह में आयुष्मान द्वारा दिए गए तोहफे का मान नहीं रखा। क्या मेरी शक की शक्ति आयुष्मान के उस संकल्प से भी ज़्यादा ताकतवर थी?
भारती को आयुष्मान से प्यार की चाहत थी, लेकिन उसने आयुष्मान को समझने की कोशिश नहीं की। उसके कार्य के प्रति समर्पण और जुनून की अहमियत नहीं थी भारती के पास। आयुष्मान ठीक उसके विपरीत, मिशन को पूरा करना उसकी पहली प्राथमिकता थी, उसकी ही नहीं, पूरे टीम की थी क्योंकि मिशन की सफलता के साथ देश की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई थी। आयुष्मान एक स्वाभिमानी और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति था, उसके विचार देशभक्ति से ओत-प्रोत थे। यह गुण उसे परिवार से विरासत में मिला था। उसके दादा श्री शिव नारायण सिंह इन्हीं गुणों के कारण इसरो में एक सम्मानजनक स्थान बना पाए थे, वे वहां एक जूनियर साइंटिस्ट के रूप में कार्यरत थे। आयुष्मान को इस बात का बड़ा गर्व था और दादा जी को आदर्श मानते हुए उनके ही पद चिन्हों पर चलने की कोशिश कर रहा था। भारती, आयुष्मान की इस भावना को समझने की कोशिश भी नहीं की और सनकीपन में तलाक लेने फैसला ले लिया।
अब, भारती को एक-एक दिन पहाड़ के समान लग रहा था। एक दिन आयुष्मान के मित्र तथा सहकर्मी मिस्टर और मिसेज डेविड भारती से मिलने अचानक उसके घर पहुंच गए, उन्हें उन दोनों के ब्रेक-अप की खबर सुनकर बड़ा आघात पहुंचा था।
डेविड एक भला और नेक इंसान था, आयुष्मान से उसकी काफी बनती थी। डेविड अपनी पत्नी के साथ यदा-कदा आयुष्मान के घर आ जाया करता था। दोनों पति-पत्नी में गजब का प्यार था, साथ ही साथ दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह समझते थे, जो उनकी आंखों तथा उनके व्यवहार में झलकता था। डेविड, भारती से तलाक का कारण सुनकर सन्न रह गया, वह आयुष्मान की हर क्रिया-कलापों और उसके हर गतिविधियों से अवगत था। दिव्या से उसका सहकर्मी के सिवा कोई और रिश्ता न था। हां, यह बात जरूर थी कि चंद्रयान मिशन से जुड़ने के बाद कुछ उलझा रहता था और माथे पर चिंता की लकीरें अवश्य दिखाई पड़ती थीं। कारण पूछने पर एक बार उसने बताया था कि भारती उसे आज तक समझ नहीं पाई। इसी वार्तालाप में डेविड ने बताया कि उसकी पत्नी एंजिलेना तो उसे पूरा सपोर्ट करती है उसे मुझ पर पूरा विश्वास है कि हमारी तथा पूरी टीम की प्राथमिकता मिशन को सफल बनाना है। डेविड की बातें सुनकर भारती का हृदय आत्मग्लानि से भर गया, “यह मैंने क्या किया? मैंने अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारी है”।
भारती अरमान के लिए तड़पती रहती, एक मां का 3 साल के बच्चे से बिछड़ने का दर्द मां की ममता ही समझ सकती है। कोर्ट के फैसले के अनुसार वह महीने में एक बार अपने बच्चे से मिलकर एक दिन उसके साथ समय बिता सकती थी। भारती एक-एक दिन, हरेक पल का इंतजार करती और समय से पहले आयुष्मान के घर पहुंच जाती। आयुष्मान भारती से बिछड़ने का गम सीने में छुपाए अरमान के साथ तथा ऑफिस के कार्यों में व्यस्त रहता था। भारती के फैसले से काफी दुखित और आहत था, किंतु इस विषय पर किसी से चर्चा न करता। हां, अरमान की देखभाल के लिए मां को गांव से बुला लिया था। आयुष्मान की मां एक सरल स्वभाव की नेक महिला थीं। बेटा बहू के बीच तलाक से बहुत दुखी और उदास रहने लगी थीं। वह ईश्वर से प्रार्थना करती “हे भगवान दोनों को फिर से मिला दो”।
आज 24 मार्च, 2020, मंगलवार भारती अरमान से मिलने आयुष्मान के घर एक दिन की छुट्टी लेकर आई है। अरमान को गोद में लेकर उसका मन गदगद हो जाता और फूले नहीं समाती, ऐसा महसूस होता मानो पूरी दुनिया की खुशियां मिल गई हो। उसी रात 8 बजे देश के प्रधानमंत्री का संदेश आता है कि पूरे भारत में कोरोना महामारी की वजह से 21 दिन का लॉक डाउन 25 मार्च से 14 अप्रैल तक लगा दिया गया है, जिसमें किसी को एक जगह से दूसरी जगह जाने की इजाज़त नहीं है, इमरजेंसी सेवाओं के सिवा।
यह ऐलान सुनकर भारती खुशी से झूम उठी कि उसे 21 दिनों तक अरमान के साथ रहने का सुनहरा अवसर तथा आयुष्मान के साथ वार्तालाप का मौका भी मिलेगा। दरअसल, डेविड से मिलने के बाद भारती को अपने फैसले पर बहुत पछतावा हो रहा था और आयुष्मान से बातें करने के लिए उसका मन बेचैन था। उसे लगा मानो यह ऐलान उसके पिछले जन्म के पुण्य का फल है या कुछ और। उस रात भारती अरमान को लेकर कमरे में चली गई। रात भर भारती सो न सकी और इस सोच में पड़ी रही कि मैं कैसे अपनी गलती स्वीकार करूं? एक विचार मन में आया कि पहले मां को मनाती हूं, मां तो चाहती है कि अरमान को उसकी मां का प्यार मिले और हम – दोनों फिर से एक हो जाएं। सुबह उठकर भारती मां के कमरे में गई और चरण छू कर उनके पास बैठ गई और बोली- “मां, मुझे अपनी गलती पर बहुत पछतावा हो रहा है, यदि आपका साथ मिले तो मैं आयुष्मान से क्षमा प्रार्थना करना चाहती हूं। अभी मैं 21 दिनों तक आपलोगों के साथ रहूंगी”।
आप अरमान को देखिए, वह सो रहा है, मैं नाश्ता बनाने जा रही हूं कहकर भारती उठ कर खड़ी हुई । मां ने कहा-पूड़ी और आलू की सब्जी बना लेना, भारती बोली- मां आयुष्मान को आलू पराठे और बूंदी रायता बहुत पसंद हैं, बना लूं? मां ने खुशी मन से हांमी भर दी। भारती ने आलू पराठे और बूंदी रायता बना कर डाइनिंग टेबल पर सजा कर रखा दिया और अरमान के कमरे में आ गई। उसे आयुष्मान से आमने-सामने होने में बड़ा संकोच हो रहा था, उसे अपनी गलती का अफ़सोस हर पल रहता था।
आयुष्मान नाश्ता खा कर अपने कमरे में चला गया, उसका आहत मन कुछ बोल न पाया। भारती रोज आयुष्मान का पसंदीदा खाना बनाती और रसोई घर से ही झांक कर देखती रहती। आयुष्मान मां को बुलाता और कहता “मां आओ, साथ में खा लो” कभी-कभी अरमान भी पापा से साथ बैठकर खाने लगता और बड़े मज़े से खाता, कभी खेल-खेल कर, तो कभी कूद-कूद कर। अपनी तुतली बोली में सबको हंसाता रहता। आयुष्मान को बड़ा आश्चर्य होता कि जो बच्चा खाने में बड़े नखरे दिखाता था, आज बड़े मज़े में खा रहा है? वास्तव में मां का प्यार पाकर अरमान बड़ा खुश था। दरअसल, छोटे बच्चे अपनी खुशी का इज़हार बोल कर नहीं कर पाते, बल्कि बाल-सुलभ चपलताओं से सबका मनोरंजन करते हैं । अरमान की दादी भी पोते में परिवर्तन देखकर फूले नहीं समाती और ईश्वर से केवल यही दुआ करती “हे भगवान इन दोनों को मिला दो”
आज 14 अप्रैल है, भारती को पता ही नहीं चला कैसे 20 दिन बीत गए। रात में अरमान को लेकर कमरे में सोने चली गई, अरमान सो गया और वह रात भर बेचैन रही। “क्या करूं, कैसे कहूं”? रात भर योजनाएं बनाती रही। भारती हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी, लेकिन ईश्वर का नाम लेकर कहा- अब चाहे जो भी हो, कल मैं सुबह उठते के साथ आयुष्मान के समक्ष अपना दिल खोल कर रख दूंगी और अपनी गलती स्वीकार करूंगी।
15 अप्रैल की सुबह आयुष्मान ज्यों ही अपने कमरे से निकला, भारती उसके चरणों में अपना मस्तक रख दी और बोली “मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई, मैंने तुम्हें गलत समझा, मैंने तुम्हारे सिर्फ वाह्य रूप को देखा, तुम्हारे अंदर के खूबसूरत इंसान को मैं देख नहीं पाई, अब तुम्हारे ही चरणों में मेरी जन्नत है। शादी की पहली सालगिरह पर तुम्हारे दिए उस तोहफ़े का मोल मैं समझ गई। हां, कुछ देर कर दी मैंने इसे समझने में।
आयुष्मान आवाक खड़ा रहा, उसकी मां बोली “बेटा क्षमा करना सबसे बड़ा पुण्य है यदि हृदय से भारती ने अपनी गलती स्वीकार कर ली हो”। आयुष्मान ने दोनों हाथों से भारती को उठाते हुए बोला, “यदि पति-पत्नी में सच्चा प्यार है तो शक का कोई स्थान नहीं होता, सात समुंदर पार भी पति का दिल पत्नी के लिए ही धड़कता है”।
भारती ने कहा, भगवान ने मेरी पुकार सुन ली “थैंक यू कोरोना” तू तो मेरे लिए वरदान है। तूने मेरी जीवन रूपी नैया को डूबने से बचा लिया।
जो कोरोना दुनिया के लिए अभिशाप है, भारती के लिए वरदान बन गया।
Leave a Reply