तीन-तीन लॉकडाउन के बावजूद देश में कोरोना मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। सरकार न सेहत का मोर्चा संभाल पा रही है, न अर्थव्यवस्था का। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने आज कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में सवाल भी उठाया कि 17 मई के बाद क्या होगा। भारत सरकार यह तय करने के लिए कौन सा मापदंड अपना रही है कि लॉकडाउन कितना लंबा चलेगा। यह सवाल अकेले कांग्रेस का नहीं, बल्कि देश के लाखों-करोड़ों लोगों के मन में है। इसी तरह एक और आशंका यह भी है कि लॉकडाउन में जो रियायतें दी जा रही हैं, उसका कितना विपरीत असर पड़ेगा।
क्या सरकार द्वारा जबरन थोपा जा रहा आरोग्य सेतु ऐप इसमें कुछ मदद करेगा। या इसका इस्तेमाल लोगों पर निगाह रखने के लिए सरकार करेगी। गौर कीजिए आजकल आरोग्य सेतु का कितना विज्ञापन हो रहा है, जिसमें अजय देवगन इसे निजी बॉडीगार्ड की तरह बताते हैं। अगर एक ऐप से कोरोना से बचाव संभव होता तो मुश्किल ही क्या थी, फिर तो दुनिया भर में इस पर्सनल बॉडीगार्ड को प्रसारित, प्रचारित किया जाना चाहिए था ताकि कोरोना के मामले बढ़ते ही नहीं। लेकिन सरकार हर बात को जितना आसान बताती है, दरअसल भीतर ही भीतर उसकी परतदार गुत्थियां होती हैं। जिस पर खुलकर जवाब देने की जगह सरकार उल्टे आरोप मढ़ने लगती है।
जैसे कुछ दिनों पहले जब राहुल गांधी ने आरोग्य सेतु को लेकर निजता के भंग होने की चिंता जतलाई थी तो केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने उन पर झूठ बोलने का इल्जाम लगाते हुए कहा कि जिन लोगों ने जीवनभर केवल निगरानी रखने का काम किया, वे नहीं समझ सकते कि टेक्नोलॉजी का भलाई के कामों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर तो निगरानी का आरोप लगा दिया, लेकिन इससे वे यह साबित नहीं कर पाए कि आरोग्य सेतु किस तरह इस्तेमाल में सुरक्षित है। बेहतर होता वे उन शंकाओं का समाधान करते, जो इस ऐप को लेकर उठ रही हैं।
गौरतलब है कि अकेले राहुल गांधी ही नहीं कई तकनीकी विशेषज्ञ और निजता एक्टिविस्ट इस ऐप को लेकर आगाह कर चुके हैं। सरकार के कहने पर इसे करोड़ों लोग डाउनलोड कर चुके हैं। सरकार का कहना है कि इस ऐप को मोबाइल में इंस्टॉल कर लेने से अगर व्यक्ति हमेशा जीपीएस, ब्लूटूथ ऑन रखे तो उसे घर से बाहर निकलने पर यह पता चलता रहेगा कि वो कहीं किसी संक्रमित व्यक्ति से संपर्क में तो नहीं आया। लेकिन अब इस ऐप की कई खामियां उजागर हुई हैं। इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने आरोग्य सेतु पर विस्तृत रिसर्च की है। संस्था के मुताबिक भारत में व्यापक डाटा सुरक्षा कानून का अभाव है और सर्विलांस और इंटर्सेप्शन के जो कानून हैं वो आज की हकीकतों से बहुत पीछे हैं।
आईएफएफ के मुताबिक सिंगापुर और कुछ यूरोपीय देशों में भी सरकारें इस तरह के ऐप का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन वहां ऐसी कई बातों का ख्याल रखा जा रहा है जिन्हें भारत में नजरअंदाज कर दिया गया है। जैसे सिंगापुर में सिर्फ स्वास्थ्य मंत्रालय इस तरह की प्रणालियों द्वारा इकठ्ठा किए गए डाटा को देख या इस्तेमाल कर सकता है और नागरिकों से वादा किया गया है कि पुलिस जैसी एजेंसियों की पहुंच इन प्रणालियों और इनमें निहित डाटा तक नहीं होगी, लेकिन भारत में नागरिकों से ऐसा कोई वादा नहीं किया गया। एक खामी यह भी है कि आरोग्य सेतु ब्लूटूथ और जीपीएस दोनों का इस्तेमाल करता है अधिकतर ऐप दोनों में से किसी का इस्तेमाल करते हैं।
अधिकतर ऐप सिर्फ एक बिंदु पर डाटा इकठ्ठा करते हैं लेकिन आरोग्य सेतु कई बिंदुओं पर डाटा मांगता है। आईएफएफ के अनुसार आरोग्य सेतु में पारदर्शिता के मोर्चे पर भी कई कमियां हैं। ये अपने डेवेलपर्स और उद्देश्य के बारे में पूरी जानकारी नहीं देता है।
एक अहम् बिंदु यह भी है कि ऐप के ही टर्म्स ऑफ सर्विस में लिखा हुआ है कि ये कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति को पहचानने में गलती भी कर सकता है। यानी किसी व्यक्ति को गलती से बीमार बता कर उसकी आवाजाही पर यह रोक लगा सकता है। फ्रांस के इलियट एल्डरसन नाम के एथिकल हैकर ने भी कुछ दावे किए हैं, जिन पर ध्यान देना चाहिए। इलियट ने दो दिन पहले इसकी तकनीकी खामियों के बारे खुलासा करने का जिक्र ट्विटर पर किया था और कहा था कि सरकार के संपर्क करने पर वे इसकी जानकारी देंगे।
उन्होंने राहुल गांधी की चिंताओं को भी सही बताया था। सरकारी अधिकारियों ने जब उनसे संपर्कर् किया तो इलियट ने कुछ बिंदु उनके सामने रखे। जैसे ये एप्लीकेशन, कुछ मौकों पर यूजर की लोकेशन ट्रेस करता है। जवाब में सरकार ने कहा कि ऐप ऐसा ‘गलती से नहीं कर रहा, बल्कि उसे ऐसे ही डिजाइन किया गया है। ये बात एप्लीकेशन की प्राइवेसी पॉलिसी में पहले ही लिख दी गई है।
इलियट ने दूसरी चिंता यह जतलाई कि सी प्रोग्रामिंग स्क्रिप्ट के जरिए यूजर अपनी रेडियस और लॉंगिट्यूड-लैटिट्यूड (अक्षांश और देशांतर लोकेशन) बदल सकता है। जिससे वो कोविड 19 के आंकड़े हासिल कर सकता है। जिस पर सरकार का कहना है कि रेडियस केवल 5 बिंदुओं, आधा किलोमीटर, एक किलोमीटर, 2 किलोमीटर, 5 किलोमीटर और 10 किलोमीटर पर ही सेट है, इसलिए उसे इसके अलावा बदलना संभव नहीं है। रही बात आंकड़ों की जानकारी की, तो वह पहले से ही सार्वजनिक डोमेन में है। इस तरह एथिकल हैकर द्वारा उठाए गए बिंदुओं का जवाब देते हुए सरकार ने यह कह दिया कि आरोग्य सेतु ऐप पूरी तरह सुरक्षित है। लेकिन इलियट एल्डरसन सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं। उन्होंने बुधवार सुबह एक और ट्वीट कर ट्वीटर यूजर्स से पूछा कि क्या उनको पता है कि आरोग्य सेतु ऐप कौन सा ट्राएंगुलेशन है?
दरअसल संचार तकनीक की भाषा में ट्राएंगुलेशन वह गणना है, जिसके आधार किसी विशेष लोकेशन या मोबाइल सिंग्नल्स के आधार पर सटीक लोकेशन ट्रेस की जा सकती है, दूसरे शब्दों में कहें तो एल्डरसन मोबाइल फोन ट्रैकिंग की बात कर रहे हैं और ये भी जता रहे हैं कि इस ऐप का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति का मोबाइल फोन ट्रैक किया जा सकता है। अब यह देखना होगा कि सरकार इसका कोई जवाब देती है या इस सवाल को भी टाल देती है। वैसे टालमटोल की यह आदत सत्ताधीशों की सेहत के लिए सही हो सकती है, लोकतंत्र, और नागरिक अधिकारों के लिए नहीं।
(देशबन्धु)