-विष्णु नागर।।
बात यह है कि हमें कोरोना हुआ है या नहीं हुआ है मगर हमारे विचारों को कोरोना अवश्य हो चुका है।टीवी खोलो-कोरोना। अखबार खोलो- कोरोना। सोशल मीडिया देखो- कोरोना। माँ-पिता जी, ताऊ जी-चाचा जी, भैया जी-बहन जी, बेटे जी- बेटी जी, साले जी-साली जी, दोस्त जी-दुश्मन जी, मोदी जी- केजरीवाल जी, हरेक की जुबान, हरेक की चेतना में बसा है- कोरोना। लिखो तो -कोरोना, पढ़ो तो- कोरोना।देखो तो- कोरोना, सुनो तो -कोरोना। बाथरूम से लेकर बिस्तर तक -कोरोना। कैलेंडर से लेकर पंचांग तक- कोरोना। हिंदू- मुसलिम करना हो -कोरोना। मंदिर बंद हैं, मस्जिद बंद है मगर इन दिनों सबका भगवान है-कोरोना। कोरोना ही कोरोना। पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण -कोरोना। देश की,दुनिया की एकता का एकमात्र सबूत -कोरोना। लाकडाउन में खुली सड़क पर साँड की तरह अकेला मदमस्त भाग रहा है -कोरोना। किसी की हिम्मत नहीं, जो उसे भारत क्या अमेरिका तक में रोक सके! है किसी में इतना साहस?
उसके आगे 56-58-60 इंच सब फेल हैं। कोरोना के सींग अगर आदित्यनाथ जी पकड़ भी लें तो उनसे छुड़ाकर ,वह इस तरह अँधाधुँँध भागने लगेगा कि फिर किसी की खैर नहीं। हरेक को सींग मारेगा ही मारेगा। लगता है किसी ने उसे देसी पिला रखी है। उसे हर तरफ लाल ही लाल कपड़ा नजर आ रहा है- करे तो क्या करे-कोरोना। इधर भागे या उधर। हर दिशा में भागता जा रहा है-कोरोना।
हमारी सभी इंद्रियों में विराजमान है-कोरोना। झगड़ा किसी से हो- झगड़ने का आजकल एक विषय है-कोरोना। और झगड़ा आजकल होता भी खूब है, वजह एक है-कोरोना।।अब मियां जी, चौबीसों घंटे और वह भी मुसलसल 21 दिन तक बीवी के सिर पर तथा बीवी, मियांजी के सिर पर सवार रहेंगी तो जोड़ी आदर्श हुआ करे, झगड़ा तो हर तीन-चार घंटे में होकर ही रहेगा। विषय भी 99 प्रतिशत मामलों में होगा- कोरोना। कोई दूसरा विषय हुआ भी तो उसकी जड़ में होगा- कोरोना। यही हाल माँ -बेटे, बाप-बेटी के बीच का है। माँ, बेटे को टोकेगी, तो झगड़ा होगा। बाप, बेटी को टोकेगा, तो झगड़ा होगा। भाई-बहन-बहू मिलकर माँ -बाप को झगड़ने से रोकेंगे तो झगड़ा होगा। हताहत कोई हो न हो, बैकग्राउंड म्यूजिक महाभारत वाला होगा। इस प्रकार नित्यप्रति घरेलू झगड़ा भी आज उतना ही बड़ा सत्य है, जितना यह जीवन सत्य है और उसमें भी सबसे बड़ा सत्य है आजकल- कोरोना ।असहमति को सड़क पर रोक लगा लो मगर घर -घर में इसे कैसे रोकोगे? रामायण दिखाओगे मगर महाभारत जीवन-सत्य बना रहेगा।बस मुश्किल ये है कि कोई किसी को छोड़कर जाने की धमकी आज नहीं दे सकता।बस, टैक्सी, ई रिक्शा, रिक्शा, मेट्रो, रेल, हवाई जहाज सब बंद हैं।कारण है-कोरोना।
एक जनाब हमारी उम्र के हैं। उन्होंने जब से सुना है कि 65 की बाद की उम्र वालों पर कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा मँडरा रहा है तो सिवाय मौत के उन्हें कोई और बात नहीं सूझती। फिर कहते हैं कि चलो मौत तो एक न एक दिन सभी की आना अवश्यंभावी है मगर यार मुश्किल यह है कि कोरोना से मरा तो चार लोग भी कंधा देने को न मिलेंगे।अपनी औलाद भी श्मशान घाट तक जाएगी नहीं। श्मशान घाट वाले दाह संस्कार की भी इजाजत देंगे या नहीं, पक्का नहीं। बस अब मेरी एक ही कामना रह गई है कि जो होना हो, कोरोना के बाद हो। श्मशान तक सौ नहीं तो कम से कम पचास लोग तो आएँ,अरे पच्चीस तो किसी हालत में आएँ ! जीते जी तो न बचा पाए वह अपनी प्रतिष्ठा मगर मरने के बाद उसे बचाने की चिंता है उन्हें। वैसे एकाध शोकसभा भी हो जाए तो उन्हें हर्ज नहीं, खुशी होगी-चाहे उसमें चार लोग आएँ, चाहे हर भाषण के बाद ताली बजाने वाले आएँ मगर आएँ।
कोरोना ने अज्ञानियों को ज्ञानी और ज्ञानियों को अज्ञानी सिद्ध कर दिया है।नये ज्ञानी आजकल वाट्सएप अज्ञान जम कर पेल रहे हैं।कुछ योगज्ञान पेल रहे हैं,उनको भी जिनकी रोजीरोटी का जरिया तक अभी खत्म है।जो भिखारी नहीं थे मगर हालात ने जिनके भिखारी बना दिया है।कोरोना से खुद को बचाने की इतनी जल्दी है कि गरीबों को कीटनाशक से स्नान कराया जा रहा है।अभी तो बहुत कुछ दिखाएगा-कोरोना।अभी तो ट्रेलर शुरु हुआ है,पूरी पिक्चर अभी बाकी है।’शोले’ देखना बाकी है।अमजद खान का मशहूर डायलॉग आना अभी बाकी है।जिंदगी अभी बाकी है दोस्तो,पिक्चर हाल बंद हैं तो क्या हुआ?थाली बजा चुके,आज रात नौ बजे मोमबत्ती जलाना बाकी है। भूखे पेट को बजाने के लिए कहा जाए कल तो वह भी अभी बाकी है।