भाइयो-बहनो, आज अगर मैं भी ‘मन की बात’ करूँ तो आपको बुरा तो नहीं लगेगा?लगे तो भी मैं तो करूँगा।तो ये देश अमेरिका, अपने को बिल्कुल समझ में नहीं आया।होगा विश्व की महाशक्ति, हुआ करे, हमारी बला से।अरे ऐसा देश भी भला कोई देश है, जहाँ के राष्ट्रपति को सुरंग में छुपना पड़ जाए!जहाँ के राष्ट्रपति भवन तक प्रदर्शनकारी चले आएँ,नारे लगाएँ,हुुड़दंग मचाएँ! ह्यूस्टन का पुलिस प्रमुख, देश के राष्ट्रपति यानी समझो हमारे प्रधानमंत्री की हैसियत के आदमी से यह कहने हिम्मत करे कि ऐ ट्रंपश्री,जरा चुप रहना भी सीखो!मुँह बंद भी रखा करो।अल्लमबल्लम कुछ भी बका मत करो।ढँग की बात कर सकते हो तो करो वरना चुप बैठो। हमारे यहाँ प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री तो बहुत दूर, कोई अधिकारी, जिला भाजपा अध्यक्ष से भी इस भाषा में बात करे तो भक्त इसे हिंदुत्व और मोदीजी का संयुक्त अपमान मानते हुए उसकी खटिया खड़ी कर देंगे।ऐसा पक्का इंतजाम करवा देंगे कि उसकी बाकी जिंदगी चैन से न गुजर सके। और अगर भाईसाहब, खुदा न खास्ता उसने प्रधानमंत्री या गृह मंत्री से ऐसा कह दिया तो उसकी ड्रेस निकलवाकर उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा।इतने केस उस पर मढ़ दिए जाएँगे कि उनसे निबटने के लिए यह मानव जीवन उसे अपर्याप्त लगेगा। सरकार किसी की भी आए, उसे जार्ज फ्लायड की तरह यह कहने का मौका भी नहीं मिलेगा कि मेरी साँस घुट रही है,मैं मर जाऊँगा।कोई इसका वीडियो बनाता तो उसका मोबाइल या कैमरा ही नहीं,उसका सिर भी तोड़ दिया जाता।।यह होता है देश,ये होता है असली मनुवादी लोकतंत्र! और वहाँ दो सौ साल पुराना लोकतंत्र है और एक पुलिस प्रमुख इतनी बदतमीजी पर उतर आता है और फिर भी साफ बच निकल आता है! चल चुका ऐसा देश और ऐसा लोकतंत्र।अरे सीखो मेरे देश की इस महान सरकार से!लेकिन साहब घमंड है अमेरिका होने का,सीखेंगे थोड़े ही!
और बात इतना ही नहीं, वहाँ चार दशक पुराना दक्षिणपंथी स्तंभकार ट्रंपश्री को दो कौड़ी का विदूषक बताता है और कहता है कि इसने अमेरिका का कबाड़ा करके रख दिया है!कहाँ एक स्तंभकार और कहाँ देश का सर्वेसर्वा!कोई मुकाबला है दोनों में? फिर भी देशद्रोह की कार्रवाई तक नहीं और वहाँ के कालों की इतनी हिम्मत कि अमेरिका के 75 शहरों में प्रदर्शन करें और गोरे और तमाम लोग उनके साथ आ जाएँ!और पुलिसवाले उनके सामने घुटने टेक दें और प्रदर्शनकारियों से यह भी कहें कि हम भी तुम्हारे साथ हैं!ऐसे चलती है क्या किसी देश की व्यवस्था?राष्ट्रपति मिलिट्री बुलाने, कर्फ्यू लगाने की बात करता है और गवर्नर उसकी सुनते तक नहीं।राष्ट्रपति को अपने शब्द वापिस लेने पड़ते हैं! ये कोई बात हुई!हमारे यहाँँ यह सब नहीं चलता क्योंकि यहाँ लोकतंत्र है! हमारा यह लोकतंत्र अमर रहे।
अरे ट्रंपश्री,मोदीजी तो आपके फास्ट फ्रेंड हैं।उनसे कहो कि अमित शाह को महीने भर के लिए आपको उधार दे दें! यहाँ तो अलमोस्ट वह सबकुछ सेट कर चुके हैं,वहाँ भी सब दो मिनट में कर देंगे।और वह सच्चे ‘देशभक्त ‘ हैं तो अमेरिका से यहाँ भी सब सेट करते रहेंगे।और इससे भी अधिक आकर्षक प्रस्ताव देता हूँ कि अगर आप थक गए हों तो मोदीजी को भी वहाँ बुला लो। उनका हवा- पानी बदले, कई महीने हो गए हैं।दोनों मिल कर सब कालों, उनके साथी गोरों वगैरह की हवा टाइट कर देंगे।और भारत का क्या है,मोदीजी जैसा तो कोई भी चला लेगा।यहाँ एक से एक ‘अवर्णनीय योग्य’ मंत्री हैं पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण,रविशंकर प्रसाद, स्मृति ईरानी आदि और योग्यतम हैं- गिरिराज सिंह और उनसे भी बढ़िया रहेंगी साध्वी प्रज्ञा,हालांकि अभी वह बेचारी सांसद हैं।बस एक ही दिक्कत है भाजपा में मार्गदर्शक मंडल जैसी व्यवस्था है।पता चला उधर अमेरिका में मोदी-शाह अपना झंडा फहरा कर आए और इधर इन्हें नये प्रधानमंत्री ने मार्गदर्शक मंडल के क्वारंटीन सेंटर में स्थायी रूप से भेज दिया! भाजपा में यह परंपरा स्वयं मोदीजी द्वारा स्थापित है तो वे शिकायत भी नहीं कर सकते।
खैर जो भी हो, ट्रंपश्री आप मान लो मेरी बात , फायदे में रहोगे वरना चुनाव हार सकते हो!और आपको बता दूँ कि आपकी हार से आपको जितना दुख होगा,उससे दुगुना दुख हमारे मोदीजी को होगा।वह रोना भी जानते हैं,जो शायद आप नहीं जानते। और वह जब रोते हैं तो बड़े – बड़े पर्वत पिघल जाते हैं।हिमालय उनकी वजह से ही पिघल रहा है, इसलिए अपने खातिर नहीं तो भारत के 130 करोड़ लोगों की खातिर हमारे मोदीजी को दुख के सागर में मत डुबोना वरना उस फकीर का कोई भरोसा नहीं। कब अपना झोला लेकर निकल जाए और केदारनाथ की गुफा में तपस्या करने चला जाए।वह गया तो फिर गया,फिर नहीं लौटेगा और भारत फिर से नेहरू युग में पहुँँच जाएगा।बड़ी मुश्किल से तो मोदीजी बेचारे कश्ती को निकाल कर ‘न्यू इंडिया’ तक लाए हैं।ऐसा मत होने देना ट्रंपश्री।मैं बहुत आशा से आपकी ओर देख रहा हूँ।
और कोई अंग्रेजीदां, भाई अथवा बहन इसे पढ़ रही हो तो इसका अनुवाद करके सीधे व्हाइट हाउस पहुँचा देना।मोदीजी बिलकुल बुरा नहीं मानेंगे।उल्टे वह खुश होंगे कि 130 करोड़ में कम से कम एक ‘देशद्रोही’ कम हुआ और ‘देशभक्त’ बन गया!