-चंद्र प्रकाश झा।।
चंद्र प्रकाश झा *
कोरोना प्रकोप के मद्देनज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 अप्रैल को देश भर की ग्राम पंचायतो के सरपंचो के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये बातचीत करेंगे. यह खबर आज सरकारी हल्को से मिली. इसका पूरा ब्यौरा तत्काल नहीं मिला है.लेकिन ये मानने में कोई हर्ज़ नहीं कि ये अच्छी खबर है कि उनका ध्यान गांवो पर गया है. हम ये नहीं कह सकते कि उनका ये ध्यान मीडिया दरबार के इस दैनिक स्तम्भ के 20 अप्रैल के अंक के प्रकाशन के कारण गया जिसमें जोर देकर कहा गया था कि गांवो ने हमेशा से हिंदुस्तान को बचाया है और कोरोना प्रकोप से भी वही बचायेंगे लेकिन …
इस लेकिन को उस अंक में तनिक बताया गया था, जिसकी चर्चा हम आज थोड़े और विस्तार से करेंगे. सबसे पह्ली बात कि मोदी जी के गांवो के निर्वाचित प्रतिनिधियो के साथ बातचीत का ये कोई पह्ला मौका नहीं है. उन्होने कुछे अर्सा पह्ले भी किसानो के लिये अपनी पहली सरकार के कार्यो का ब्योरा देने के लिये ऐसी ही बातचीत की थी. तब उन्होंने कहा था कि देश में अन्न का रिकोर्ड सुरक्षित भंडार है.उन्होंने किसानो को उनके कृषि उत्पादो का बाज़ार में लाभकारी मूल्य की अदायगी सुनिश्चित करने का वादा भी किया था.लेकिन उफ ये जो लेकिन है वो तब भी बना ही रहा और किसानो की दुर्दशा बढती ही गई.
इसकी साफ झलक गांवो में दाल , खाद्य तेल आदि आवश्यक वस्तुओ की मांग में देश की आज़ादी के बाद सबसे ज्यादा गिरावट की सरकारी रिपोर्ट से मिलती है , जिसे 1919 के आम चुनाव के मद्देनज़र दबा दिया गया.चुनाव में , पुलवामा आतंकी हमला के जवाब में देशभर में उठी राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी की अभूतपूर्व जीत के बाद ही उस तरह की रिपोर्ट आम लोगो के सामने आ सकी.केंद्र सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के मातहत नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) के एक सर्वे , स्टेट इंडिकेटर्स:होम कंज्यूमर एक्सपेंडिचर इन इंडिया शीर्षक रिपोर्ट के अनुसार भारत में,खासकर ग्रामीण भाग में खपत और मांग बहुत घट गई . 2017- 2018 में उपभोक्ता खर्च में राष्ट्रीय स्तर पर 3.7{09002dbf131a3dd638c766bc67f289d0640033338bee1ac2eb3568ad7ccae38d} और ग्रामीण भारत में 8.8 {09002dbf131a3dd638c766bc67f289d0640033338bee1ac2eb3568ad7ccae38d}प्रतिशत की गिरावट आई इसमें पाया गया कि पिछले छह साल में देश के ग्रामीण हिस्सों में व्यक्तिगत खर्च में 8.8{09002dbf131a3dd638c766bc67f289d0640033338bee1ac2eb3568ad7ccae38d} की औसत गिरावट आई जबकि शहरी क्षेत्रों में 2 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। सर्वे से पता चला कि गांव के लोगों ने दूध और दूध से बनने वाले उत्पादों को छोड़कर सारे सामानों की खरीद में कटौती की। लोगों ने तेल, नमक, चीनी और मसाले जैसी वस्तुओं पर खर्च में बड़ी कमी की। गैर-खाद्य वस्तुओं पर खर्च के आंकड़े मिलेजुले आए हैं। ग्रामीण भारत में गैर-खाद्य वस्तुओं की खपत 7.6{09002dbf131a3dd638c766bc67f289d0640033338bee1ac2eb3568ad7ccae38d} कम हुई जबकि शहरी इलाकों में 3.8{09002dbf131a3dd638c766bc67f289d0640033338bee1ac2eb3568ad7ccae38d} की वृद्धि देखी गई।ग्रामीण भारत में 2017- 18 में भोजन पर मासिक खर्च औसतन 580 रुपये हुआ था जो 2011-12 में 643 रुपये के मुकाबले 10{09002dbf131a3dd638c766bc67f289d0640033338bee1ac2eb3568ad7ccae38d} कम है। शहरी क्षेत्र में इस मद में मामूली बढ़त देखी गई। शहरी क्षेत्र में 2011-12 में लोगों ने 946 रुपये प्रति माह का औसत खर्च किया था जो 2017-18 में महज 3 रुपये बढ़कर 946 रुपये हुआ। पूर्ववर्ती योजना आयोग के सदस्य रहे अभिजीत सेन के मुताबिक गांवों में भोजन पर कम खर्च का मतलब है कि वहां गरीबी में बड़ा इजाफा हुआ है और कुपोषण बढ़ेगा। पिछ्ला आर्थिक नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वालों में शामिल अभिजीत बनर्जी ने भी भारत में घरेलु खपत में गिरावट के आंकड़ों के हवाले से कहा कि देश की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत ही खराब है।
मोदी जी 24 अप्रैल को देश की ग्राम पंचायतो के सरपंचो के साथ क्या बातचीत करेंगे ये तो उसके बाद ही पता चलेगा. हम इतना जरुर कह सकते हैं कि मोदी जी कोई बातचीत नहीं करते सिर्फ अपने मन की बात कहते है. हाँ, वे सरकार प्रायोजित इक्का- दुक्का सवालो के जवाब देने का स्वांग जरुर भरते हैं.उन्हे इस बार ग्रामीण प्रतिनिधियो के भी मन की बात सुननी चाहिये. लेकिन उफ ये लेकिन।
हिन्दुस्तान में आबादी वाले करीब छह लाख गांव हैं और भारत की 2011 की पिछली जनगणना में औसत वार्षिक वृद्धि के अनुसार 2018 में इसकी आबादी 135 करोड़ थी जिसका करीब 65 प्रतिशत गाँवों में हैं। मोदी जी कितने गांवो के कितने प्रतिनिधियों के मन की बात सुन सकेंगे ये वही बता सकें तो बेहतर होगा , फिलहाल तो इतना ही कि देर आयद , दुरुस्त आयद .आगे भी दुरुस्त रहे तो मोदी जी की मेहरबानी।
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