-संजय कुमार सिंह।।
आज की सबसे बड़ी खबर सिर्फ अमर उजाला ने पहले पन्ने पर लगभग सही शीर्षक के साथ छोटी ही सही, चार कॉलम में छापी है। मैं हिन्दी के सात अखबार देखता हूं उनमें किसी में भी यह खबर इस या ऐसे शीर्षक के साथ पहले पन्ने पर नहीं है। मजेदार यह कि अमर उजाला ने इस खबर के साथ सरकारी या पीड़ित पक्ष का जो बयान छापा है उसे ही दैनिक भास्कर ने पहले पन्ने पर बतौर मूल खबर छाप दिया है। खबर है, कोरोना की जांच के लिए चीन से किट खरीदने में गड़बड़ी। सबसे कम कीमत के परंपरागत तरीके से इस गंभीर मामले में हुई खरीदारी में कमीशन और घोटाले की पूरी आशंका तो है ही लॉकडाउन की महत्वपूर्ण अवधि भी इस लिहाज से लगभग बेकार चली गई।
आईसीएमआर ने इसे खरीदा और उसी ने कह दिया कि यह फील्ड टेस्ट में नाकाम है। फिर भी यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर ऐसे शीर्षक से नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में किट का उपयोग नहीं करने की खबर है। हिन्दुस्तान में भी इसी शीर्षक से छोटी सी खबर है। शीर्षक में किट खरीने में देरी और उससे नुकसान और घपले की कोई बात नहीं है। वह भी तब जब मामला पहले ही सार्वजनिक हो चुका है और कल से सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। अदालती झगड़े के कारण ही सार्वजनिक हुआ है।

इसके मद्देनजर, कांग्रेस ने मांग की है कि सरकार कोविड से संबंधित सभी खरीदारी को सार्वजनिक करे फिर भी ना इस घोटाले की खबर, ना कांग्रेस की मांग, पहले पन्ने पर है। हिन्दी अखबारों में यह खबर नहीं के बराबर या अंग्रेजी वाले दूसरे शीर्षक जैसी है। अकले अमर उजाला ने इसे पहले पन्ने पर छापा और शीर्षक है, चीनी किट घटिया ही नहीं, दाम भी दोगुने … अब ऑर्डर रद्द। दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर छपी खबर का शीर्षक है, चीन की रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट का ऑर्डर रद्द, सारी किट लौटाएंगे, सरकार बोली भुगतान नहीं किया। पर मामला इतना सीधी या भोलेपन का नहीं है।
कायदे से ऐसे अच्छे किट का ऑर्डर दिसंबर जनवरी में दे दिया जाना चाहिए था (फैसला तो हम कर ही सकते थे) और सामान लॉकडाउन शुरू होने से पहले आ जाना चाहिए था। हम एक लॉक डाउन खत्म होने औऱ दूसरा खत्म होने से एक हफ्ते पहले तय कर रहे हैं कि जो किट हमने खरीदे हैं वो काम के नहीं हैं। क्या यह चूक नहीं है? क्या संकट के इस समय में सबसे सस्ते के चक्कर में पड़ा जाना चाहिए था। क्या ऑर्डर करने से पहले टेस्ट किट की जांच नहीं होनी चाहिए थी। अगर वह नहीं हुआ तो इंतजार या लॉक डाउन की अवधि में इसपर विचार नहीं किया जाना चाहिए था कि हमने जो ऑर्डर किया है वह क्या है और आएगा तो काम करेगा कि नहीं।
समय गंवाना वैसे भी मुफ्त का हार्ड वर्क है और लॉकडाउन करके इंतजार करना, अब कहना कि उपयोग नहीं करेंगे – से जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई पैसे में हो सकती है। फिर भी यह कहा जा रहा है कि भुगतान नहीं हुआ है (इसलिए कोई नुकसान नहीं है)। साफ है कि सरकार के लिए या यह दलील देने वालों के लिए समय और इस बीच जो मर गए उनकी जान की कोई कीमत नहीं है। सरकार यह प्रचार करने में लगी है कि उसने समय पर लॉक डाउन कर दिया और उसका पर्याप्त लाभ मिला है। यह नहीं बता रही है कि टेस्ट कब और कैसे होंगे?