-संजय कुमार सिंह।।
लॉक डाउन के 21 दिन पूरे हो गए। आज उसे 19 दिन और बढ़ा दिया गया। इस पर तरह-तरह की अटकलें चल रही थीं। इस तथ्य के बावजूद कि सुप्रीम कोर्ट ने कह रखा था कि, सरकार से पुष्टि के बाद ही कोरोना वायरस से संबंधित खबरें चलाए मीडिया। निश्चित रूप से यह आदेश तबलीगी जमात से संबंधित निजामुद्दीन मरकज की खबरों पर भी लागू होगा या होना चाहिए। इसके बावजूद तबलीगी जमात से संबंधित जो खबरें जिस शैली में जितनी छपीं और चलीं वह सर्व विदित है। इसपर सरकार की ओर से रोक लगाने की कोशिश या संयम बरतने की अपील बहुत दिनों बाद आई और वह भी प्रमुखता से नहीं छपी। ना उसका कोई असर हुआ। इस संबंध में कल की खबर है, तब्लीगी जमात के मीडिया कवरेज पर अंतरिम फैसला देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- प्रेस का गला नहीं दबाएंगे।
मीडिया के लिए आदेश था कि सरकार से बिना पूछे खबर नहीं छपे तो कैबिनेट सचिव से बयान दिलवाकर खबर छपवाई गई। तबलीगी से संबंधित खबरें छपने दी गई। नाराज होकर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने तबलीगी जमात के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अपील की। याचिका दायर कर मांग की गई कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र को निर्देश जारी करे कि इस बाबत गलत खबर चलाने वाले और साम्प्रदायिक घृणा तथा नफरत फैलाने वाले मीडिया संस्थानों पर सख्त कार्रवाई की जाए। यह मांग सांप्रदायिक नहीं है। पूरे समाज के लिए है। जिसमें दूसरे जमात के लोग भी रहते हैं। पर एक खबर (शीर्षक है), तबलीगी जमात के मीडिया कवरेज पर अंतरिम फैसला देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, कहा- प्रेस का गला नहीं दबाएंगे।
कोरोना के मामले में सरकार के पूछे बगैर खबर न छापी जाए और जो छपी या छप रही है उसपर रोक नहीं लगाएंगे। साफ है कि सब कुछ पूरी तरह सरकार के हाथ में है। हालांकि, जमीयत के मामले में प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम एम शांतनगौडर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने कहा है कि इस मामले में भारतीय प्रेस परिषद को भी एक पक्षकार बनाए। कहने की जरूरत नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट पूरे मामले में भारतीय प्रेस परिषद यानी पीसीआई या प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया को भी पक्ष मानती है। आगे का मामला जब सुप्रीम कोर्ट का अगला कोई आदेश आएगा तब देखा जाएगा लेकिन हमलोग पीसीआई का काम भी देख ही रहे हैं।
अब कोरोना से संबंधित स्थिति, सरकार की कार्रवाई और मीडिया की खबरों की भी चर्चा कर लें। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संदर्भ में इसपर विचार भी कर सकते हैं। 30 जनवरी को देश में पहला मामला मिलने के बाद आज ढाई महीने बाद केंद्र सरकार ने जो किया और नहीं किया उसके बीच यह तथ्य अपनी जगह है कि अभी तक सरकार ने कोरोना से लड़ने की कोई योजना घोषित नहीं की है। मांग के बावजूद कोई पैकेज नहीं है। देश को नहीं बताया गया है कि किस मद में कितने पैसे हैं या खर्च करने की योजना है। पर यह खबर नहीं है। 30 मार्च को कैबिनेट सेक्रेट्री ने कहा था, सरकार का ऐसा कोई प्लान नहीं है (लॉक डाउन बढ़ाने का)। बेशक, यह उस समय की बात थी और उस समय प्लान नहीं होगा। पर क्या यह उस समय खबर थी? खूब छपी।
क्या सरकार ने गलत छपवाकर या छपने की स्थितियां बनवाकर लोगों को भ्रमित नहीं किया? कैबिनेट सचिव की घोषणा इस तथ्य के बावजूद खबर थी कि लॉक डाउन की घोषणा प्रधानमंत्री ने की थी। जिस ढंग से जिन स्थितियों में और जब की उससे यह मानने का कोई कारण नहीं था कि उसमें कैबिनेट सचिव की कोई भूमिका रही होगी। उसके बावजूद अखबारों ने इसे छापा। प्रधानमंत्री ने उस बारे में कुछ नहीं कहा। आज उसे बढ़ा दिया। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि मीडिया चाहे जो कहे उसकी जरूरत आपको उलझाए रखने के लिए है। वह जो करता है और नहीं करता है उसे देखना सरकार और पीसीआई का काम है। आप की कोई पूछ नहीं है। भले वह सरकारी विज्ञापनों से पल रहा है।
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देश का निष्पक्ष और स्वतंत्र प्रेस जो सरकारी विज्ञापनों पर आश्रित है, इसे स्वीकार कर चुका है उसकी ऐसी हालत यूं ही नहीं है। अगर आप संतुष्ट हैं तो कोई बात ही नहीं। अगर आपको ठीक नहीं लगता है तो सोचिए क्या कर सकते हैं। इस बात का ध्यान रखिएगा कि पीसीआई टेलीविजन की खबरों के लिए नहीं है। और उसके मामले में सूचना प्रसारण मंत्रालय सीधे आदेश देकर प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से वापस ले चुका है। टेलीविजन वाले स्वनियमन भी नहीं मानते।