कोरोना के कारण देश में किया गया लॉकडाउन बढ़े या न बढ़े, इसे लेकर केंद्र सरकार असमंजस में लगती है। आज प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा की, जिसमें अधिकतर राज्य लॉकडाउन बढ़ाने के पक्ष में दिखे। कोरोना का संक्रमण एक से दूसरे व्यक्ति में तेजी से फैलता है और अब तक इसकी कोई दवा भी तैयार नहीं हुई है, इसलिए इससे बचने का एकमात्र उपाय है लॉकडाउन ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन हो और लोगों को घरों पर रखकर संक्रमण को अधिक से अधिक रोका जा सके। हालांकि लॉकडाउन की अवधि में भी कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ी है, लेकिन फिलहाल कोई और तरीका नजर नहीं आ रहा है। वैसे लॉकडाउन के कारण देश की अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचा है।
लॉकडाउन बढ़ा तो देश के आर्थिक पतन को संभालना मुश्किल हो जाएगा। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि देश की जीडीपी विकास दर वित्त वर्ष 2019-20 के 5.5 फीसदी की तुलना में वित्त वर्ष 2020-21 में -0.4 फीसदी रह सकती है। और लॉकडाउन खोल दें तो सेहत की चिंताएं बढ़ जाएंगी। देश में इधर कुआं, उधर खाई जैसा हाल बन गया है। जिससे बचने के लिए कोई मध्यममार्ग तलाशना होगा। अपने-अपने विषयों के जानकार इस मुद्दे पर सरकार को राय भी दे रहे हैं, चाहे वो सुने या न सुने।
ऐसी ही एक राय 50 आईआरएस अधिकारियों ने भी दी। भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) एसोसिएशन के 50 अधिकारियों ने ‘फोर्स’ (राजकोषीय विकल्प और कोविड-19 महामारी के लिये प्रतिक्रिया) शीर्षक से एक रिपोर्ट में कुछ सुझाव सरकार को दिए थे। जैसे एक करोड़ रुपये से अधिक आय वाले लोगों के लिये आय कर की दर बढ़ाकर 40 प्रतिशत करने का सुझाव दिया गया, अभी एक करोड़ से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत की दर से आयकर लगता है। इसी तरह पांच करोड़ रुपये से अधिक वार्षिक आय वाले लोगों पर संपत्ति कर लगाने का सुझाव दिया गया।
कोरोना को लेकर राहत कार्य के वित्तपोषण के लिये 10 लाख रुपये से अधिक की कर योग्य आय वाले लोगों पर चार प्रतिशत की दर से कोविड-19 राहत उपकर लगाने का भी सुझाव दिया गया। रिपोर्ट पेपर में कहा गया, ‘ऐसे समय में तथाकथित अत्यधिक अमीर लोगों पर बड़े स्तर पर सार्वजनिक भलाई में योगदान करने का सबसे अधिक दायित्व है’। इन अधिकारियों ने यह सुझाव भी दिया कि सरकार 5-10 महत्वपूर्ण परियोजनाओं या महत्वपूर्ण खर्चों को पूरा करने वाली योजनाओं की पहचान कर सकती है, जो अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने पर निर्णायक प्रभाव डालने की संभावना डाल सकती हैं।
सरकार को इस तथ्य के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए कि अमीरों पर कर लगाने के माध्यम से अतिरिक्त राजस्व का लाभ केवल और केवल इन 5-10 परियोजनाओं या योजनाओं के लिए उपयोग किया जाएगा। संक्षेप में कहा जाए तो इन राजस्व अधिकारियों ने देश की डांवाडोल आर्थिक दशा को सुधारने के लिए संपन्न तबके के लोगों पर जिम्मेदारी डालने की बात कही।
लॉकडाउन के वक्त घरों में बैठकर छुट्टी बिताने वाले अतिसंपन्न तबके को यह सुझाव नागवार गुजर सकता है। क्योंकि वे अपनी मर्जी से पीएम केयर्स फंड में कुछ दान दे सकते हैं या गरीबों के लिए पांच-दस किलो आटा दान कर फोटो खिंचवा सकते हैं। इसे ही वे अपनी जिम्मेदारी का वहन मानते हैं। लेकिन कोई उन्हें उनकी जिम्मेदारी बताए तो उन्हें बात बुरी लग सकती है।
फिलहाल सरकार को यह बात नागवार गुजरी कि राजस्व अधिकारियों ने इस तरह सुझाव कैसे दिया। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड यानी सीबीडीटी ने एक बयान में कहा कि उसने आईआरएस एसोसिएशन या इन अधिकारियों से इस तरह की रिपोर्ट तैयार करने के लिए कभी नहीं कहा और न ही इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से पहले कोई अनुमति ली गई। आधिकारिक मामलों पर अपने व्यक्तिगत विचारों और सुझावों के साथ सार्वजनिक रूप से जाने से पहले अधिकारियों द्वारा कोई अनुमति नहीं मांगी गई, जो कि आदर्श आचरण नियमों का उल्लंघन है. इस मामले में आवश्यक जांच शुरू की जा रही है। देशहित के लिए सुझाव देने वाले इन अधिकारियों पर किस तरह की जांच होगी और उसका क्या परिणाम इन्हें भुगतना पड़ेगा, ये तो फिलहाल कहा नहीं जा सकता। लेकिन यह बात साफ नहीं हो पाई कि सरकार को सुझाव बुरा लगा या सुझाव देने का तरीका।
देश के करोड़पति तबके पर कर की मात्रा कुछ बढ़ाने का सुझाव, कमोबेश वैसा ही है, जैसे सांसदों, विधायकों के वेतन-भत्ते में थोड़ी कटौती, सांसद निधि को रोकना, केन्द्रीय कर्मचारियों के डीए में कटौती, ताकि उस राशि का उपयोग देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए किया जाए। इन सुझावों को फैसले में तब्दील करने का हक केंद्र सरकार के पास ही है और वो इन्हें एक झटके में खारिज भी कर सकती है। ले
किन अभी उन अधिकारियों की जांच की जा रही है, जिन्होंने आदर्श आचरण नियमों का उल्लंघन किया है। वैसे सरकार की प्राथमिकता अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की होनी चाहिए, उन लाखों प्रवासी कामगारों की बेहतरी पर होना चाहिए जो लॉकडाउन की वजह से देश के दूसरे हिस्सों में फंसे हुए हैं। जैसे विदेशों में बसे भारतीयों को, या कोटा में फंसे छात्रों को इस मुसीबत के वक्त अपने घर पहुंचने की, घरवालों के साथ रहने की इच्छा होती है, वैसी ही तड़प गरीबों को भी होती है।
उन्हें लाइन में लगकर केवल दो वक्त के भोजन की खैरात ही नहीं चाहिए, बल्कि इंसान होने के नाते अपने परिजनों का भावनात्मक संबल चाहिए, अपनी खुद्दारी बचाए रखने के लिए रोजगार चाहिए। अगर फोर्स में सुझाए गए कुछ उपायों पर अमल करने से सरकार को इन उद्देश्यों में से किसी की प्राप्ति में कोई मदद मिलती है, तो उन्हें स्वीकार करने में क्या हर्ज है।
(देशबन्धु)