भारतीय संस्कृति में प्रश्न पूछने और शास्त्रार्थ की सनातन परंपरा चली आई है। यक्ष ने युधिष्ठिर से सवाल पूछे थे। नचिकेता ने यमराज से आत्मा के ज्ञान के बारे में सवाल किए थे। मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ तो एक मिसाल ही है, जिसमें मंडन मिश्र की पत्नी के आगे शंकराचार्य निरुत्तर हो गए थे। सवालों, तर्कों और आलोचना की यह परंपरा ही भारत में ज्ञान की सीढ़ी मानी गई। लेकिन अब सत्ताधारियों, सत्तालोभियों और सत्तालाभियों को सवाल इस कदर खटकने लगे हैं, कि उनका बस चले तो देश में प्रश्न पूछने की परंपरा ही खत्म हो जाए। इस वक्त कोरोना से निपटने के सरकार के तौर-तरीकों पर विपक्ष लगातार टिप्पणी कर रहा है। शुरुआत में सलाह-मशविरे भी दिए गए, लेकिन जब उन्हें अनसुना किया गया तो अब विपक्ष ने सवाल पूछने शुरु कर दिए। देश में टेस्टिंग की व्यवस्था, पीपीई किट्स की गुणवत्ता, मजदूरों की घरवापसी, उनके रोजगार का इंतजाम, लॉकडाउन को लेकर सरकार की योजना, पीएम केयर्स फंड का हिसाब इन तमाम मुद्दों पर विपक्ष ने सवाल पूछे, जिनके जवाब देने में सरकार ने कोई खास रुचि नहीं दिखाई। कोरोना के मुद्दे पर अमित शाह ने अपनी विफलता, कमजोरियों को माना है। हाल ही में ओडिशा में की गई वर्चुअल रैली में उन्होंने कहा कि ‘कोरोना वायरस महामारी से निपटने और प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर हमसे गलती हुई होगी, कुछ कमी रह गई होगी, लेकिन हमारी निष्ठा साफ थी, हम कहीं कम पड़ गए होंगे। कुछ नहीं कर पाए होंगे। मगर आपने (विपक्ष ने) क्या किया?’ कितनी हास्यास्पद बात है कि देश के गृहमंत्री विपक्ष से जिम्मेदारी का हिसाब ले रहे हैं। लोकतंत्र में विपक्ष का काम सरकार की मनमानी पर अंकुश लगाना, उसे सही राय देना और गलत बातों की आलोचना करना है। इस हिसाब से देखें तो विपक्षी दल कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने फरवरी में ही मोदी सरकार को कोरोना के खतरे और अर्थव्यवस्था पर उसके परिणामों को लेकर चेतावनी दे दी थी। इसके बाद उन्होंने लॉकडाउन को लेकर भी आगाह किया था कि यह केवल पॉज बटन है, हमें कोरोना से बचने के लिए टेस्टिंग बढ़ाने की जरूरत है। सोनिया गांधी ने भी सरकार से लॉकडाउन के बाद की रणनीति को लेकर सवाल पूछे। अब अमित शाह पूछ रहे हैं कि आपने क्या किया। जबकि फैसले लेने का हक तो सरकार के पास है। जनता ने पूर्ण बहुमत देकर भाजपा को इसलिए सत्ता नहीं सौंपी कि वह खुद काम करने की जगह विपक्ष से काम करने की उम्मीद रखे। सुप्रीम कोर्ट में प्रवासी कामगारों के मुद्दे पर सुनवाई हो रही थी, तब केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इसी तरह के सवाल याचिका डालने वालों से पूछे थे कि आपने श्रमिकों के लिए क्या किया। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए मजदूरों की दुर्दशा उजागर करने वालों की तुलना गिद्ध से की थी, जाहिर है उनके निशाने पर वे पत्रकार थे, जो रोजाना पैदल घर लौटते कामगारों की दर्द भरी कहानियां देश के सामने ला रहे थे। केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी एक बड़े राष्ट्रभक्त पत्रकार को साक्षात्कार देते हुए उन पत्रकारों को गुनहगार बताया था जो श्रमिकों की फोटो खींचकर बेच रहे थे। श्रीमती ईरानी को पत्रकारों से तो शिकायत हुई, लेकिन देश में अगर लाखों श्रमिक पैदल घर जाने के लिए मजबूर हुए तो इसमें पत्रकारों का दोष है या सरकार का।
यह सही है कि बहुत से पत्रकार गरीबों के दर्द के बहाने अपना प्रचार भी खूब करते हैं, लेकिन गरीबी की हकीकत सामने लाना उनका काम है, उसमें सरकार को तकलीफ क्यों होती है। वैसे कुछ पत्रकार न केवल अपना प्रचार करते हैं, बल्कि वे सरकार का प्रचार करने में भी कोई कमी नहीं छोड़ते। इस वजह से उन्हें राज्यसभा में या विभिन्न सरकारी समितियों या आयोगों में कोई लाभ का पद मिल जाता है और यह भी न हुआ तो कम से कम हर महीने के खर्चे-पानी का अच्छा-खासा इंतजाम तो हो ही जाता है। ये पत्रकार अगर अंग्रेजी बोलने वाले हुए तो फिर सोने पे सुहागा समझिए, क्योंकि इससे विदेशों में प्रचार में सहायता मिलती है। रक्षा और व्यापारिक सौदों में इनकी भूमिका का लाभ लिया जाता है। ऐसे पत्रकार न खुद सरकार से कोई सवाल करते हैं, न उन्हें विपक्ष का सवाल करना पसंद आता है। इस वक्त कुछ ऐसे ही हालात बने हैं। बीते दिनों लद्दाख की सीमा पर चीन के साथ तनाव बढ़ा, चीनी सैनिकों के देश की सीमा के भीतर तक घुस आने की खबरें आईं, तो इस पर विपक्ष ने सरकार से वस्तुस्थिति बताने की मांग की, पर सरकार कोई जवाब नहीं देना चाह रही है। राजनाथ सिंह ट्विटर पर राहुल गांधी के शायराना तंज का जवाब देते हैं, वो भी शायर के गलत नाम के साथ। लेकिन ये नहीं बताते कि सीमा पर हालात कैसे हैं। अमित शाह अमेरिका और इजरायल के जैसे भारत को मजबूत बताते हैं, लेकिन ये नहीं बताते कि सीमा की हकीकत क्या है। और कुछ मीडिया चैनल सरकार के प्रवक्ता की तरह विपक्ष पर हमलावर होते हैं कि इस वक्त से सरकार से सवाल नहीं करने चाहिए। लगे हाथ उन्हें ये भी बता देना चाहिए कि सरकार से सवाल पूछने के लिए क्या विपक्ष मुहूर्त निकाले या मुंह पर भारत निर्मित पट्टी लगाकर आत्मनिर्भर भारत का प्रचार करते रहे।
(देशबन्धु)